जोरदार बारिश के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसान अब अपने खेतों से बाढ़ का पानी घटने का इंतजार कर रहे हैं।
प्रदेश में धान का कटोरा कहे जाने वाले 12 जिलों के किसान अभी भी बाढ़ का प्रकोप झेल रहे हैं। इन जिलों में खेतों से पानी निकलने का नाम ही नहीं ले रहा है। खरीफ की अच्छी बुआई से राज्य के कृषि वैज्ञानिक पहले जहां खुश थे, वहीं अब वे फसलें बचाने का नुस्खा खोज रहे हैं।
लगातार एक पखवाड़े तक हुई मूसलाधार बारिश के कारण आई बाढ़ ने गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, सिध्दार्थनगर, संत कबीर नगर, गोरखपुर, कुशीनगर, बलिया और आजमगढ़ के खेत-खलिहानों, बांधों और जलाशयों को जलमग्न कर दिया है। बाढ़ के बाद भी किसानों को आशा है कि फसल की पैदावार जोरदार होगी।
धान की फसल ने पिछले साल भी किसानों के चेहरे पर रौनक ला दी थी। खास तौर पर उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों में बाढ़ के बावजूद धान की फसल अच्छी हुई थी। हालांकि इस बार किसानों को ज्यादा समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद थी पर केंद्र ने केवल 850 रुपये ही समर्थन मूल्य घोषित किया।
तीन साल बाद एक बार फिर इस साल जुलाई में ही राज्य के किसानों ने निर्धारित लक्ष्य से ज्यादा धान की रोपाई कर ली। अच्छे मौसम को देखते हुए इस साल कृषि विभाग का अनुमान 60 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई करने का था, जबकि राज्य के किसानों ने जुलाई में ही 65 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई कर ली।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल जुलाई में धान की रोपाई का ज्यादातर काम पूरा हो गया। बुंदेलखंड में भी खरीफ की अच्छी फसल का अनुमान जताया जा रहा था। इसलिए कि इस बार बुंदेलखंड पर मानसून की बेरुखी खत्म हो गयी और यहां जमकर बारिश हुई।
बुंदेलखंड के ज्यादातर इलाकों में तो जुलाई में ही धान की आधी रोपाई हो गई। धान की पौध गलने की खबर को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रभावित किसानों को फिर से पिछौती फसल की रोपाई की सलाह दी है।