भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के बाहरी सदस्य राम सिंह | फाइल फोटो
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के बाहरी सदस्य राम सिंह का कहना है कि मुद्रास्फीति अनुमान से कम रही तो नीतिगत दरों में और कटौती की गुंजाइश बढ़ जाएगी। मनोजित साहा ने उनसे टेलीफोन पर बात की। मुख्य अंश:
ब्याज दरों में अगली कटौती की गुंजाइश अगस्त में या उसके बाद दिख रही है?
यह कहना फिलहाल मुश्किल है कि कमी अगस्त में होगी या बाद में क्योंकि यह मुद्रास्फीति की चाल पर निर्भर करेगा। मुझे लगता है कि दरों में और कमी की गुंजाइश अभी मौजूद है मगर देखना होगा कि मुद्रास्फीति के आंकड़े भी ऐसा कहते हैं या नहीं। वित्त वर्ष 2025 के लिए मुद्रास्फीति को 3.7 फीसदी के रिजर्व बैंक के अनुमान से कम रखने वाली कोई भी वजह दर कटौती की संभावना बढ़ाएगी। अगस्त की बैठक में हमें मुद्रास्फीति के अनुमान को भी ध्यान में रखना होगा।
तो क्या मई में मुद्रास्फीति के अनुमान से कम आंकड़े ने आपको राहत दी?
बिल्कुल। मगर दिक्कत यह है कि मुद्रास्फीति कम होने से अगले वित्त वर्ष के लिए इसका अनुमान ज्यादा हो सकता है। हमें पूरा असर समझना होगा क्योंकि नीतिगत दर में कटौती का फैसला भविष्य को भांपकर लिया जाता है।
रीपो दर 50 आधार अंक कम होने से बॉन्ड यील्ड बढ़ गई है। क्या इससे वृद्धि दर तेज करने के प्रयास को झटका नहीं लगा है?
ऐसा हुआ तो है मगर इसका असर मामूली ही रहेगा। मुझे लगता है कि मौद्रिक नीति के रुख में आए बदलाव पर बॉन्ड बाजार ने जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दे दी। हमारा राजकोषीय घाटा कम है, महंगाई भी नीचे है और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज वृद्धि दर हमारी ही है, इसलिए बॉन्ड से बाहर निकलने वाले विदेशी संस्थागत निवेश की कुल निकासी में मामूली हिस्सेदारी होगी।
क्या एमपीसी ने सोचा था कि रुख बदलने के क्या नतीजे हो सकते हैं?
हमने बाजार (बॉन्ड बाजार समेत) की प्रतिक्रिया सहित सभी संभावित निर्णयों पर मंथन किया था। बाजार को 25 आधार अंक कमी की अपेक्षा थी मगर हमने रीपो दर में 50 आधार अंक कमी की और रुख भी बदल दिया। दोनों फैसले एक साथ आने से बाजार को लग रहा है कि दर कटौती का सिलसिला खत्म हो गया है। मगर यह आधा-अधूरा आकलन ही कहा जा सकता है।
क्या कुछ ही समय के भीतर रीपो दर में 100 आधार अंक कटौती के बाद ऋण आवंटन तेज होने की उम्मीद है?
बिल्कुल। मेरे हिसाब से चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही तक ऋण आवंटन में तेजी आनी चाहिए। रिजर्व बैंक गवर्नर ने आश्वासन दिया है कि नकदी लंबे अरसे तक उपलब्ध कराई जाएगी। रीपो दर में कमी से बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन पर होने वाले असर को सीआरआर कटौती ने खत्म कर दिया है।