पिछले पांच सप्ताह में बाल्टिक ड्राई इंडेक्स के दोगुने से अधिक होने के मामले को किस प्रकार समझा सकता है? बाल्टिक ड्राई इंडेक्स 40 वैश्विक समुद्री मार्गों की बल्क लदाई दर को मापता है।
विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मंदी के दौर से गुजरने और भारत तथा चीन में विकास दर कम होने के कारण यह घटना अभी छुपी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका जवाब ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और भारत की लदाई में हाल में आई तेजी हो सकती है।
लौह अयस्क की लदाई मुख्य तौर से चीन के लिए की जा रही है। भारतीय खनिज उद्योग परिसंघ के महानिदेशक आर के शर्मा ने इस घटना पुष्टि करते हुए कहते हैं कि तुरंत डिलिवरी वाले लौह अयस्क की कीमतें जल्द ही बढ़ कर 90 डॉलर प्रति टन हो जानी चाहिए जबकि नवंबर में इसकी कीमतें 45 डॉलर प्रति टन थीं।
इसमें कोई संदेह नहीं की विश्व में सबसे अधिक लदाई इसी जिंस की की जाती है। पिछले साल, लगभग 8,900 लाख टन लौह अयस्क का निर्यात समुद्री मार्ग से किया गया था जिसमें भारत की हिस्सेदारी 1,000 लाख टन से अधिक थी।
डाई बल्क दरों में अचानक आई तेजी की वजह चीन के इस्पात निर्माताओं द्वारा भारी मात्रा में लौह अयस्क की खरीदारी करना है। कारोबारी अधिकारियों ने बताया कि चीन एक बार फिर अपने अयस्क बाजार को सहारा दे रहा है।
इसके लौह अयस्क के भंडार में सितंबर से 23 प्रतिशत की कमी आई है। सितंबर में अयस्क का भंडार 900 लाख टन था। चीन के मांग में सुधार होने से वेल, बीएचपी बिलिटन और रियो टिंटो ज्यादा से ज्यादा केपसाइज वेसेल किराये पर ले रहे हैं।
ड्राई बल्क जिंसों के मालभाड़ा दर का बेंचमार्क, बाल्टिक ड्रई इंडेक्स का 22 वर्षों के न्यूनतम स्तर दिसंबर के 663 अंकों से बढ़ कर अब लगभग 200 हो जाने की एक वजह कच्चे माल के कारोबार में फिर से तेजी आने का संकेत भी है।
कोयले की लदाई अधिक होने से इस्पात के वैश्विक कारोबारी परिमाण में फिर से तेजी दिखने लगी है। हालांकि, इस तरह का धीरे-धीरे ही होगा।
केपसाइज सबसे बड़े आकार का वेसेल होता है तो लौह अयस्क, कोयला और इस्पात के परिवहन के लिए उपयुक्त होता है। इस तरह के अधिकांश वेसेल साल 2008 की अंतिम तिमाही में किनारे लगा दिए गए थे क्योंकि लदाई की मांग काफी कम हो गई थी। लेकिन अब लौह अयस्क बाजार में तेजी के साथ ही वेसेल भी आने शुरू हो गए हैं।
निस्संदेह, अगर विभिन्न बंदरगाहों पर 60 वेसेल बेकार नहीं पड़े होते तो केपसाइज वेसेल का दैनिक किराया 26,500 डॉलर प्रति दिन तक पहुंच गया होता। नकदी की संकट से जूझ रही लदाई कंपनियां अभी भी नये जहाजों के ऑर्डर रद्द कर रही हैं।
हालांकि, केपसाइज के एक और दो वर्ष के किराये में इतनी अधिक बढ़ोतरी होती रही तो यह वर्तमान स्तर से कम से कम 50 फीसदी बढ़ जाएगी। इससे शिपिंग कंपनियों को राहत मिलेगी जो साल 2008 के अंतिम तीन महीनों में माल ढुलाई बाजार के कमजोर पड़ने के कारण ऋण चुकाने के अपने वादे पूरे नहीं कर पा रही थीं।
ड्राई बल्क कैरियर कुछ हद तक सुरक्षित हैं जब तक उनका शुध्द परिसंपत्ति मूल्य बकाया ऋण के 130 प्रतिशत पर बरकरार है। यहां शुध्द परिसंपत्ति मूल्य का तात्पर्य शिप के वर्तमान बाजार मूल्य से हैं।
दलाल कहते हैं कि वेसेल की कीमतों में 70 प्रतिशत तक की कमी देगी गई है। इस्तेमाल किए गए शिप, जिन्हें काफी समय से समुद्र में नहीं उतारा गया है, को फिर से समुद्र में उतारना कठिन है।
बाल्टिक ड्राई इंडेक्स फिर कब पिछले साल के 11,793 अंक, जो अब तक का सर्वाधिक है, के स्तर पर पहुंचेगा इसके अनुमान लगाने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।
र्मॉग्न स्टैनले के एक विश्लेषक कहते हैं कि लदाई दर में भारी कमी आई है और ऋण बाजार में थोड़ी नरमी आने के बाद इसमें सुधार की संभावना है। उनका कहना है कि चीन की कारोबारी गतिविधियां बढ़ने से भी इसमें तेजी आएगी।
कुछेक हफ्ते में इंडेक्स में आई तेजी को अच्छे सुधार के संकेतों के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। लंदन स्थित ग्लोबल मैरिटाइम इन्वेस्टमेंट के एक अधिकारी कहते हैं, ‘हम शुरुआत कर चुके हैं लेकिन मुझे नहीं लगता है कि हम जल्दी ही ऊंचाईयों को छूने जा रहे हैं।’
जोखिम की बात यह है कि लदाई के भविष्य में सुधार पेइचिंग द्वारा नवंबर में घोषित की गई 4 अरब युआन के प्रोत्साहन पैकेज से चीन के इस्पात निर्माताओं को सबसे अधिक लाभ मिलने की आशा पर टिका है। शर्मा कहते हैं कि भारतीय लौह अयस्क बाजार में आठ महीने बाइ आई तेजी को चीन के इस्पात उद्योग के उवल भविष्य के तौर पर देखा जा सकता है।
…लौटेगा तेजी का दौर
कीमतें जल्द ही बढ़कर 90 डॉलर प्रति टन होने के आसार
विश्व में सबसे अधिक लदान लौह अयस्क का होता है
पिछले साल लगभग 8,900 लाख टन लौह अयस्क का निर्यात समुद्री मार्ग से किया गया था, इसमें भारत की हिस्सेदारी 1,000 टन थी
लौह अयस्क की लदाई मुख्य रूप से चीन के लिए की जा रही है।