1 अप्रैल 2023 से सोने (gold) की खरीद पर टैक्स के नियमों में बदलाव किए गए हैं, इसलिए आज यानी 22 अप्रैल 2023 को अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के शुभ मौके पर अगर आप सोना खरीदने जा रहे हैं तो आपको इस बात की जानकारी जरूर होनी चाहिए कि आखिर सोने के अलग-अलग फॉर्म में निवेश करने पर कैसे और कितना टैक्स लगता है?
फिजिकल गोल्ड (physical gold)
फिजिकल गोल्ड पर टैक्स नियमों को लेकर कोई बदलाव नहीं किया गया है। मतलब फिजिकल गोल्ड पर इंडेक्सेशन (Indexation) के फायदे के साथ लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) का प्रावधान 1 अप्रैल 2023 के बाद भी पहले की तरह ही हैं ।
जब आप सोना फिजिकल फॉर्म में यानी ज्वेलरी (गहने), सिक्के, बार (बिस्किट) खरीदते हो तो टैक्स होल्डिंग पीरियड (खरीदने के दिन से लेकर बेचने के दिन तक की अवधि) के आधार पर लगता है।
नियमों के अनुसार अगर आप फिजिकल गोल्ड खरीदने के बाद 36 महीने पूरे होने से पहले बेच देते हैं तो होने वाली कमाई यानी लाभ को शार्ट-टर्म कैपिटल गेन (STCG) माना जाएगा। जो आपके ग्रॉस टोटल इनकम में जोड़ दिया जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना होगा। लेकिन अगर आप 36 महीने पूरे होने के बाद बेचते हैं तो लाभ यानी कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस और सरचार्ज मिलाकर 20.8 फीसदी) लांग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स देना होगा। इंडेक्सेशन के तहत महंगाई के हिसाब से पर्चेज प्राइस को बढा दिया जाता है। जिससे कैपिटल गेन में कमी आती है और टैक्स देनदारी घटती है।
वहीं फिजिकल गोल्ड खरीदने के समय गोल्ड के वैल्यू और मेकिंग चार्ज के ऊपर 3 फीसदी जीएसटी भी देना होता है। वहीं, अगर अपने पास उपलब्ध सोने से ज्वेलरी बनवाते हैं या अपने पास की यानी पुरानी ज्वेलरी से दूसरी यानी नई ज्वेलरी री-डिजाइन करवाते हैं तो इसके एवज में दिए जाने वाले मेकिंग चार्ज पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) का प्रावधान है।
गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड म्युचुअल फंड (gold ETF, gold mutual fund)
गोल्ड ईटीएफ (gold ETF) और गोल्ड म्युचुअल फंड (gold mutual fund) पर टैक्स डेट फंड/ debt fund (35 फीसदी से ज्यादा इक्विटी नहीं) की तरह लगता है। मतलब अगर आप इन्हें बेचते हैं तो उससे होने वाली कमाई को आपकी कुल आय में जोड़ दिया जाएगा। जिस पर आपको अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स चुकाना होगा।
1 अप्रैल 2023 से पहले डेट फंड की तर्ज पर गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्युचुअल फंड पर भी इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) का प्रावधान था, बशर्ते आप खरीदने के 36 महीने पूरे होने के बाद बेचते हैं।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond)
पेपर गोल्ड में निवेश के एक अन्य बेहद प्रचलित विकल्प यानी सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (SGB) पर टैक्स नियम अलग हैं। नियमों के अनुसार अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को उसकी मैच्योरिटी यानी 8 साल तक होल्ड करते हैं तो रिडेम्प्शन के समय आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन अगर आपने मैच्योरिटी पीरियड से पहले रिडीम किया तो टैक्स फिजिकल गोल्ड की तरह ही लगेगा।
मतलब अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड खरीदने के बाद 36 महीने से पहले बेच देते हैं तो होने वाली कमाई यानी लाभ को शार्ट-टर्म कैपिटल गेन (STCG) माना जाएगा। जो आपके ग्रॉस टोटल इनकम में जोड़ दिया जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना होगा। लेकिन अगर आप 36 महीने बाद बेचते हैं तो लाभ पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस और सरचार्ज मिलाकर 20.8 फीसदी) लांग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स देना होगा।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को पांच साल के बाद रिडीम करने का विकल्प होता है। साथ ही वैसे बॉन्ड धारक जिन्होंने डीमैट फॉर्म में भी बॉन्ड लिया है वे कभी भी स्टॉक एक्सचेंज पर इसे बेच सकते हैं।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर प्रत्येक वित्त वर्ष 2.5 फीसदी ब्याज (कूपन) भी मिलता है। लेकिन इस ब्याज पर टैक्स में छूट नहीं है। मतलब यह ब्याज अन्य स्रोतों से होने वाली आय के तौर पर आपके ग्रॉस इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा। एक बात और — सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस का प्रावधान नहीं है।
सलाह
अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को उसकी मैच्योरिटी तक होल्ड कर सकते हैं तो टैक्स के नजरिए से यह निवेश का सबसे बेहतर विकल्प है। क्योंकि मैच्योरिटी पीरियड के बाद अगर आप सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को रिडीम करते हैं तो रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं लगता है।
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