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नियामक के तौर पर खुलेपन को तरजीह: BFSI समिट में बोले अजय सेठ

अजय सेठ ने जीएसटी सुधारों, बीमा में एफडीआई, बीमा सुगम पहल और बीमा कंपनियों के लिए निवेश मानदंडों में लचीलेपन के प्रभाव पर चर्चा की

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- October 30, 2025 | 10:56 PM IST

भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के बाद अजय सेठ ने अपनी पहली सार्वजनिक बातचीत में तमाल बंद्योपाध्याय से जीएसटी सुधारों, बीमा में एफडीआई, बीमा सुगम पहल और बीमा कंपनियों के लिए निवेश मानदंडों में लचीलेपन के प्रभाव पर चर्चा की। संपादित अंश :

जीएसटी कटौती का लाभ ग्राहकों तक पहुंचाने के मामले में उद्योग से आपकी क्या उम्मीदें हैं?

एक नियामक के तौर पर, यह मेरी पहली उपस्थिति है और मैं यह आश्वासन देना चाहता हूं कि मैं खुले दिमाग का हूं। डेटा, विश्लेषण के आधार पर और जिन दृष्टिकोणों की बात मैं सुनता हूं उसके आधार पर मैं एक निष्कर्ष पर पहुंचता हूं। लेकिन व्यापक परामर्श, चर्चा करने और सहमति बनाने के बिना कुछ भी नहीं किया जाता है क्योंकि मुझे अपनी ताकत संसद के जनादेश से मिलता है और पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करना और सिक्के के दूसरे पहलू पर, बीमा को विनियमित करना, बढ़ावा देना और व्यवस्थित तरीके से इसका विकास करना शामिल है। व्यवस्थित विकास महत्वपूर्ण है और इसके लिए किसी भी आवश्यक सुधार के लिए सहमति बनाना आवश्यक है।

वस्तु एवं सेवा कर (GST) के संदर्भ में, सरकार ने यहां जो संकेत दिए हैं वह यह है कि बीमा पर शून्य जीएसटी है और खाद्य उत्पादों (प्रसंस्कृत) पर शून्य जीएसटी है। यहां मैं जो निष्कर्ष निकालता हूं, वह यह है कि राजकोषीय नीति के मामले में, सरकार बीमा को भोजन की श्रेणी में रख रही है, जो जीवन के लिए आवश्यक है।

अब यह क्षेत्र के लिए एक बड़ा अवसर है कि हम उपभोक्ताओं पर कैसे ध्यान केंद्रित करें। क्या हम अपनी आबादी के 10 प्रतिशत को सेवाएं देकर संतुष्ट हैं?

नहीं। यह एक ऐसा क्षण है जब सरकार ने अधिकतम संभव समर्थन दिया है। नियामक की ओर से सवाल यह है कि हम अपनी लागत कैसे कम कर सकते हैं। हमें अच्छी गुणवत्ता वाली सेवाओं के साथ उच्च लागत संरचना के बजाय मध्यम लागत संरचना पर ध्यान देना होगा।

जीवन बीमा में, 20 प्रतिशत जोखिम पूल वास्तव में जोखिम पूल को हासिल करने और उसका प्रबंधन करने की लागत है। उस जोखिम पूल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा वास्तव में जोखिम पूल नहीं है बल्कि इसमें बहुत सारी बचत भी है। किसी भी वित्तीय क्षेत्र के बारे में सोचें, जिसमें बचत और जोखिम पूल की लागत 20 प्रतिशत है। गैर-जीवन बीमा के लिए यह 30 प्रतिशत है।

कॉरपोरेट एजेंटों को दिया जाने वाला कमीशन, बीमाकर्ताओं के बीच बहुत अलग होता है। एलआईसी के बाद सबसे बड़ा जीवन बीमाकर्ता, अपने प्रीमियम का 4 प्रतिशत कॉरपोरेट एजेंटों को देता है। दूसरा सबसे बड़ा बीमाकर्ता अपने प्रीमियम का 17 प्रतिशत कॉरपोरेट एजेंट को देता है हालांकि दोनों को इस चैनल से 50 प्रतिशत व्यवसाय मिलता है। ऐसे में जीएसटी का तार्किकीकरण उद्योग के लिए बीमा योजनाओं को बहुत अधिक किफायती, कुशल और उपभोक्ताओं के लिए बहुत अधिक आकर्षक बनाने का एक शानदार मौका है क्योंकि जब तक उन्हें इसमें कोई वैल्यू नजर नहीं आएगी तब तक इस क्षेत्र का विकास नहीं हो सकता है।

पिछले कुछ वर्षों में बीमा उद्योग को कई झटकों का सामना करना पड़ा है। क्या उद्योग आपके कार्यकाल में कुछ स्थिरता की उम्मीद कर सकता है?

