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मांग बढ़ने से जौ ने कीमत का पिछला रेकॉर्ड तोड़ा

Last Updated- December 07, 2022 | 2:05 AM IST

अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग होने से जौ की कीमत में तेजी आना जारी है।


यह तेजी पहले के उस अनुमान के विपरीत है जिसमें अंदाजा लगाया गया था कि इस बार अधिक उत्पादन होने से इसकी कीमत पिछले सीजन के 1,300 रुपये प्रति क्विंटल और दो साल पहले  के 700 रुपये के बीच तक चली जाएगी।

निर्यातकों और घरेलू शराब निर्माता कंपनियों की ओर से बढ़ती मांग ने जौ के भाव को फिलहाल आसमान पर पहुंचा दिया है। अभी एक महीने से भी कम पहले वायदा बाजार में ठीक अगले महीने का जौ का भाव 22 फीसदी की छलांग लगाकर अब तक के उच्चतम स्तर 1,344 रुपये प्रति क्विंटल तक चला गया था।

कमोडिटी बाजार के सूत्रों के अनुसार, इसमें अभी भी 30 से 40 रुपये प्रति क्विंटल तक की तेजी की गुंजाइश बरकरार है। उल्लेखनीय है कि इस साल जौ का उत्पादन पिछले साल के 12 लाख टन से 33 फीसदी ज्यादा यानि करीब 16 लाख टन होने का अनुमान है। कारोबारियों का अंदाजा था कि इस सीजन में अधिक उत्पादन होने से जौ के भाव में कमी आएगी और यह 1,000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चला जाएगा।

बाजार के मुताबिक, अक्टूबर-नवंबर में इसकी मांग सामान्य थी पर इस साल मार्च में जैसे ही जौ की नयी फसल बाजार में आयी विदेशी बाजार में जौ की मांग ने जोर पकड़ लिया। इस वजह से जौ की कीमत में अब तक नरमी नहीं आ पायी। राजस्थान के कारोबारियों ने बताया कि इस बार निर्यात ने 2.5 लाख टन का आंकडा छू लिया है। घरेलू मोर्चे पर देखा जाए तो पॉल्ट्री और शराब उद्योग जौ के दो बड़े उपभोक्ता समूह हैं।

गुड़गांव स्थित शराब उद्योग में तकरीबन 3.5 लाख टन सालाना जौ की खपत होती है। जयपुर के एक कारोबारी अभिषेक गोयल ने बताया कि जौ का स्टॉक फिलहाल स्टॉकिस्टों और किसानों के पास है। चूंकि अगली फसल आने में अभी 10 महीने की देर है इसलिए इसकी मांग के बढ़ने से कीमत में तेजी आना जारी रहेगा।

मंगलवार को जयपुर के जौ बाजार में तो जौ का हाजिर भाव 1,290 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया। मुंबई स्थित जानकारों के मुताबिक, इसके दाम बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय जौ के निर्यात की संभावना कम हो सकती है क्योंकि तब विदेशी और भारतीय जौ की कीमत में होने वाला अंतर कम रह जाएगा। उक्रेन जो इस मामले में भारत का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्द्धी है, से गुड़गांव आने वाले जौ की लागत इस समय 1,400 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रही है।

जाहिर है, ऐसे हालात में यहां से होने वाले जौ के निर्यात पर असर पड़ेगा। यूएस ग्रेन काउंसिल के भारतीय प्रतिनिधि अमित सचदेव के मुताबिक, मक्के के विपरीत जौ की उपज साल में एक ही बार होती है। पहले इसकी उपलब्धता साल भर तक होती थी पर अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है।

First Published - May 29, 2008 | 12:33 AM IST

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