रूस द्वारा सैनिकों को पूर्वी यूक्रेन के दो अलग अलग क्षेत्रों में विभाजित किए जाने के आदेश के बाद मंगलवार को रूस-यूक्रेन के बीच तनाव गहरा गया। इससे तेल की कीमतें वर्ष 2014 के बाद से अपने सबसे ऊंचे स्तरों पर पहुंच गईं। दोनों देशों के बीच विवाद से आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ी है जिससे कीमतें 100 डॉलर के आसपास पहुंच गईं।
राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन द्वारा पूर्वी यूक्रेन में दो क्षेत्रों को स्वयं औपचारिक तौर पर मान्यता दिए जाने के बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय सहायक देश रूस के खिलाफ नए प्रतिबंधों की घोषणा के लिए तैयार दिख रहे हैं। इससे सुरक्षा संकट गहरा गया है।
तेल ब्रोकर पीवीएम के तमास वरगा ने कहा, ‘100 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा की तेजी की संभावना बढ़ी है। ऐसी संभावनाओं पर दांव लगाने वालों को टकराव बढऩे का अनुमान है।’
कच्चा तेल 3.48 डॉलर या 3.7 प्रतिशत की तेजी के साथ 98.87 डॉलर पर था और यह 99.38 पर पहले ही पहुंच चुका था, जो सितंबर 2014 के बाद से सबसे ऊंचा स्तर है। अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड शुक्रवार के निपटान के मुकाबले 4.41 डॉलर या 4.8 प्रतिशत चढ़कर 95.48 डॉलर पर बंद हुआ और यह 96 डॉलर पर पहुंच गया था, जो 2014 के बाद से सर्वाधिक है। अमेरिकी बाजार सार्वजनिक अवकाश के कारण सोमवार को बंद था।
यूक्रेन को लेकर पैदा हुए संकट से तेल बाजार को और अधिक समर्थन मिला है क्योंकि कोरोनावायरस महामारी से दबाव के बाद मांग में सुधार आने से आपूर्ति में बदलाव आया है।
ओपेक+ के नाम से चर्चित पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ने आपूर्ति तेजी से बढ़ाने के कदम का विरोध किया है। ब्रिटेन के एक वरिष्ठ मंत्री ने मंगलवार को कहा कि यूक्रेन पर रूस के हमले से जो स्थिति पैदा हुई है वह 1962 जैसे क्यूबा मिसाइल संकट जैसी गंभीर है, जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच टकराव से दुनिया परमाणु युद्घ की अनिश्चितता में फंस गई थी।
नाईजीरिया के पेट्रोलियम मंत्री ने मंगलवार को ओपेक के उस नजरिये का विरोध किया कि ज्यादा आपूर्ति जरूरी नहीं थी।