इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के खाद्य तेल आयात के सबसे बड़े घटक के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पाम के पौधे पर विशेष ध्यान देते हुए 11,000 करोड़ रुपये के खाद्य तेलों के राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की। 18 अगस्त के कैबिनेट के फैसले के अनुसार, इस मिशन के तहत अन्य फसलों के लिए मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तर्ज पर पाम के पौधे के लिए एक बेंचमार्क खरीद मूल्य को मंजूरी दी गई। अगर पाम के पौधे का बाजार मूल्य बेंचमार्क से नीचे जाता है तब इस मूल्य की गणना कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से नुकसान की भरपाई करने के प्रावधान के साथ की जानी है।
इस मिशन की योजना के तहत साल 2025-26 तक पाम की खेती को 10 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 2029-30 तक 17-18 लाख हेक्टेयर तक करने की है। वर्तमान में महज 3.4 लाख हेक्टेयर जमीन पर ही पाम के पौधे की खेती होती है, खासतौर पर आंध्र प्रदेश और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में। नतीजतन, घरेलू पाम तेल का उत्पादन साल 2025-26 तक तीन गुना बढ़कर 11 लाख टन और साल 2029-30 तक 28 लाख टन करने का लक्ष्य है। भारत सालाना 1.3-1.5 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात करता है जिसमें से लगभग 55-60 प्रतिशत पाम तेल (काफी हद तक मलेशिया और इंडोनेशिया से मंगाया जाता है) का हिस्सा होता है। खर्च करने लायक आमदनी बढऩे और खाने की आदतों में बदलाव के कारण 2030 तक इसका आयात 2 करोड़ टन तक के स्तर तक पहुंचने का अनुमान है। यह अनुमान लगाया गया है कि देश सालाना 60,000-80,000 करोड़ रुपये के खाद्य तेलों का आयात करता है, जिसमें पाम तेल (कच्चा और परिष्कृत दोनों) की बड़ी हिस्सेदारी है। हालांकि पाम की खेती की अपनी समस्या है। विश्व वन्यजीव कोष (वल्र्ड वाइल्डलाइफ फंड) के साल 2013 के एक अनुमान के अनुसार, पाम बागान के विस्तार की वजह से वैश्विक स्तर पर करीब 40 लाख हेक्टेयर जंगलों (केरल के आकार से दोगुने से अधिक) के नुकसान होने की संभावना है। इससे कई वन्यजीव प्रजातियां खतरे में पड़ जाएंगी और ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में भी वृद्धि होगी। ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या भी बढ़ेगी। इसलिए पर्यावरण समूह पूर्वोत्तर के जंगलों और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पाम बागानों के विस्तार का विरोध करते रहे हैं।
घरेलू तेल पाम उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयास वर्षों से चल रहे हैं। कृषि विभाग ने संभावित राज्यों में 1991-92 में तिलहन और दलहन से जुड़े प्रौद्योगिकी मिशन की शुरुआत की थी। आठवीं और नौवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान एक व्यापक, केंद्र प्रायोजित योजना, पाम विकास कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। 10वीं और 11वीं योजनाओं के दौरान सरकार ने तिलहन, दलहन, पाम और मक्के की एकीकृत योजना के तहत पाम की खेती के लिए मदद दी। इसने 60,000 हेक्टेयर में पाम की खेती करने के मकसद से 2011-12 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत ऑयल पाम क्षेत्र विस्तार (ओपीएई) से जुड़े एक विशेष कार्यक्रम का भी समर्थन किया था जो मार्च 2014 तक जारी रहा। इसके अलावा अन्य पहल भी की गईं। देश में पाम के सबसे बड़े खिलाडिय़ों में से एक गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक बलराम सिंह यादव कहते हैं, ‘यह सच है कि घरेलू पाम और पाम तेल उत्पादन को बढ़ावा देने का मिशन लगभग 30 सालों से चल रहा है, लेकिन यह संतोषजनक नहीं रहा है क्योंकि कई मामलों में राज्य सरकारों ने अपने हिस्से की सब्सिडी जारी नहीं की और ज्यादातर घोषणाएं कागजों पर ही रह गईं।’
उन्होंने कहा, ‘पौधे, उर्वरकों और अन्य चीजों पर सब्सिडी केंद्र और राज्यों के बीच साझा करनी होगी। जब तक राज्य पाम की खेती को बढ़ावा देने में गहरी दिलचस्पी नहीं लेते तब तक परियोजना में तेजी नहीं आएगी।’ साल 2014-15 में फंडिंग पैटर्न केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 50-50 के आधार पर साझा किया जाना था और 2015-16 में सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिए 60-40 और पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए 90-10 के अनुपात के आधार पर संशोधित किया गया था। आंध्र प्रदेश में लगातार राज्य सरकारों के समर्थन के कारण पाम की खेती का दायरा बढ़ा है। यह एक ऐसी फसल है जो किसी भी अन्य पारंपरिक तिलहन की तुलना में 6-8 गुना अधिक तेल देता है। ऐसे में पहले जहां धान की खेती होती थी वहां भी पाम बागान नजर आने लगे हैं।
यादव का कहना है कि सुनिश्चित मूल्य तंत्र पहले भी था लेकिन इसका सूचकांक अंतरराष्ट्रीय कच्चे पाम तेल (सीपीओ) की कीमतों के आधार पर बनाया गया था और अगर उनकी दरों में तेज गिरावट आई तो किसानों को नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा, तेल उत्पादन का अनुपात उद्योग के भुगतान करने के लिए अवास्तविक था लेकिन किसानों को संतुष्ट करने के लिए राज्यों ने इसे बढ़ाना जारी रखा जिसे उद्योग ने बंद कर दिया था। मंत्रिमंडल का हाल का फैसला पिछले प्रयासों से किस तरह अलग है इस पर टिप्पणी करते हुए यादव का कहना है कि यह एक बेहतर कदम है और जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सीपीओ की कीमतें गिरने पर किसानों को मुआवजा देने का आश्वासन दिया गया है उसकी वजह से किसानों का निवेश सचमुच जोखिम मुक्त होगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक बागानों की खेती को सफल बनाने के लिए बड़े पैमाने पर क्षमता निर्माण किया जाना चाहिए। पूर्वोत्तर में पाम बगान के क्षेत्र में पतंजलि समूह जैसे एफएमसीजी ब्रांडों के आने से विवाद के अलावा कुछ उम्मीदें भी जगेंगी जिसने हाल ही में रुचि सोया में से एक का अधिग्रहण किया।