आलू की खेती में हाथ जला चुके पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए मानसून में रोपे जाने वाले अमन (खरीफ) धान से काफी उम्मीदें है। सही समय पर मानसून के आने से उनकी ये उम्मीदें और मजबूत ही हुई हैं।
किसानों को उम्मीद है कि इस बार अच्छी मानसूनी बारिश से धान का उत्पादन काफी बेहतर रहेगा और ये आलू किसान अब तक के नुकसान से उबर जाएंगे। जानकारों की राय भी यही है कि धान की अच्छी फसल ही आलू से हुए नुकसान से उबरने का एक मात्र रास्ता है।
सही समय पर मानसूनी बारिश होने और रकबे में वृद्धि होने से अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल धान के कुल उत्पादन में काफी वृद्धि होगी। पश्चिम बंगाल कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल खरीफ धान का कुल उत्पादन 92 लाख टन रहा था पर इस बार इस अमन धान का कुल उत्पादन बढ़कर 1 करोड़ टन हो जाएगा।
आंकड़े बताते हैं कि इस बार राज्य में खरीफ धान के कुल रकबे में पिछले साल की तुलना में 2 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। पिछले साल जहां राज्य के 39 लाख हेक्टेयर में इसकी रोपाई हुई थी, वहीं अनुमान है कि इस बार इसका रकबा बढकर 41 लाख हेक्टेयर हो जाएगा। हालांकि, बारिश के अनियमित होने से राज्य में किसानों का एक बड़ा तबका इसकी सिंचाई के लिए दामोदर घाटी निगम से मिलने वाले पानी पर निर्भर करता है।
अनियमित बारिश का फसल पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए एक उदाहरण देखा जा सकता है। मई की शुरुआत में हुई जोरदार बारिश से खरीफ धान को जहां काफी लाभ पहुंचा है, वहीं यदि यही बारिश अक्टूबर के आखिर में हो तो धान की फसल को तगड़ा नुकसान पहुंचेगा। राज्य कृषि विभाग का मानना है कि इस साल समय से पहले मानसून के आने से खेतों की तैयारी काफी अच्छे से हो सकी है। इस वजह से खरीफ धान की औसत उत्पादकता 2.35 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2.575 टन प्रति हेक्टेयर पहुंच जाएगी।
राज्य के किसान एक फसल चक्र में सामान्यत: आलू और धान की खेती करते हैं। पर इस बार आलू की बंपर पैदावार होने से किसानों को काफी घाटा उठाना पड़ा है। बर्द्धवान जिले के एक किसान परेश नाथ घोष ने बताया कि आलू की अच्छी पैदावार होने से कीमतें काफी घट गई। कर्जों से मुक्ति पाने के लिए तो कई किसानों को अपनी सारी उपज ही बेचनी पड़ी। जानकारों के मुताबिक, आलू में प्रति बीघा (1 बीघा=0.25 हेक्टेयर) 5 से 8 हजार रुपये बीज में ही खर्च हो जाते हैं, पर धान के मामले में ऐसा नहीं है।
धान के बीज का खर्च 100 से 250 रुपये प्रति किलोग्राम होता है। सामान्यत: आलू की प्रति बीघा आय 5 हजार रुपये होती है जबकि धान के मामले में यह राशि मुश्किल से 2 हजार रुपये होती है। लेकिन इस बार आलू की दुर्दशा का ये हाल है कि 50 किलोग्राम के एक बोरी की कीमत महज 30 रुपये मिल रही है। इससे किसानों का नुकसान काफी बढ़ चुका है।
उन्हें आलू बेचने से जो राशि मिल रही है, वह उत्पादन खर्च भी निकाल पा रही है। इससे आलू पैदा करने वाले किसानों का नुकसान काफी बढ़ चुका है। घोष ने बताया कि यहां के किसानों ने अपनी सारी बचत आलू की खेती में लुटा दी है। अभी कुछ ही दिनों पहले यहां के कई किसानों ने आलू की खेती से होने वाले नुकसान के चलते आत्महत्या की चेतावनी दी।