बीमा क्षेत्र और विशेष रूप से स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र इस समय एक अस्थिर साम्यता की स्थिति दर्शा रहा है। जीवन बीमा की ओर, एक कम दक्षता वाली साम्यता दिख रही है। लेकिन अन्य क्षेत्र जो भारतीयों की बचत पूल का प्रबंधन करते हैं, वे जीवन बीमा कंपनियों को कड़ी प्रतिस्पर्धा दे रहे हैं। ऐसे में क्या आगे बढ़ते हुए यथास्थिति ही जवाब है? यदि आप निम्न-स्तरीय साम्यता या अस्थिर साम्यता के साथ जीना चाहते हैं, तो यथास्थिति ही जवाब है। लेकिन क्या इसके लिए झटकों की आवश्यकता है? नहीं। इसके लिए एक बेहतर कल की ओर व्यवस्थित बदलाव की आवश्यकता है। बीमा कंपनियों द्वारा पूंजी के उपयोग के मोर्चे पर बहुत सुधार किया जाना है। इस क्षेत्र में वितरण सबसे बड़ा मुद्दा है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

क्या क्षेत्र को अधिक पूंजी की जरूरत है?

शत-प्रतिशत एफडीआई के लिए विधायी बदलाव नियत समय पर किए जाएंगे। लेकिन यह अकेले, इस क्षेत्र की पूंजी जरूरतों का ध्यान नहीं रख सकता। जीवन और गैर-जीवन बीमा दोनों को मिलाकर बीमा उद्योग की अपनी पूंजी लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपये है। एफडीआई का स्वागत है। जो भी आया है उसका स्वागत है कि उन्होंने योगदान दिया है। लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा घरेलू पूंजी है। करीब 3.5 लाख करोड़ रुपये की पूंजी में से, एफडीआई केवल 80,000 – 90,000 करोड़ रुपये है। यह सब बीमा कंपनियों की बैलेंसशीट में नहीं है। इसका कुछ हिस्सा पिछले शेयरधारकों को भुगतान करने में चला गया है।

क्या बीमा नियामक निवेश मानदंडों को इस तरह से बदलने पर विचार कर रहा है कि लंबी अवधि का पैसा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में जाए?

बीमा क्षेत्र द्वारा प्रबंधित 75 लाख करोड़ रुपये के कुल संपत्ति प्रबंधन (एयूएम) में से केवल 7.5 लाख करोड़ रुपये बुनियादी ढांचा क्षेत्र में है। यह एक छोटा सा हिस्सा है। लेकिन क्या विनियमन राह में आड़े आ रहा है? जवाब है नहीं। विनियमन के मुताबिक बीमा कंपनियां सरकारी प्रतिभूतियों में कम से कम 50 प्रतिशत और बाकी कॉरपोरेट बॉन्ड, गैर-निश्चित आय प्रतिभूतियों में निवेश कर सकती हैं।
बीमा नियामक के रूप में, यह मेरा काम है कि मैं सेबी के प्रमुख, आरबीआई गवर्नर के साथ मिलकर इस दिशा में काम करूं कि हम देश में अधिक परिपक्व बॉन्ड बाजार के लिए स्थितियां कैसे बनाएं। यहां क्रेडिट रेटिंग एजेंसी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

बीमा ट्रिनिटी पर क्या प्रगति है?

वितरण सुधार के बाद अगला बड़ा मुद्दा बीमा के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा है। हमने वास्तव में उस पर शुरुआत नहीं की है। एक नियामक के तौर पर, हम बीमा सुगम को एक ऐसी इकाई के रूप में देखते हैं जो उपभोक्ता के सामने है और पीछे बीमा कंपनियां हैं। हमने शुरुआत कर दी है। अगली कुछ तिमाहियों में उत्पाद और सेवाएं बाजार में आनी चाहिए।

First Published : October 30, 2025 | 10:51 PM IST