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पिछले पांच सालों में तेज़ी से बढ़ी ऑटोमोबाइल्स की कीमतों में अब थोड़ी राहत मिल सकती है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले चार से पांच वर्षों में गाड़ियों की कीमतों में बढ़ोतरी की रफ्तार धीमी पड़ सकती है।
मार्केट रिसर्च फर्म Jato Dynamics के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 में गाड़ियों की औसत कीमत ₹8.07 लाख थी, जो 2024 में बढ़कर ₹11.64 लाख हो गई। यानी इस दौरान गाड़ियों की औसत कीमतों में करीब 41 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
विश्लेषकों का अनुमान है कि 2029 तक यह औसत कीमत ₹14.72 लाख तक पहुंच सकती है। 2019 से 2025 (अब तक) के बीच गाड़ियों की कीमतें 5.6 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (CAGR) से बढ़ी हैं। हालांकि, 2026 से 2029 के बीच इस बढ़ोतरी की रफ्तार घटकर 4.5 फीसदी रहने की संभावना जताई गई है।
सिर्फ 2019 से 2024 के बीच ही कीमतों में सालाना औसतन 7.6 फीसदी की तेज़ बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो आने वाले वर्षों की तुलना में काफी ज्यादा है।
वाहनों की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी के पीछे तीन मुख्य कारण हैं—इनपुट लागत में इजाफा, सरकारी नियमों का पालन और प्रीमियम फीचर्स की बढ़ती मांग।
जानकारों के अनुसार, स्टील, एल्युमीनियम और कॉपर जैसी कच्ची धातुओं की कीमतों में हर साल 15 से 25 फीसदी तक उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। वहीं, इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की बैटरियों में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ एलिमेंट्स की कीमतों में भी 30 फीसदी से ज्यादा की तेजी आई है। इसकी वजह है इनकी सीमित आपूर्ति और बढ़ती इलेक्ट्रिफिकेशन की मांग।
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Jato Dynamics के प्रेसिडेंट रवि भाटिया ने बताया कि सरकारी नियमों के तहत जरूरी सुरक्षा फीचर्स से हर वाहन की कीमत में ₹15,000 से ₹25,000 तक का इजाफा हुआ है। इसके अलावा BS-VI उत्सर्जन मानकों को पूरा करने में ₹8,000 से ₹15,000 का अतिरिक्त खर्च आया। अब BS-VII और और कड़े सुरक्षा मानकों के लागू होने की संभावना है, जिससे 2028 तक वाहनों की कीमत में और ₹20,000 से ₹30,000 तक का बोझ जुड़ सकता है।
पिछले कुछ सालों में ग्राहक ज्यादा सुविधाजनक और लग्जरी वाहनों की तरफ रुख कर रहे हैं, खासतौर पर SUV की मांग बढ़ी है, जो सामान्य कारों की तुलना में 20 से 30 फीसदी महंगी होती हैं। इसके अलावा, इनफोटेनमेंट सिस्टम, कनेक्टिविटी टूल्स और एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम (ADAS) जैसे फीचर्स के कारण भी हर गाड़ी की कीमत में ₹25,000 से ₹50,000 तक का इजाफा हो रहा है।
Year | Average Retail Price (Rs)* |
2019 | 807,002 |
2020 | 830,029 |
2021 | 930,409 |
2022 | 1,034,244 |
2023 | 1,136,370 |
2024 | 1,163,584 |
YTD 2025 | 1,184,093 |
2026 | 1,250,402 |
2027 | 1,320,425 |
2028 | 1,394,369 |
2029 | 1,472,453 |
*Only Mass Market OEMs are considered
Source: Jato Dynamics
भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में प्रीमियम सुविधाओं की मांग लगातार बढ़ रही है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि Hyundai Motor India ने पिछले पांच सालों में 1.1 मिलियन से ज्यादा सनरूफ वाली गाड़ियां बेच दी हैं।
कंपनी के अनुसार, साल 2024 में इसकी घरेलू बिक्री में 52% गाड़ियों में सनरूफ शामिल था, जबकि जनवरी से जून 2025 तक यह आंकड़ा 54% तक पहुंच गया है।
हुंदै मोटर इंडिया के Whole-Time Director और COO तरुण गर्ग ने कहा, “यह उपलब्धि दर्शाती है कि अब आधुनिक भारतीय ग्राहक रोजमर्रा की यात्रा में भी प्रीमियम अनुभव को प्राथमिकता दे रहे हैं।”
इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ओर बढ़ते ट्रेंड ने ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की लागत और मूल्य निर्धारण को नए तरीके से प्रभावित किया है। फिलहाल, ईवी निर्माण लागत में लिथियम-आयन बैटरियों की हिस्सेदारी 35 से 40 फीसदी तक है। इन बैटरियों की कीमत अभी $120–150 प्रति किलोवॉट-ऑवर तक है।
इसके साथ ही, कंपनियां एक साथ पेट्रोल-डीजल (ICE) और इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर काम कर रही हैं, जिससे रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) की लागत भी बढ़ी है।
हालांकि, उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में लागत और कीमतों में स्थिरता आएगी।
Bhatia के अनुसार, “2029 तक औसत बिक्री मूल्य (ASP) ₹14.72 लाख तक पहुंच सकता है, लेकिन 2026 से 2029 के दौरान इसकी वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) घटकर 4.5% रह सकती है, जो 2022 से 2025 के दौरान 5.6% थी। इसका कारण लागत बढ़ाने वाले और कम करने वाले कारकों के बीच संतुलन है।”
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की हालिया रिपोर्ट में भी ऐसा ही अनुमान लगाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025 से 2028 के दौरान Hyundai की औसत बिक्री कीमतों में 4% की वार्षिक बढ़ोतरी हो सकती है।
वाहन कंपनियां अब लागत पर नियंत्रण के लिए कई उपाय कर रही हैं। Bhatia ने बताया, “2025 तक 15% और 2035 तक 25% तक वाहन का वजन घटाने का लक्ष्य है। इसके लिए कंपनियां हाई-स्ट्रेंथ स्टील, एल्युमीनियम मिश्र धातु और हनीकॉम्ब डिजाइन का इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि प्रदर्शन के साथ-साथ सामग्री लागत भी घटे।”
इसके अलावा, वाहन निर्माण के लिए एक ही प्लेटफॉर्म पर अलग-अलग मॉडल तैयार करने की रणनीति अपनाई जा रही है। इस ‘मॉड्यूलर आर्किटेक्चर’ से लागत में 15–20% तक की कमी आ सकती है। बड़ी ऑटो कंपनियां अब भारतीय बाजार को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स में बदलाव कर रही हैं, जिससे उत्पादन की लागत कम हो और स्केल का फायदा मिले।
टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स और टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के मैनेजिंग डायरेक्टर शैलेश चंद्रा ने बताया कि कंपनी बीते पांच वर्षों से लागत को कम करने की दिशा में लगातार काम कर रही है। उन्होंने कहा, “नए प्रोडक्ट्स लॉन्च करने से हमें कॉमन कंपोनेंट्स के इस्तेमाल का मौका मिलता है, जिससे लागत घटाने में मदद मिलती है। हमने लोकल सप्लायर्स के साथ मिलकर हाई लेवल लोकलाइजेशन और जॉइंट कॉस्ट रिडक्शन प्रोग्राम्स पर काम किया है।”
उन्होंने आगे कहा कि ऐप डिजाइन में सुधार से भी लागत में कमी आई है। इसके साथ ही कंपनी के सभी प्रोडक्ट्स में कई कंपोनेंट्स को साझा किया जा रहा है, जिससे कॉस्ट स्ट्रक्चर और बेहतर हो रहा है। हालांकि चंद्रा का मानना है कि एंट्री-लेवल सेगमेंट में अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है ताकि ग्राहकों को बेहतर फीचर्स, रेंज और कीमत के संतुलन के साथ गाड़ियां मिल सकें।
2028 तक बैटरी की कीमतें $80–100 प्रति किलोवॉट ऑवर तक आने की संभावना है, जिससे इलेक्ट्रिक गाड़ियां पेट्रोल-डीजल वाहनों के मुकाबले कीमत में बराबरी कर सकती हैं। टेक्नोलॉजी का परिपक्व होना और मैन्युफैक्चरिंग का स्केल बढ़ना भी लागत कम करने में अहम भूमिका निभाएगा।
ऑटोमोबाइल कंपनियां इंडस्ट्री 4.0 टेक्नोलॉजी में निवेश कर रही हैं। ऑटोमेशन से लागत में 10–15% की कमी आ सकती है, जबकि IoT बेस्ड प्रीडिक्टिव मेंटेनेंस से खर्च 20–25% तक घट सकता है।
JATO के मुताबिक, “PLI स्कीम के तहत लोकलाइजेशन से इम्पोर्ट पर निर्भरता घटती है और करेंसी रिस्क भी कम होता है। इसके अलावा, स्ट्रैटजिक ग्लोबल सोर्सिंग और सप्लायर डेवलपमेंट से प्रतिस्पर्धा में भी बढ़त मिलती है।”