हरित ईंधन और घटकों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ वाहन कंपनियां स्वच्छ ईंधन की दिशा में बढ़ने तथा दीर्घकालिक कारकों के उपयोग का भी प्रयास कर रही हैं।
हालांकि सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के अध्यक्ष और वीई कमर्शियल व्हीकल्स (वीईसीवी) के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी विनोद अग्रवाल ने सोहिनी दास के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में कहा कि इस परिवर्तन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है। मुख्य अंश
क्या ईंधन के रूप में डीजल को आसानी से बदला जा सकता है?
हम सभी जानते हैं कि उद्योग परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जिसमें वैकल्पिक ईंधन की ओर रुख करना भी शामिल है। एथनॉल मिश्रित ईंधन, सीएनजी, एलएनजी और फ्लेक्स ईंधन, जैव ईंधन वगैरह में काफी काम हो रहा है। धीमी रफ्तार से स्थानांतरण होगा, उद्योग काम करता रहेगा। अगर हम यह कहें कि डीजल पूरी तरह खत्म हो जाएगा, तो शायद ऐसा न हो। उदाहरण के लिए लंबी दूरी वाले के ट्रकों के लिए डीजल ही एकमात्र ईंधन है।
हम देखेंगे कि खास तौर पर हल्के वाणिज्यिक वाहनों और कारों के लिए सीएनजी की ओर पलायन होगा। एलएनजी लंबी दूरी वाले ट्रकों के लिए विकल्प बन सकती है, लेकिन इसमें हमें काफी सारे बुनियादी ढांचे की जरूरत पड़ेगी।
एलएनजी ईंधन के लिए विशेष भंडारण की आवश्यकता होती है क्योंकि गैस को तरल रूप में संग्रहित करने की जरूरत होती है। इसके लिए गैस को शून्य से नीचे के तापमान पर संपीड़ित करना होता है। स्थानांतरण तो हो रहा है, लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा। प्रौद्योगिकी तैयार हो जाएगी, लेकिन हमें पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत है।
उद्योग और सरकार के बीच किस तरह की चर्चा हो रही है?
उद्योग और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के बीच काफी चर्चाएं हो रही हैं। मसलन, अब एथनॉल मिश्रण और एलएनजी की उपलब्धता पर चर्चा हो रही है। एलएनजी ट्रकों के लिए समर्पित गलियारे बनाने पर भी चर्चा हुई है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है।
अगर हरित अवयव महंगे पड़ते हैं, तो क्या वाहन कंपनियां उनका रुख करेंगी?
अगर पुराने वाहनों के कबाड़ की तरह रिसर्कुलराइजेशन के जरिये ऐसा होता है, तो हरित अवयवों की लागत अधिक नहीं होगी। हमें पुराने वाहनों के कबाड़ को प्रोत्साहित करना होगा। इस संबंध में समितियां पहले से ही अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए काम कर रही हैं। हम कबाड़ योजना को बड़ी सफलता बनाने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
हमने पुराने वाहनों के कबाड़ की दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं की है। आपकी क्या राय है?
कबाड़ योजना को सही दिशा में आगे बढ़ना होगा। शुरुआत में इन चीजों में कुछ वक्त लगता है, लेकिन एक बार जब वे शुरू हो जाती हैं, तो रफ्तार पकड़ लेती हैं। हम इसे संबंध में बहुत सकारात्मक हैं। हमें यह समझना होगा कि ट्रक वाले अपने पुराने ट्रकों को हटाने के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं।
वर्तमान में यह योजना स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं। हमें इसे ट्रक वालों के लिए आकर्षक बनाना होगा ताकि उन्हें अपने पुराने वाहनों के कबाड़ की प्रेरणा मिले। अगर हम 15 साल पुराने वाहन चलाने वाले व्यक्ति को बेहतर विकल्प उपलब्ध करा सकें और उसे व्यावसायिक दृष्टि से व्यावहारिक बना सकें, तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
भारत से निर्यात को किस तरह बढ़ावा मिल सकता है?
भारत से वाणिज्यिक वाहनों का काफी सारा निर्यात दक्षिण एशियाई देशों – श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल आदि को होता है। इन बाजारों में विदेशी मुद्रा की स्थिति के कारण फिलहाल ये देश दबाव में हैं। यही वजह है कि उन्होंने आयात पर अंकुश लगाया है।
सरकार रुपये में व्यापार की बात करती रही है और उम्मीद है कि ऐसा होगा। ऐसा होने पर हम इन देशों को और अधिक निर्यात कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी के लिहाज से भारतीय ट्रक अब जापानी ट्रकों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं और इसलिए इंडोनेशिया, थाईलैंड तथा अन्य दक्षिण एशियाई, लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों में निर्यात की अधिक संभावनाएं खुल रही हैं। स्थिति में सुधार होगा।