facebookmetapixel
Stocks to Watch today: HCLTech से लेकर Tata Motors और Paytm तक, गुरुवार को इन 10 स्टॉक्स पर रखें नजरचुनाव से पहले बिहार की तिजोरी पर भारी बोझ, घाटा तीन गुना बढ़ाStock Market Update: शेयर बाजार की कमजोर शुरुआत, सेंसेक्स 145 अंक टूटा; निफ्टी 25800 के नीचे फिसलाक्या देरी से बिगड़ रही है दिवाला समाधान प्रक्रिया?मनरेगा बचाने के लिए सड़क पर उतरेंगे मजदूर, 19 दिसंबर से आंदोलनअनुसंधान व शिक्षा का वैश्विक केंद्र बनेगा भारत, विदेशी यूनिवर्सिटियों को न्योतावैश्विक व्यापार को हथियार बनाया जा रहा है, भारत को सावधानी से आगे बढ़ना होगा: सीतारमणकम दाम से परेशान प्याज किसानों ने उठाया बड़ा कदम, नाशिक में बनेगा राष्ट्रीय प्याज केंद्र20,000 AI एजेंट, भारतीय स्टार्टअप्स को मिलेगी नई रफ्तार: प्रोसस इंडिया के आशुतोष शर्माAmazon Pay ने शुरू किया यूपीआई बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन, पिन की जरूरत खत्म

सरकार फिर नहीं करेगी एफआरबीएम ऐक्ट में संशोधन

केंद्र सरकार द्वारा लगातार तीसरे साल राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम ऐक्ट) में संशोधन किए जाने की संभावना नहीं नजर आ रही है।

Last Updated- January 21, 2023 | 10:30 AM IST
Nirmala Sitharam

केंद्र सरकार द्वारा लगातार तीसरे साल राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम ऐक्ट) में संशोधन किए जाने की संभावना नहीं नजर आ रही है। बिज़नेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक सरकार को वित्त वर्ष 2023 में भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मंदी के असर से वित्त वर्ष 2023-24 में व्यय की प्रतिबद्धताएं प्रभावित होने की संभावना नजर आ रही है।

बहरहाल वित्त मंत्रालय राजकोषीय घाटा कम करने की अपनी आंतरिक योजना पर बना रह सकता है और आगामी केंद्रीय बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य नॉमिनल जीडीपी के 5.5 से 6 प्रतिशत के बीच रखा जा सकता है। खाके में वित्त वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.5 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है।

एफआरबीएम ऐक्ट 2003 में लागू हुआ था। केंद्र व राज्य सरकारों को वित्तीय रूप से टिकाऊ बजट बनाने और उन्हें अनाप-शनाप कर्ज के बोझ से बचाने के लिए यह अधिनियम लागू किया गया। इसे इस विचार से लागू किया गया कि घाटे और कर्ज को कम करने के लिए एक कानूनी ढांचा होगा, जिससे यह टिकाऊ स्तर पर रहे और आने वाले वर्षों के हिसाब से वित्तीय प्रबंधन हो सके और दीर्घावधि के हिसाब से व्यापक आर्थिक स्थिरता बरकरार रह सके।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘सरकार का राजकोषीय घाटा कम करने की अपनी आंतरिक योजना है, लेकिन इसमें कुछ अंतर हो सकता है। ज्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाएं मंदी की ओर बढ़ रही हैं, यूरोप में युद्ध के कारण भूराजनीतिक अस्थिरता है और महंगाई का दबाव अभी भी बना हुआ है। इसका असर वित्त वर्ष 24 में राजस्व संग्रह और व्यय प्रतिबद्धता पर पड़ सकता है।’सरकार की ओर से किए गए कुल खर्च और राजस्व वसूली के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है, अगर खर्च ज्यादा है। एफआरबीएम ऐक्ट के पिछले संशोधन में 2020-21 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा गया था।

बहरहाल 2020 के केंद्रीय बजट में लक्ष्य घटाकर 3.5 प्रतिशत कर दिया गया, जिसकी अनुमति ऐक्ट के तहत है। केंद्र सरकार ने राजकोषीय घाटा कम करने की अपनी आंतरिक योजना से हटने के लिए इस्केप क्लॉज का सहारा लिया। इस विकल्प में सरकार को अनुमति है कि वह घाटे को 0.5 प्रतिशत अंक तक ऐसे समय में बढ़ा सकती है, जब युद्ध या आपदा की स्थिति हो। वह कोविड-19 महामारी के पहले का आखिरी बजट था। उसके पहले के सभी बजट में इस अवधारणा का पालन किया गया।

2020-21 में घाटा बढ़कर 9.2 प्रतिशत हो गया और वित्त वर्ष 23 में जीडीपी के 6.4 प्रतिशत का लक्ष्य रखा गया। वित्त मंत्रालय ने 2022 के केंद्रीय बजट के साथ संसद में पेश किए गए अपने पिछले मध्यावधि राजकोषीय नीति के बयान में कहा है, ‘भारत की आर्थिक नींव मजबूत बनी हुई है, लेकिन सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह जरूरी वित्तीय लचीलापन बनाए रखे, जिससे उभरती आपात जरूरतों के मुताबिक कदम उठाए जा सकें।

First Published - January 21, 2023 | 10:30 AM IST

संबंधित पोस्ट