केंद्र सरकार ने इस साल 2 अक्टूबर से सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर पाबंदी क्या लगाई, पहले से ही कुलाचे भर रहे तंबाकू और गुटखा कारोबार को मानो पंख लग गए।
कारोबारियों की मानें तो तब से अब तक तंबाकू और गुटखे का कारोबार करीब 10 से 15 फीसदी तक बढ़ गया है। यही नहीं महज तीन साल में ही इनका कारोबार बढ़कर तिगुना हो गया है।
जानकारों के मुताबिक, तमाम प्रतिबंधों और ऊंचे करों के बावजूद दिल्ली में तंबाकू और गुटखे का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है।
उनके अनुसार, यदि ये हाल रहा तो बहुत ही जल्द इस मामले में कानपुर की बादशाहत खत्म हो जाएगी।
गौरतलब है कि इस समय राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सरकार ने तंबाकू पर 68 फीसदी का उत्पाद कर और 12.5 फीसदी का वैट लगाया हुआ है। फिलहाल दिल्ली में इन उत्पादों की सालाना वृद्धि दर 70 फीसदी की है।
कारोबारियों के मुताबिक, इस समय दिल्ली में तंबाकू और गुटखा का मासिक कारोबार करीब 25 करोड़ रुपये का है। इन लोगों ने बताया कि यहां से इनकी ज्यादातर खेप गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार आदि राज्यों में जा रही है।
दिल्ली में इन उत्पादों की कारोबारी सफलता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि तंबाकू उत्पादों पर लगे भारी-भरकम कर का कारोबारियों ने कभी कोई विरोध नहीं किया।
नया बांस सर्व व्यापार एसोसिएशन के अध्यक्ष एस. सी. मिश्रा कहते हैं, ‘तंबाकू के ग्राहकों में गुणात्मक बढ़ोतरी हो रही है। इसकी वजह शायद यही कि अगर किसी को एक बार तंबाकू सेवन की लत पड़ जाए तो उसकी तंबाकू की खुराक घटती नहीं बल्कि लगातार बढ़ती ही जाती है।’
मिश्रा इसके लिए दो चीजों को जवाबदेह मानते हैं। पहला, इसकी मांग 20 से 25 फीसदी बढ़ जाना और दूसरा, महज तीन साल में ही तंबाकू की कीमतों का तिगुना हो जाना। उनके मुताबिक, तीन साल पहले जो तंबाकू बाजार में 50 रुपये प्रति किलो में बिकता था, वही तंबाकू अब 150 रुपये में मिल रहा है।
मिश्रा ने बताया कि नया बांस तंबाकू बाजार में तंबाकू और गुटखा के कम से कम 80-90 कारोबारी हैं। इनका कुल मासिक कारोबार करीब 15 से 20 करोड़ रुपये का है। एक अन्य कारोबारी विजय किशन कहते हैं, ”इस कारोबार में बारह महीने छप्परफाड़ मांग बनी रहती है। हालत यह है कि हम मांग जितनी आपूर्ति ही नहीं कर पाते।”
किशन तंबाकू ट्रेडिंग कंपनी के अशोक गुप्ता कहते हैं कि फिलहाल बाजार में गुटखे का वर्चस्व है। गुटखे ने तो सभी तंबाकू उत्पादों की छुट्टी सी कर दी है। यही कारण है कि अब इस क्षेत्र में माणिकचंद और पानपराग जैसी नामी-गिरामी तंबाकू कंपनियां भी अपने पांव पसार रही हैं।