अंतरिम बजट में अपेक्षा करना बिल्कुल ठीक नहीं था इस लिहाज से यह बजट ठीक ही कहा जा सकता है। इस बजट में भी किसान और कृषि क्षेत्र की बात की गई।
कृषि पर तवज्जो दिए जाने पर कॉर्पोरेट जगत को हर बार दुख होता है इसलिए इस बार भी ऐसा ही हुआ। सरकार ने इस अंतरिम बजट में कृषि कर्ज की राशि में तीन गुना बढ़ोतरी की है और उसे बढ़ाकर 25 लाख करोड़ किया है, लेकिन अगर कर्ज के बजाय उनकी आय में इजाफा करने के लिए कोशिश होती तो बेहतर होता।
हर बार सरकार अपने बजट में किसानों को कर्ज देकर खुश होती है जबकि जरूरत है उनकी निश्चत आय को बढ़ाने की। आय बढ़ने से किसान, कर्ज चुकाने की क्षमता को भी बढ़ा सकते हैं। इससे खर्च करने की क्षमता भी बढ़ेगी और वे खरीदार के रूप में अर्थव्यवस्था में अपना योगदान भी दे पाएंगे।
हर साल के बजट में सरकार जैसे कहती है वैसे ही इस साल भी प्रणव मुखर्जी ने किसानों को अर्थव्यवस्था का खास हिस्सा बताया है। वर्ष 2010 तक किसानों को लोन इंटरेस्ट पर सब्सिडी देने का प्रावधान भी बढ़िया है।
कृषि विकास दर को 3.7 फीसदी बताया जा रहा है लेकिन यह 4 सालों का औसत है। इस साल यह दर 2.5 फीसदी के करीब है। इस बार देश के 25 राज्यों में कृषि के लिए संशोधित प्रावधान के तहत 13,500 करोड़ रुपये दिए गए तो हर राज्य को 500 करोड़ रुपये से भी कम मिलेगा।
इसे खानापूर्ति ही कह सकते हैं। हालांकि सरकार ने खाद्य और खाद (फर्टिलाइजर)की सब्सिडी को बरकरार रखा है। लेकिन यह कृषि से जुड़े संकट से निकलने का कोई समुचित उपाय नहीं है।
इस बजट में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में 100 दिन के बजाय 365 दिनों के रोजगार का प्रावधान करना चाहिए था। इस बार सरकार ने कॉर्पोरेट जगत के लिए खजाना नहीं खोला।
वैसे कॉर्पोरेट जगत को दिसंबर और जनवरी में 2 प्रोत्साहन पैकेज दिए गए लेकिन आम आदमी को इससे कोई फायदा नहीं हुआ और लोगों की नौकरियां भी गई।
अगर इस बार भी सरकार कॉरर्पोरेट जगत को फायदा देने की कोशिश करती तो इससे देश के चुनिंदा अमीरों के जेब में ही पैसे जाते।
बातचीत : शिखा शालिनी
मेरा मानना है कि सरकार ने इसमें अपने 5 साल का रिपोर्ट कार्ड पेश किया है, नए प्रस्ताव कम ही हैं। इसलिए कोई भी नई बात तभी आएगी, जब नई सरकार कार्यभार संभाल लेगी। इसमें पांच साल की उपलब्धियां ज्यादा गिनाई गई हैं। हमने और राहत की उम्मीद की थी।
नंदन नीलेकणि
इन्फोसिस
यह वित्त मंत्री का लॉलीपाप है। पिछले कुछ महीनों में ही 12 लाख से ज्यादा कामगारों की नौकरी चली गई है। सबसे बड़ी समस्या इस समय नौकरी को लेकर है, जिसके बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। जितना कुछ कहा गया है, उससे ज्यादा छिपाने की कोशिश की गई है।
गुरुदास दासगुप्ता
वामपंथी नेता