डॉलर की तुलना में रुपये के कमजोर होने से आयातित न्यूजप्रिंट के महंगे होने के बावजूद प्रकाशकों की ओर से लगातार पड़ते दबाव के चलते घरेलू निर्माताओं ने न्यूजप्रिंट की कीमतों में कमी करने का फैसला लिया है। न्यूजप्रिंट निर्माताओं के मुताबिक, यह कमी 2,000 रुपये प्रति टन तक की गई है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल भर से न्यूजप्रिंट की कीमतों में लगातार वृद्घि हुई है। कंपनियों की ओर से कहा गया है कि ये प्रकाशकों का दबाव है जिसके चलते न्यूजप्रिंट की कीमतें कम करने को मजबूर होना पड़ रहा है। निश्चित तौर प्रकाशकों के लिए यह खबर सुकून देने वाली है। सालाना 1,44,000 टन न्यूजप्रिंट का उत्पादन करने वाली कंपनी आरएनपीएल के कार्यकारी निदेशक वी. डी. बजाज ने बताया कि पिछली तिमाही में न्यूजप्रिंट की कीमतों को लेकर अनेक प्रकाशकों ने विरोध जताया था। इसलिए मौजूदा तिमाही में निर्माताओं को कीमतें कम होने को मजबूर होना पड़ा है। मालूम हो कि इसकी कीमतें हर तीन माह पर संशोधित की जाती हैं।
हालांकि, कइयों का कहना है कि उसने पहले वाली कीमतें ही बरकरार रखी हैं। तकरीबन 1.5 लाख टन सालाना न्यूजप्रिंट तैयार करने वाली इमामी पेपर लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक पी. एस. पटवारी ने बताया कि सामान्यतः किसी भी जिंस का घरेलू बेंचमार्क भाव उसे आयात करने में होने वाले खर्च से तय होता है। पिछली तिमाही में रुपये में हुई कमजोरी का असर यह हुआ कि कागज की कीमतें तकरीबन 5,000 रुपये प्रति टन तक महंगी हो गई हैं। इसके बावजूद, मौजूदा तिमाही में पिछली तिमाही की औसत कीमत 40 हजार रुपये प्रति टन को ही बरकरार रखने का फैसला लिया गया।
मिली जानकारी के मुताबिक, 45 जीएसएम (ग्राम प्रति वर्ग मीटर) के न्यूजप्रिंट की कीमत जनवरी 2008 की तुलना में जुलाई से सितंबर वाली तिमाही में तकरीबन 50 फीसदी बढ़कर 38 से 40 हजार रुपये प्रति टन तक पहुंच गई है। न्यूजप्रिंट की कीमतों में कमी के चलते कई अखबारों को पृष्ठों में कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा है तो कइयों को तो अपने नए संस्करण की लॉन्चिंग टालनी पड़ी है। दैनिक भास्कर समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी पी. जी. मिश्रा ने कहा कि हमलोग सप्लायरों से लगातार बातचीत कर रहे हैं कि वे कीमतों में कमी करें।
उम्मीद है कि मौजूदा तिमाही में इसकी कीमतों में 15 फीसदी तक की कमी हो जाएगी। वाकई में यह तरक्की के पहिये को पीछे लौटने की शुरुआत है। अनुमान है कि इस समय देश में न्यूजप्रिंट की खपत तकरीबन 20 लाख टन है जबकि अगले साल तक इसके बढ़कर 24 लाख टन तक पहुंच जाने का अनुमान है। देश अपनी कुल जरूरत के आधे की पूर्ति आयात के जरिए करता है।