भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) के अनुसार रुपया अभी भी अधिक मूल्य पर आंका जा रहा है। आरईईआर अगस्त में 5.5 फीसदी पर था। व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले येन कैरी ट्रेड के अगस्त में समापन और अमेरिका में मंदी के डर से यह दर सुस्त हुई है। जुलाई में यह दर जुलाई में 7.7 फीसदी थी।
अगस्त और सितंबर में अमेरिकी डॉलर के मुकाबला रुपया गिरकर रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया था। निवेशक उन कैरी ट्रेड से बाहर निकल गए थे, जिनमें रुपये में लंबी पोजीशन के लिए चीनी युआन और जापानी येन का इस्तेमाल किया गया था। इस वित्त वर्ष में अमेरिकी डॉलर के मुकाबला रुपया 5 सितंबर को 83.99 रुपये के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया था।
इस दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने डॉलर की बिक्री कर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया था। इस हस्तक्षेप ने रुपये को 84 प्रति डॉलर के न्यूनतम मनोवैज्ञानिक स्तर पर पहुंचने से रोका था। कारोबारी साझेदारों के मुकाबले मुद्रा के तुलनात्मक मूल्य का आकलन करने के लिए आरईईआर का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इसमें 100 से ऊपर का आंकड़ा जरूरत से ज्यादा मूल्यांकन का संकेत देता है। बीते एक दशक से रुपया निरंतर इस स्तर से ऊपर रहा है।
बाजार के साझेदारों के अनुसार प्रवाह की वजह से मौजूदा कैलैंडर वर्ष (वर्ष 24) और वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 25) में आरईईआर और सुस्त हो सकता है। आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने बताया, ‘आरईईआर के अनुसार रुपया अधिक मूल्यांकन के स्तर में है। इसका कारण यह है कि रुपया आगे नहीं बढ़ा है जबकि अन्य मुद्राएं विशेष तौर पर विकसित बाजार की मुद्राएं आगे बढ़ी हैं।’
उन्होंने कहा, ‘कुछ समय से भारतीय रुपये का अधिक मूल्यांकन जारी है और यह नया नहीं है। बहुत कम समय के लिए महामारी के दौरान अतिशय मूल्यांकन नहीं था। इसका कारण यह था कि विकसित बाजारों में ब्याज दर और महंगाई बढ़ गई थी और यह संयोगवश हमारे साथ भी हुआ था।
लिहाजा आरईईआर में थोड़ी अवधि के लिए अधिक मूल्यांकन नहीं था। अब भारत की तुलना में विकसित बाजारों में महंगाई तेजी से घट रही है। लिहाजा जरूरत से ज्यादा मूल्यांकन कायम रहेगा। इसका अवधि कुछ घट भी सकती है।’
मौजूदा कैलेंडर वर्ष (सीवाई 24) में अमेरिका डॉलर के मुकाबले रुपया व्यापक रूप से स्थिर रहा है। अभी तक डॉलर के मुकाबले रुपया 0.59 फीसदी गिरा है। हालांकि प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की मजबूत जांचने वाला डॉलर सूचकांक मौजूदा कैलेंडर वर्ष में 0.94 फीसदी गिर गया।
रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले एशिया की तीसरी सबसे स्थिर मुद्रा है। हॉन्गकॉन्ग डॉलर और सिंगापुर डॉलर के बाद रुपया सबसे स्थिर मुद्रा रही। रुपये के स्थिर रहने का मुख्य कारण यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने समय-समय पर हस्तक्षेप किया। वित्त वर्ष 24 में रुपये में 1.5 फीसदी की गिरावट आई जबकि बीते वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 23) में 7.8 फीसदी की गिरावट आई थी।