वित्त वर्ष 2023-24 के शुरुआती 9 महीने के दौरान भारत का यूरिया उत्पादन करीब 12 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि आयात पिछले साल से थोड़ा कम रहा है और उर्वरक की बिक्री स्थिर रही है।
भारत में सबसे ज्यादा खपत यूरिया की होती है, उसके बाद डीएपी का स्थान है। सूत्रों ने बताया कि ज्यादा उत्पादन और स्थिर बिक्री की वजह से आने वाले महीनों में पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
उद्योग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘दिसंबर तक उत्पादन (यूरिया का) बढ़ने, आयात भी बेहतर बने रहने और बिक्री करीब स्थिर रहने से आने वाले शेष महीनों में कुछ अतिरिक्त उर्वरक रह सकता है।’ मॉनसून आने के साथ मई और जून में 2024 के खरीफ सीजन में यूरिया की मांग एक बार फिर तेज हो सकती है।
कुछ कारोबारियों द्वारा साझा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 के पहले 9 महीनों के दौरान म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का आयात पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब 59 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि इस दौरान बिक्री कम हुई है, जिससे उद्योग के कारोबारियों के पास स्टॉक जमा हो सकता है।
एमओपी के आयात मूल्य में 46 प्रतिशत की तेज गिरावट हुई, जिसका पूरी तरह से आयात किया जाता है। इस वित्त वर्ष में अप्रैल 2023 से दिसंबर 2023 के बीच कीमत 590 डॉलर प्रति टन से घटकर 319 डॉलर प्रति टन हो गई थी, जो आयात बढ़ने की एक वजह हो सकती है।
उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि ज्यादा खुदरा मूल्य के कारण पिछले कुछ समय से एमओपी की बिक्री लगातार घट रही थी। एनबीएस के दौर में अन्य पोषकों की तुलना में पोटाश पर कम सब्सिडी होने के कारण पिछले कुछ समय से एमओपी की खुदरा कीमत अधिक रही है।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि अक्टूबर से मार्च के दौरान पोटाश पर प्रति किलो सब्सिडी इसके पहले के अप्रैल से सितंबर की अवधि की तुलना में करीब 84 प्रतिशत कम रही है।
अधिकारी ने कहा, ‘किसान को डीएपी की एक बोरी की लागत 1,350 रुपये पड़ती है, जबकि एमओपी की एक बोरी की कीमत 1,500 से 1,600 रुपये के आसपास पड़ती है, जिसकी वजह से गिरावट आई है। लेकिन आयात बढ़ा है, क्योंकि संभवतः उद्योग जगत कीमत घटने और वैश्विक अनिश्चितता की वजह से भंडारण कर रहा है।’
पूर्व सोवियत संघ वाले कुछ देशों से बड़े पैमाने पर एमओपी का आयात होता है। रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे टकराव के कारण पिछले कुछ साल से इस पर असर पड़ा है।
बहरहाल वित्त वर्ष 24 के 9 महीनों के दौरान यूरिया के ज्यादा उत्पादन और करीब स्थिर बिक्री और इस दौरान डीएपी की ज्यादा बिक्री के कारण वास्तविक सब्सिडी पर भी बात शुरू हो गई है कि यह करीब 2,00,000 करोड़ रुपये हो सकती है जो 1,75,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था। वित्त वर्ष 24 के संशोधित अनुमान में उर्वरक सब्सिडी 1,89,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है, जो वित्त वर्ष 23 के बजट अनुमान से करीब 8 प्रतिशत अधिक है।
उद्योग के जानकारों का मानना है कि वित्त वर्ष 24 में यूरिया की कुल खपत पिछले साल के लगभग बराबर करीब 350 से 360 लाख टन रह सकती है।