पिछले छह वर्षों में पहली बार आने वाले सीजन में देश के कपास उत्पादन में कमी देखने को मिल सकती है।
यद्यपि टेक्सटाइल मंत्रालय के अनुसार इस साल की फसल का आकार मामूली तौर पर बढ़ा है लेकिन कपास विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक उत्पादन 300 लाख बेल (1 बेल=170 किलोग्राम) या उससे कम हो सकता है।
इससे पहले साल 2002-03 में उत्पादन में कमी आई थी जब देश में 136 लाख बेल का उत्पादन हुआ था जबकि इससे पिछले साल 158 लाख बेल का उत्पादन हुआ था। हालांकि, इसके बाद बड़े पैमाने पर बीटी कॉटन का इस्तेमाल किए जाने से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिली।
देश के प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बुआई की अवधि के दौरान बारिश अपर्याप्त हुई थी। भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के अनुसार कपास के कपास के अंतिम उत्पादन पर इसका भारी असर देखने को मिल सकता है। इसके अतिरिक्त कपास की खेती का रकबा भी घट कर 90 लाख हेक्टेयर होगया है जो पिछले वर्ष 95.5 लाख टन था।
सीसीआई के एक अधिकरी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, ‘कपास की फसल को बुआई के दौरान जब अच्छी बारिश की जरुरत होती है तो वह मिल नहीं पायी। और जब बारिश शुरू हुई तो इससे विकास बाधित हुआ और पौधों के उत्पादन पर असर पड़ा। मेरा मानना है कि आने वाले वर्ष में उत्पादन 275 और 300 लाख बेल के बीच रहेगा।’
साल 2007-08 में देश में 315 लाख बेल कपास का उत्पादन हुआ था जो वर्ष 2006-07 के 280 लाख बेल की तुलना में 12.5 प्रतिशत अधिक था। इसमें से 100 लाख बेल का निर्यात किया गया था जो देश के इतिहास में सर्वाधिक है। इसके परिणामस्वरुप कपास की कीमतों में बढ़ोतरी हुई जो इस वर्ष ऐतिहासिक ऊंचाई पर था।
30 अगस्त को कपास के शंकर-6 किस्म की कीमत 28,500 रुपये प्रति कैंडी (1 कैंडी=356 किलोग्राम) था जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में कीमत प्रति कैंडी 20,400 रुपये थी। स्पष्ट है कि इसमें 39.71 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
अभी के समय में सरकार का आकलन में अस्पष्ट है। कपड़ा मंत्री शंकरसिंह वाघेला ने हाल ही में कहा, ‘कपास का उत्पादन लगभग 325 लाख बेल होने की उम्मीद है।’ हालांकि, मंत्रालय के उच्च पदस्थ अधिकारियों का कहना है कि उत्पादन लगभग 310 लाख बेल होगा।
कपास विकास निदेशालय के निदेशक अनुपम बारिक ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अपरिपक्व फूलों के कारण यह संभव है के कपास का उत्पादन 300 लाख बेल से कम हो। जब उनसे पूछा गया कि क्यागुजरात की अधिक उत्पादकता और बीटी कॉटन के बीजों का बड़े पैमाने पर किया गया इस्तेमाल (70 से 80 प्रतिशत) देर से हुई बारिश की क्षतिपूर्ति कर सकता है, बारिक ने सवाल पूछते हुए जवाब दिया, ‘कितने नुकसान की क्षतिपूर्ति की जा सकती है?’
इंटरनेशनल कॉटन एडवाइजरी कमिटी (आईसीएसी) ने वर्ष 2008-09 में 247.3 लाख टन कपास के वैश्विक उत्पादन का अनुमान लगाया है जो वर्ष 2007-08 के 262.4 लाख टन की तुलना में 5.75 प्रतिशत कम है।
यद्यपि कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का आकलन है कि साल 2008-09 में 330 लाख बेल कपास का उत्पादन होगा। जबकि कपास उद्योग से जुड़े लोगों ने इसे ‘संभावित आकलन’ बताया। वे इस वास्तविकता से सहमत हैं कि उत्पादन कम होगा।
महाराष्ट्र के कपास उत्पादन क्षेत्र के आधे से कम क्षेत्र में इस समय ठीक से बुआई हुई है। कपड़ा मंत्रालय के संयुक्त सचिव जे एन सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस वर्ष राज्य को भारी नुकसान हुआ है। देश के कुल कपास उत्पादन क्षेत्र का एक तिहाई रकबा महाराष्ट्र में है जो 32 लाख हेक्टेयर का है। साल 2007-08 में इस राज्य में 62 लाख बेल कपास का उत्पादन हुआ था।
गिल ऐंड कंपनी के मुख्य कार्यकारी ऋषभ जे शाह ने कहा, ‘कपास की फसल को समय पर बारिश की आवश्यकता होती है जो इस साल कपास उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र में नहीं हुई है। हमारा अनुमान है कि उत्पादन 310 लाख बेल के आसपास होगा। उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में देर से हुई बढ़ोतरी पर प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी बुआई के समय होनी चाहिए थी। इससे कपास की खेती के रकबे में वृध्दि हो सकती थी।’