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साप्ताहिक मंथन: कारोबारी जगत में भय और प्रसन्नता

कारोबारियों को लगता है कि मोदी सरकार स्थिरता और निरंतरता प्रदान करती है। कोई नहीं चाहता कि अतीत की गठबंधन सरकारों जैसा अफरातफरी वाला माहौल बने।

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टी एन नाइनन   
Last Updated- December 08, 2023 | 10:38 PM IST

वर्तमान भारतीय कारोबारी जगत का विरोधाभास यह है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) की चुनावी जीतों पर शेयर बाजार में अत्यंत प्रसन्नता का माहौल है जबकि कई कारोबारी दिल्ली में पार्टी की सरकार को लेकर सशंकित भी हैं।

चार वर्ष पहले राहुल बजाज (अब हमारे बीच नहीं) ने अमित शाह से कहा था कि उद्योगपति सरकार की आलोचना करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें डर लगता है कि ‘इसे ठीक नहीं माना जाएगा।’

उन्होंने यह भी कहा था कि उनके उद्योगपति मित्रों में से कोई इस बात को स्वीकार करने का साहस नहीं रखता। उन्होंने मनमोहन सिंह के कार्यकाल से तुलना करते हुए कहा कि उस वक्त कोई भी आसानी से आलोचना कर सकता था।

इसके जवाब में शाह ने कहा कि उनकी सरकार ने संसद में और उसके बाहर भी किसी भी अन्य सरकार की तुलना में अधिक आलोचना का सामना किया है। उन्होंने कहा कि सरकार का इरादा किसी को भयभीत करने का नहीं है।

बहरहाल लगता तो यही है कि कारोबारी, सरकार और उसकी ‘एजेंसियों’ से अब भी भयभीत रहते हैं। कारोबारी लॉबी समूह कहते हैं कि उन्हें मशविरा दिया गया है कि वे सार्वजनिक आलोचना से बचें। परंतु शेयर बाजार के व्यवहार में डर नहीं केवल उम्मीद नजर आती है। यह बात संस्थागत विदेशी निवेशकों और घरेलू निवेशकों, दोनों के उत्साह से समझी जा सकती है।

अक्सर यह सुनने में आता है कि कारोबारी अगली गर्मियों के आम चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी सरकार की वापसी चाहते हैं लेकिन एक अल्पमत सरकार के रूप में ताकि गठबंधन साझेदारों का दबाव बना रहे और कोई अति महत्त्वाकांक्षी कदम न उठाया जाए।

ऐसी कहानियां कही जाती हैं कि कैसे पसंद के कारोबारियों की नजर जिन कंपनियों पर होती है वे कर अधिकारियों के निशाने पर आ जाती हैं। संबंधित कंपनी का मालिकाना बदलने के बाद कर के मामले में कुछ सुनने को नहीं मिलता। कारोबारियों को दिवालिया प्रक्रिया में नीलामी से दूर रहने की सलाह दी जाती है और किसी पसंदीदा कारोबारी के नाम नीलामी कर दी जाती है वगैरह।

इसके बावजूद कारोबारी मोदी सरकार को तरजीह देते हैं क्योंकि उसने कारोबारियों के अनुकूल कई कदम उठाए हैं। कॉर्पोरेट कर दर में कमी की गई है, घरेलू उत्पादकों को आयात प्रतिस्पर्धा के विरुद्ध टैरिफ और गैर टैरिफ संरक्षण दिया जा रहा है। ध्यान रहे राहुल बजाज समेत ज्यादातर भारतीय कारोबारी वैश्वीकरण के हिमायती नहीं रहे। अप्रत्यक्ष कर को लेकर सुधार किया गया है, निवेश के लिए सब्सिडी दी जा रही है और उत्पादन बढ़ाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अधोसंरचना में भी सुधार हुआ है तो आखिर आलोचना किस बात की हो?

कारोबारियों को लगता है कि मोदी सरकार स्थिरता और निरंतरता प्रदान करती है। कोई नहीं चाहता कि अतीत की गठबंधन सरकारों जैसा अफरातफरी वाला माहौल बने या फिर मनमोहन सिंह के कार्यकाल की तरह नीतिगत पंगुता नजर आए। कर को लेकर आतंक के मामले में हालात कांग्रेस के कार्यकाल से बेहतर हुए हैं या नहीं इस पर अवश्य बहस हो सकती है लेकिन एक अन्य कारक भी है।

फिलहाल कांग्रेस की ओर से मुख्य रूप से कल्याण योजनाओं और नि:शुल्क उपहारों का ही संदेश सामने आता है जो राजकोषीय मोर्चे पर गैर जवाबदेह है। पार्टी कोई कारोबार समर्थक संदेश नहीं देती।

आर्थिक इतिहासकार तीर्थंकर रॉय अपनी पुस्तक अ बिज़नेस हिस्ट्री ऑफ इंडिया में कहते हैं कि मुगल साम्राज्य के विस्तार ने ऐसा आर्थिक माहौल बनाया जहां कारोबारी (ज्यादातर पंजाबी खत्री और मारवाड़ के व्यापारी) पूर्व में बंगाल तक फैल सके। जब मुगलों का पराभव शुरू हुआ तो हालात बिगड़े।

कारोबारियों ने उन जगहों का चयन शुरू किया जहां स्थिरता थी और ब्रिटेन शासित बंबई, मद्रास और कलकत्ता जैसे स्थानों पर उन्हें सामंतवाद से मुक्ति और जरूरी स्थिरता मिली। ऐसा नहीं है कि प्लासी की लड़ाई में अकेले मीर जाफर ने लॉर्ड क्लाइव की मदद की थी, उस दौर के सबसे बड़े उद्योगपति जगत सेठ ने भी यही किया था।

सन 1857 के गदर के दौरान भारतीय कारोबारियों ने कंपनी के पक्ष में रुख दिखाया था। परंतु रॉय ब्रिटेन और उसके साम्राज्य के इतिहासकार क्रिस बेली के हवाले से कहते हैं कि भारतीय पूंजीवाद और ब्रिटिशों के बीच यह असहज परस्पर निभर्रता थी।

मुद्दा यह है कारोबारी समृद्धि चाहते हैं और उन्हें अनिश्चितता कम करने की आवश्यकता है जिसमें जोखिम है। इसके अलावा वे राजनीतिक रूप से संशयवादी हैं। वे सन 1980 के दशक तक कांग्रेस से उसकी नीतियों के कारण नाखुश थे और उन्होंने 1991 में सुधारों के बाद अपना रुख बदला।

अब भाजपा उनकी पसंद है क्योंकि पार्टी उन्हें वह मुहैया करा रही है जो पहले मुगलों और बाद में ब्रिटिशों ने प्रदान किया: एक स्थिर नीति और माहौल जहां कारोबार फलफूल सके। जैसा कि मार्क ट्वैन ने कहा था भले ही इतिहास खुद को दोहराए नहीं लेकिन अक्सर समान घटनाएं होती हैं।

First Published : December 8, 2023 | 10:38 PM IST