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BFSI Summit: परिस्थितियों के मुताबिक नीतिगत कार्रवाई की गुंजाइश बाकी – पूनम गुप्ता

आरबीआई की डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता ने कहा इस बात पर भी सहमति थी कि 4 प्रतिशत का लक्ष्य, भारत के मौजूदा आय स्तर और वृद्धि चरण के लिए उपयुक्त है।

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- October 29, 2025 | 10:52 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता ने बुधवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई शिखर सम्मेलन में ए के भट्टाचार्य के साथ बातचीत में कहा कि महंगाई को काबू में करने से जुड़े फ्रेमवर्क के विमर्श पत्र के अधिकांश उत्तरदाताओं ने मौजूदा फ्रेमवर्क को बनाए रखने का सुझाव दिया है, जिसमें मुख्य सीपीआई को लक्ष्य के रूप में रखा गया है। उन्होंने कहा कि इस बात पर भी सहमति थी कि 4 प्रतिशत का लक्ष्य, भारत के मौजूदा आय स्तर और वृद्धि चरण के लिए उपयुक्त है।

भारत का नीतिगत ढांचा अच्छा काम कर रहा है, लेकिन क्या आप दो कारकों से चिंतित हैं, पहला, वैश्विक स्तर पर बाजारों में संभावित रूप से भारी गिरावट की बढ़ती चर्चा है। दूसरा, संरक्षणवादी प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं, जहां टैरिफ लगभग एक हथियार बन गए हैं। ऐसे परिदृश्य में, उभरते बाजारों, खासतौर पर भारत को, तेजी से बदलते वैश्विक माहौल से कैसे निपटना चाहिए?

एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या भारत को एक विकसित राष्ट्र, विकासशील राष्ट्र या एक उभरता हुआ बाजार क्या बनने की आकांक्षा रखनी चाहिए। ये लक्ष्य साथ-साथ चलते हैं, क्योंकि आर्थिक समृद्धि एक विकासशील राष्ट्र बनने के लिए आवश्यक है। शब्दावली भले ही अलग हो, लेकिन उद्देश्य एक ही रहता है। जब कोई अर्थव्यवस्था बड़ी और अधिक समृद्ध होती जाती है, साथ ही वृहद आर्थिक स्थिरता बनाए रखती है और घरेलू तथा वैश्विक जटिलताओं के अनुरूप अपने नीतिगत ढांचे तैयार करती है तब उसे बाहरी झटकों से अधिक सुरक्षा मिलती है। इसी तरह देश विकसित अर्थव्यवस्था वाले क्लब में शामिल होते हैं, जैसा कि हमने दक्षिण कोरिया के साथ देखा है जो अब उस समूह में शामिल होने के करीब है।

जहां तक वैश्विक संरक्षणवाद से निपटने का आपका सवाल है तो चुनौती यह है कि त्वरित विकास की गति को बनाए रखने के लिए विकास के नए स्रोतों की पहचान की जाए। हाल के वर्षों में व्यापार एक मजबूत कारक नहीं रहा है और इसके वैश्वीकरण के शीर्ष चरण में देखे गए स्तरों पर लौटने की संभावना नहीं है। ऐसे में दो चीजें आवश्यक हैं और भारत पहले से ही दोनों कर रहा है। पहला, सुधारों पर लगातार ध्यान केंद्रित करना, चाहे वह व्यापार सुगमता, वित्तीय मध्यस्थता, नवाचार या शोध एवं विकास हो यानी हर क्षेत्र में लगातार सुधार करना। दूसरा, घरेलू विकास कारकों को मजबूत करना।

भारत ऐतिहासिक रूप से घरेलू खपत पर अधिक निर्भर रहा है, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की लगभग 60 प्रतिशत है। यदि हाल के खपत-समर्थित उपाय मांग को केवल एक से दो प्रतिशत अंक भी बढ़ाने में मदद करते हैं तब अर्थव्यवस्था में खपत के बड़े हिस्से को देखते हुए यह जीडीपी वृद्धि को काफी हद तक बढ़ा सकता है। ऐसे में सभी क्षेत्रों जैसे कि निजी उद्यम, नीति निर्माण और परिवारों के रुझान में सुधार करने पर ध्यान देना चाहिए साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और घरेलू विकास इंजन दोनों को बढ़ाना चाहिए। उत्साहजनक बात यह है कि अर्थव्यवस्था इसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

वैश्विक संरक्षणवाद में वृद्धि को देखते हुए, हमें निर्यात की संभावनाओं और वृद्धि क्षमता को कैसे देखना चाहिए? पहले छह महीनों के आंकड़े आश्वस्त करने वाले लगते हैं लेकिन आपका भविष्य का दृष्टिकोण क्या है?

