सोने का कारोबार होगा मंद, भाव में संभव है 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 10:15 PM IST

लंदन स्थित कंसलटेंसी और शोध कंपनी गोल्ड फील्ड मिनेरल सर्विसेज लिमिटेड (जीएफएमएस)ने भविष्यवाणी की है कि साल 2009 की पहली छमाही में सोने की कीमतें 23 प्रतिशत से अधिक बढ़ कर 1,000 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच सकती हैं।


इसकी वजह बताते हुए जीएफएमएस ने कहा कि वैश्विक आर्थिक प्रणाली के दबाव में आने और बैंकों की विफलता के कारण खुदरा निवेशकों के सोने की मांग में बढ़ोतरी हो रही है।

स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की भविष्यवाणी है कि सोने की कीमत साल 2009 में औसत 875 डॉलर प्रति औंस और साल 2010 में 1,100 डॉलर प्रति औंस रहेगी और इस दौरान आर्थिक दबावों के कारण आभूषणों की खरीदारी भी कम होगी।

आर्थिक संकट के बने रहने के कारण बैंक का अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में और बुरी खबरें सुनने को मिल सकती हैं। बार्कलेज कैपिटल का आकलन है कि साल 2009 में सोने की औसत कीमत 820 डॉलर प्रति औंस रहेगी जो साल 2008 के 870 डॉलर प्रति औंस की कीमत से कम होगी।

दीर्घावधि में, संभवत: साल 2010 के अंत तक डॉलर के मजबूत होने, कच्चे तेल की कीमतें घटने और अपस्थिति की आशंका की वजह से सोने की कीमतें और अधिक घट कर 650 डॉलर प्रति औंस हो सकती है।

कॉमट्रेंड्ज रिसर्च संभावना जता रहा है कि कुछ महीनों में सोने की कीमतें 1,000 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच जाएंगी। अमेरिका के राजकोषीय और कारोबारी घाटे के अप्रबंधनीय होने से डॉलर में कमजोरी आएगी जिससे सोना 1,200 डॉलर प्रति औंस के स्तर को छू सकता है।

वर्तमान में सोने की कीमत 812 डॉलर प्रति औंस है। निवेशक और उपभोक्ताओं द्वारा सुरक्षित निवेश के तौर पर भारी खरीदारी किए जाने से 17 मार्च 2008 को इसकी कीमतें 1,011 डॉलर प्रति औंस की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई थी।

जीएफएमएस के कार्यकारी अध्यक्ष फिलिप क्लापविज का अनुमान है कि आक्रामक वित्तीय नीति और अमेरिका तथा अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अल्पावधि के ब्याज दर के ऐतिहासिक रूप से कम होने के कारण महंगाई वृध्दि की आशंका से इस साल कीमतों में मजबूती रहेगी।

इसके अतिरिक्त अमेरिकी राजकोषीय घाटे को देखते हुए विदेशी कर्जदारों की बढ़ती चिंता के कारण ऋण बाजार कमजोर होगा और इससे डॉलर में कमजोरी आएगी। इसके साथ-साथ फिलहाल चल रहे माहौल में जहां वास्तविक ब्याज दर ऋणात्मक है, से सोने को ज्यादा समर्थन मिलना चाहिए।

जीएफएमएस का मानना है कि वैश्विक आर्थिक चक्रवात के कारण कंपनियों की वैकल्पिक परिसंपत्तियों में होने वाली आय में दिलचस्पी कम हो गई है लेकिन कमजोर होते शेयर बाजारों के कारण इसमें फिर से तेजी आ सकती है।

एक बार जब निवेंशकों द्वारा भुनाए जाने की वजह से फंडों की बिकवाली और इस तरह की घटनाएं कम होती हैं तो पूंजी का एक बड़े हिस्से, जिसे अभी अलग कर रखा गया है, का निवेश सटोरियों की बढ़ती दिलचस्पी के बीच सोने में किया जा सकता है।

सितंबर में लीमान ब्रदर्स के धराशाई होने के बाद ‘पेपर’ और भौतिक बाजार के बीच का फर्क खास तौर पर देखा गया। जीएफएमएस का मानना है कि नये निवेश के इस लहर सेकीमतों में संभवत: तेजी आएगी।

निवेशकों का एक खास वर्ग, प्रमुख रूप से यूरोप और उत्तरी अमेरिका के खुदरा और धनाढय निवेशक चौतरफा होते घाटे और मार्जिन कॉल के लिए नकदी जुटाने के उद्देश्य से फंडों की जबरदस्त बिकवाली की बदौलत सुरक्षित रहे।

क्लापविज ने कहा, ‘अगर इस तरह की बिकवाली नहीं हुई तो सोने की कीमतें आसानी से 1,000 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच सकती थी। मुझे पूरा भरोसा है कि सोने की कीमतों में तेजी आने वाली है।’

यद्यपि, कमजोर मांग से पहुंची हानि की भरपाई कुछ हद तक आपूर्ति कम होने से हो गई है और इस कारण अल्पावधि में सोने के फंडामेंटल में कोई खास बदलाव नहीं हुआ।

2009 की उम्मीदें


जोखिम से बचने या धन सुरक्षित रखने के उद्देश्य से साल 2009 की पहली छमाही में सोने की मांग बढ़ कर लगभग 400 टन हो जाएगी।

सोने के बिस्कुट में निवेश साल 2008 में बढ़ा और साल 2009 की पहली छमाही में इसमें सालाना आधार पर बढ़ोतरी की संभावना।

उत्पादकों की डी-हेजिंग में अस्थायी तौर पर 23 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 350 टन से कम रहा। साल 2009 की पहली छमाही के लिए अनुमान है कि इसमें भारी गिरावट आएगी।

दूसरे सीबीजीए के तहत बिक्री 2,000 से 2,500 टन होने का अनुमान है।

First Published : January 16, 2009 | 9:44 PM IST