केंद्रीय बजट में विलय-अधिग्रहण को सुगम बनाने के लिए एक नई व्यवस्था का वादा किया गया है। इसी क्रम में नुकसान को अगले साल में ले जाने के नियमों में एक बड़ी खामी को दूर किया गया है। इसके तहत विलय करने वाली कंपनी और विलय वाली कंपनी के बीच नुकसान को आगे बढ़ाने के लिए कुल आठ वर्षों की गणना विलय की तारीख के बजाय नुकसान की तारीख से करने का प्रस्ताव किया गया है। 1 अप्रैल 2025 को या उसके बाद किए जाने वाले सभी विलय-अधिग्रहण सौदों में नुकसान को केवल शेष अवधि (नुकसान की तारीख से गणना) के लिए आगे ले जाया जा सकता है।
डेलॉयट इंडिया में पार्टनर अमरीश शाह ने कहा कि नुकसान को अगले साल ले जाने पर नियंत्रण के कारण विलय अब अधिक आकर्षक नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा, ‘अगर अधिग्रहणकर्ता द्वारा नुकसान का फायदा उठाने के लिए विलय की योजना बनाई जाती है तो नीलामी की प्रक्रिया में ऋण शोधन अक्षमता और दिवालिया मामलों को पूरी कीमत नहीं मिल सकती है।’
ध्रुव एडवाइजर्स में पार्टनर अभिषेक मूंदड़ा ने कहा कि विलय-अधिग्रहण के तहत अगले साल के लिए टालने लायक नुकसान अब हमेशा के लिए सदाबहार नहीं रखा जा सकता है। ऐसे नुकसान को निपटाने के लिए समय सीमा मूल पूर्ववर्ती कंपनी द्वारा पहली बार नुकसान की गणना के बाद अगले आठ कर निर्धारण वर्षों तक सीमित रहेगी। उन्होंने कहा, ‘यह 1 अप्रैल, 2025 को और उसके बाद होने वाले विलय सौदों पर लागू होगा। इन प्रावधानों को कारोबार अलग करने संबंधी प्रावधानों के अनुरूप बनाया गया है।’
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में विलय की आवश्यकताओं और प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाने की घोषणा की है। यह कारोबारी सुगमता बेहतर करने की दिशा में सरकार का एक और कदम है। अधिकारियों के अनुसार इन बदलावों से न केवल घरेलू बलिक भारत के बाहर के विलय-अधिग्रहण की गतिविधियों को भी फायदा होगा।
बैंकरों और कर विशेषज्ञों ने कहा कि छोटी कंपनियों के लिए कुछ अपवाद स्वरूप फास्ट ट्रैक मार्ग को छोड़ दिया जाए तो मौजूदा विलय-अधिग्रहण सौदे आम तौर पर राष्ट्रीय कंपनी विधिक पंचाट (एनसीएलटी) के जरिये किए जाते हैं। मगर अधिक कागजी कार्रवाई के कारण यह प्रक्रिया काफी बोझिल हो चुकी है। साथ ही इसमें समय सीमा भी कारोबारी वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है।
कैटलिस्ट एडवाइजर्स के संस्थापक और प्रबंध निदेशक केतन दलाल ने कहा, ‘निजी कंपनियों के मामलों में आम तौर पर 6 से 9 महीने लग जाते हैं जबकि सूचीबद्ध कंपनियों के लिए करीब 1 साल का समय लगता है। इस अवधि में काम करने से गंभीर व्यावसायिक समस्याएं पैदा होती हैं। वित्त मंत्री ने इस पहलू पर गौर करते हुए अपने बजट भाषण में कुछ सुधार के उपाय सुझाए हैं लेकिन विस्तृत विवरण नहीं दिया है।’
बीडीओ इंडिया में पार्टनर (विलय-अधिग्रहण एवं नियामकीय सेवाएं) अनीश शाह ने कहा कि फास्ट ट्रैक विलय प्रावधानों में छूट दिए जाने से संस्थान उन्हें अपनाने के लिए प्रेरित होंगे। ऐसे में विलय के एनसीएलटी मार्ग के मुकाबले समय सीमा और आवश्यक अनुपालन कम हो जाएगा।
सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में प्रस्तावित सौदे के लिए शेयर बाजार से मंजूरी लेना आवश्यक है। इससे समय सीमा में करीब तीन महीने का समय और लग जाता है और पूरी प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में एक साल से भी अधिक वक्त लगता है। मगर छोटी कंपनियों के लिए फास्ट ट्रैक प्रकिया के तहत केवल कंपनी मामलों के मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक से मंजूरी लेने की जरूरत होती है।
पीडब्ल्यूसी में लीडर (सौदे) भाविन शाह ने कहा, ‘इसका उद्देश्य फास्ट ट्रैक विलय का दायरा बढ़ाना है।’ इस बदलाव पर काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और विलय प्रक्रिया में लगने वाला समय 12 महीने से घटकर महज 3 महीने रह गया।