निर्यात को दो श्रेणियों मसलन सेवाओं और व्यापारिक वस्तुओं पर गौर करना अहम होता है। सेवाओं में, भारत ने पिछले दो दशकों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और इसमें पर्याप्त क्षमता बनी हुई है। हालांकि, व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात की पूरी संभावनाएं नहीं तलाशी गई हैं। यदि हम देशों की तुलना करें तब कनाडा, चिली, या न्यूजीलैंड जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर देशों के विकास की अपनी सीमाएं हैं। इसी तरह, आबादी की प्रतिकूल स्थितियां या जिंसों पर अत्यधिक निर्भरता वाले देश आखिरकार अपनी संभावित सीमा तक पहुंच जाते हैं। भारत के व्यापारिक वस्तु निर्यात के दायरे में बेहद विविधता है जिसमें श्रम, पूंजी, शोध एवं विकास एवं कौशल प्रधान क्षेत्र शामिल हैं।

आपने यह भी जिक्र किया कि भारत की जीडीपी वृद्धि, पहले-तिमाही के आंकड़ों और दूसरी तिमाही में निरंतर रफ्तार की अपेक्षाओं के साथ मजबूत बनी हुई है। हालांकि आरबीआई ने अगले साल कुछ नरमी का अनुमान लगाया है। ऐसे में वृद्धि को बनाए रखने में मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों की क्या भूमिका है? क्या और अधिक नीतिगत सुगमता की गुंजाइश है?

मैं आम तौर पर मौद्रिक नीति पर टिप्पणी करने से बचती हूं। वृद्धि, कारकों के संयोजन मसलन राजकोषीय और मौद्रिक नीति, संरचनात्मक सुधार, उद्यमशीलता, प्रमुख इनपुट की उपलब्धता और मांग की स्थितियों पर निर्भर होती है। ऐसे में जब वृद्धि से जुड़ी चर्चा मौद्रिक नीति पर केंद्रित होती हैं तब यह अधूरा और कई बार, सरल हो जाता है। मौद्रिक नीति दो तरह से वृद्धि का समर्थन करती है: संरचनात्मक रूप से यानी अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक जरूरतों के अनुरूप ब्याज दरें रखकर और चक्रीय रूप से अल्पकालिक उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया देकर। लेकिन इसके अलावा, कई अन्य कारक वृद्धि को संचालित करते हैं। हालांकि यदि केवल मौद्रिक नीति ही समृद्धि ला सकती तब आज कई देश अधिक समृद्ध होते।

आपने बताया कि इस साल मुद्रास्फीति करीब 2.5 फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान है। क्या इसका मतलब है कि महंगाई अब कम हो रही है? निवेशकों और बाजार को आगे क्या उम्मीद करनी चाहिए?

इसे समझने के लिए महंगाई को तीन हिस्सों में देखना होगा, खाने-पीने की वस्तुओं से जुड़े दाम, जरूरी चीजों के दाम और सोना-चांदी की कीमतें, इन सब के दाम अलग-अलग तरीके से बदलते हैं। महंगाई में अभी जो कमी आई है वह ज्यादातर खाने-पीने की चीजों के दाम घटने की वजह से है। ये कीमतें इतनी गिर गई हैं कि अब इनके अपने आप बढ़ने के आसार हैं। लेकिन अगर कुछ समय की बात करें तब भारत में महंगाई बढ़ने की रफ्तार अब धीमी हो गई है। चूंकि एक लचीले और विश्वसनीय नीतिगत ढांचे के माध्यम से अस्थिरता को नियंत्रित किया गया है, ऐसे में मैं उम्मीद करती हूं कि यह स्थिरता जारी रहेगी। आर्थिक परिणामों में भी कम अस्थिरता होगी।

First Published : October 29, 2025 | 10:47 PM IST