विद्युत अधिनियम में महज संशोधन कर देने से उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्तिकर्ता को चुनने का विकल्प नहीं मिलने वाला है। विभिन्न राज्यों में कई विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का अभाव, डिस्कॉम के निजीकरण को लेकर कम दिलचस्पी और व्यापक नियमों का नहीं होना एक गतिशील विद्युत खुदरा बाजार के रास्ते की कुछ अहम रुकावटें हैं।
विद्युत अधिनियम 2003 में ताजे संशोधनों में विद्युत वितरण के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता को खत्म कर किसी भी कंपनी को आवश्यक नियामकीय मंजूरी के बाद किसी क्षेत्र में बिजली आपूर्ति करने की अनुमति दी गई है। इसके साथ केंद्र की योजना मौजूदा डिस्कॉम, जो कि ज्यादातर सरकारी हैं, के एकाधिकार को समाप्त करने और निजी डिस्कॉम के लिए बाजार को खोलने की है।
विद्युत विधेयक 2021 में संशोधित शर्तों को संसद के चालू मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा। विधेयक की एक नई धारा 24 (ए) में कहा गया है, ‘कोई भी कंपनी, जो निर्धारित पात्रताओं को पूरा करती है और स्वयं को उचित आयोग में पंजीकृत कराया है अपने आपूर्ति वाले क्षेत्र में उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति कर सकती है। इसके लिए वह अपनी वितरण प्रणाली अथवा किसी अन्य वितरण कंपनी की वितरण प्रणाली का उपयोग कर सकती है बशर्ते कि वह अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन करे।’ विधेयक में वितरण लाइसेंस शब्द को हटाकर वितरण कंपनी को शामिल किया गया है। इसमें एक ही क्षेत्र में दो या दो से अधिक डिस्कॉम को पंजीकरण कराने व बिजली वितरण करने की अनुमति दी गई है।