सरकार ने शेयर पुनर्खरीद पर कर का बोझ अब कंपनियों से प्रवर्तकों पर डाल दिया है। इस कदम से सरकार को संभवत: ज्यादा कर हासिल करने में मदद मिलेगी और वह खामी दूर होगी, जो कर का बोझ सभी शेयरधारकों पर डालता है, चाहे उसने पुनर्खरीद में हिस्सा लिया है या नहीं।
अभी शेयर पुनर्खरीद करने वाली कंपनियों को प्रभावी तौर पर 20 फीसदी से ज्यादा पुनर्खरीद कर के तौर पर चुकाना होता है। इस बीच, अपने शेयर टेंडर करने वाले शेयरधारकों को कई कर नहीं देना होता। बजट प्रस्ताव करीब चार साल बाद आया है जब सरकार ने लाभांश पर कर का बोझ कंपनियों से प्रापक पर डाला था, जो उसके टैक्स स्लैब पर आधारित होता है।
लाभांश व पुनर्खरीद शेयरधारकों को नकदी लौटाने के लिए होते हैं। चूंकि लाभांश पर ज्यादा कर लगता है, ऐसे में नकदी संपन्न कई फर्में (खास तौर से आईटी क्षेत्र की) अपने प्रवर्तकों को कर में बचत के लिए पुनर्खरीद का विकल्प चुनती हैं।
दिसंबर में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने 17,000 करोड़ रुपये की पुनर्खरीद का कार्यक्रम पूरा किया। प्रवर्तक टाटा संस ने इसमें 12,284 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।
इससे पहले टाटा संस ने साल 2017, 2021 और 2022 में पुनर्खरीद में अपने शेयर बेचे थे। नियामकीय सूचना में प्रवर्तक ने इन पुनर्खरीदों से कुल 5 अरब डॉलर यानी 41,895 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इस तरह की आसानी को देखते हुए कंपनियां अपने शेयरधारकों को लाभांश के बजाय पुनर्खरीद के जरिये नकदी लौटाना पसंद करती हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि कर ढांचे में बदलाव और इससे जुड़ी जटिलताओं से कंपनियां पुनर्खरीद से दूरी बना सकती हैं।
नए ढांचे के तहत पुनर्खरीद से मिली पूरी रकम पर अब लाभांश की तरह निवेशकों को कर चुकाना होगा, जो उसके टैक्स स्लैब पर आधारित होगा। इस बीच, पुनर्खरीद में टेंडर किए गए शेयरों के अधिग्रहण की लागत को पूंजीगत नुकसान माना जाएगा, जो अन्य पूंजीगत लाभ से घटाने की पात्रता रखेगा या फिर इसे कैरी फॉरवर्ड किया जा सकेगा।
डेलॉयट ने एक नोट में कहा, यह पुनर्खरीद पर कराधान को और जटिल बनाता है क्योंकि पूंजी के नुकसान का फायदा सिर्फ भविष्य में उपलब्ध होगा जब निवेशक ने अन्य पूंजीगत लाभ हासिल किया होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक, एक अन्य असामान्य रास्ता यह है कि पुनर्खरीद की घोषणा कंपनी बाजार भाव से काफी प्रीमियम पर करे ताकि प्रवर्तक को उच्च कर बोझ की भरपाई में मदद मिले।