खाद्य तेलों के वायदा पर प्रतिबंध के बाद सटोरिए सरसों की जमकर खरीदारी कर रहे हैं। सरसों इन दिनों सटोरियों को सोने का दाना नजर आ रहा है।
उन्हें इस बात का पूरा भरोसा है कि बाजार लाख टूट जाए, सरसों का बाजार गर्म रहेगा। पिछले दो महीनों के दौरान सरसों के वायदा भाव में हो रहे लगातार उछाल व उसके कारोबार के बढ़ते बाजार भी साफ तौर पर इस ओर इशारा करते हैं।
इस जून महीने के दौरान सरसों के वायदा कारोबार में पिछले साल जून महीने के मुकाबले लगभग 120 फीसदी का इजाफा हुआ। वही सरसों की हाजिर कीमत में एक मई से एक जुलाई के दौरान प्रति क्विंटल 125 रुपये से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। नवंबर महीने के लिए सरसों का वायदा भाव 702 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच चुका है।
वायदा कारोबार से जुड़े सटोरियों के मुताबिक कृषि से जुड़ी चीजों में खाद्य तेल उनकी पहली पसंद थी। सरकार ने खाद्य तेल के वायदा पर पाबंदी लगा दी, लिहाजा तिलहनं खास कर सरसों उनकी खास पसंद हो चुकी है। उन्हें यह भी पता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत व घरेलू बाजार की मांग व स्टॉक को देखते हुए तिलहन के मामले में उन्हें हमेशा बंपर फायदा होगा।
मुख्य रूप से कृषि जिंसों का वायदा कारोबार करने वाला एक्सचेंज एनसीडीईएक्स में पिछले साल मई महीने के दौरान सरसों का कुल वायदा कारोबार 3615.50 करोड़ रुपये का रहा जो वर्ष 2008, मई के दौरान 11,050.42 करोड़ रुपये का हो गया। यानी कि दोगुने से भी ज्यादा का इजाफा। इस साल जून में यह कारोबार 10,963.73 करोड़ रुपये का हुआ जो पिछले साल की समान अवधि के दौरान मात्र 4693.52 करोड़ रुपये का था। सटोरिए कहते हैं कि जो पैसे खाद्य तेल में लग रहे थे वे इन दिनों तिलहन में लग रहे हैं। जुलाई महीने के सिर्फ चार दिनों में 1346.79 करोड़ रुपये का कारोबार हो चुका है।
सरसों की वायदा कीमत भी लगातार बढ़ती जा रही है। 2008, अप्रैल महीने के आरंभ में सरसों की वायदा कीमत 532 रुपये प्रति क्विंटल थी जो 4 जुलाई को 702 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गयी। सूत्रों का कहना है कि सरकार के पास सरसों का स्टॉक बिल्कुल नहीं के बराबर है। उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोया व पाम ऑयल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी के कारण सरसों में भी मजबूती का रुख बरकरार है।
घरेलू बाजार में सरसों तेल की कीमत पिछले एक महीने के दौरान 10 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ चुकी है। उत्तर भारत में सरसों तेल की मांग सबसे अधिक होती है। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन के मुताबिक भारत में सालाना 5-6 फीसदी की दर से खाद्य तेलों की मांग बढ़ती जा रही है।