वायदा कारोबार पर खासा असर डालेगा सीटीटी : सीआईआई

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 5:05 PM IST

कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) के रूप में करारोपण से जिंसों के वायदा कारोबार पर नकारात्मक असर दिखना तय है।


भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के एक विस्तृत सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि इस कर के चलते वायदा कारोबार की मात्रा 18 से 59 फीसदी तक कम हो सकती है। मई 2006 से अप्रैल 2008 के बीच वायदा बाजार में अच्छी-खासी हिस्सेदारी रखने वाले 5 सबसे महत्वपूर्ण जिसों पर यह सर्वेक्षण किया गया।

सीटीटी लगाए जाने के प्रस्ताव की घोषणा होने के एक हफ्ते के भीतर ये सर्वेक्षण किए गए। सर्वेक्षण से यह अनुमान उभरकर सामने आया कि सोना कारोबार में 59 फीसदी, कच्चा तेल में 57 फीसदी, चना में 56 फीसदी, तांबा में 53 फीसदी और रिफाइंड सोयाबीन तेल में 18 फीसदी की कमी हो सकती है।

अगले दो साल के लिए बताए गए अनुमान में कहा गया है कि चना के कारोबार पर इस कर का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ेगा। चना के कारोबार में इस दौरान सबसे ज्यादा 93 फीसदी जबकि तांबा में 36 फीसदी की कमी आने की बात कही गयी है। मालूम हो कि बजट 2008-09 में कमोडटी एक्सचेंज में किए जाने वाले लेन-देन पर ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) लगाने का प्रस्ताव किया गया था।

इसके तहत हर एक लाख रुपये मूल्य के जिंसों के लेन-देन पर 17 रुपये सीटीटी के रूप में देना पड़ेगा। जबकि सीटीटी लगाए जाने से पहले एक्सचेंज में होने वाले लेन-देन का खर्च महज 2 रुपये प्रति लाख पड़ता था। इस तरह सीटीटी लागू होने के बाद जिंसों के लेन-देन पर होने वाले खर्च में अचानक 8 गुने से अधिक की वृद्धि हो जाएगी।

सीआईआई ने पाया कि पूरी दुनिया में कहीं भी जिंसों के लेन-देन पर सीटीटी जैसे किसी कर का आरोपण नहीं होता। फिलहाल, ऐसा केवल हमारे देश में ही हो रहा है। सीआईआई के अनुसार, सीटीटी जैसे किसी कर लगाए जाने के बाद ये डर सता रहा है कि वैश्विक बाजार की तुलना में देश के जिंस बाजारों की सेहत बिगड़ जाएगी।

इस साल बजट में प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) के रास्ते पर चलते हुए सरकार ने सीटीटी का प्रस्ताव किया। उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि एसटीटी और शेयरों के कारोबार का रिश्ता बड़ा ही संवेदनशील है। मतलब कि एसटीटी का कारोबार पर नकारात्मक असर पड़ता है।

उदाहरण के लिए, स्वीडन में 1986 में 2  फीसदी एसटीटी लगाया गया था। दस्तावेजों के मुताबिक, इसके 7 साल बाद वहां के शेयर बाजार में 11 सबसे सक्रिय स्वीडिश शेयरों के लेनदेन में 60 फीसदी तक की कमी हो गयी थी। उसी प्रकार, भारत में भी 9 जुलाई 2004 (जब एसटीटी लागू करने की घोषणा हुई थी) के बाद शेयरों के लेनदेन में आश्चर्यजनक कमी देखी गयी।

वित्तीय वर्ष 2003-04 के दौरान देश के शेयर बाजारों में औसतन 4,476 करोड़ रुपये का लेनदेन हो रहा था, वहीं 2006-07 के बीच यह लेनेदन 80 फीसदी घटकर महज 898 करोड़ रुपये रह गया था। सीआईआई के सर्वेक्षण बताते हैं कि सीटीटी लगाए जाने का वही असर होगा जो एसटीटी लगाए जाने के बाद शेयर बाजार का हुआ था।

सीआईआई का यह अध्ययन उन्हीं मानदंडों का पालन करती है जो एसटीटी के असर के अध्ययन के लिए बनाई गई समिति ने किया था। जिंसों का टर्नओवर संबंधित जिंस के टर्नओवर रेट, लेनदेन लागत, सेंसेक्स और कंपोजिट कमोडिटीज इंडेक्स पर निर्भर करता है। इस शोध के निष्कर्षों के आधार पर सीआईआई का कहना है कि सीटीटी लगाए जाने से जिंसों के लेनदेन पर नकारात्मक असर पड़ना तय है।

First Published : August 18, 2008 | 3:56 AM IST