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G-20 Meet: असहमति के बीच बनी आगे की राह

भारत द्वारा तैयार किया गया ‘हाई लेवल वालेंटरी प्रिंसिपल्स आन हाइड्रोजन’ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के बाद के परिणाम दस्तावेज का हिस्सा था।

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श्रेया जय   
Last Updated- July 23, 2023 | 10:38 PM IST

भारत की अध्यक्षता में हाल में सम्पन्न हुए जी-20 की ऊर्जा परिवर्तन पर मंत्रिस्तरीय बैठक में जीवाश्म ईंधन, स्वच्छ ऊर्जा तकनीक और ऊर्जा में परिवर्तन के रास्तों पर आम सहमति नहीं बन सकी।

हालांकि भारत के हिसाब से देखें तो हाइड्रोजन, कोयला सहित जीवाश्म ईंधन में कमी, उसकी अपनी ऊर्जा परिवर्तन संबंधी योजनाओं और वैश्विक जलवायु के मोर्चे पर उसके रुख को आगे बढ़ाया गया है।

हालांकि कुछ जलवायु विशेषज्ञ और जी-20 के पर्यवेक्षकों की राय है कि परिणाम बयान पेरिस जलवायु सम्मेलन और इंडोनेशिया में पिछले साल हुई जी-20 की बैठक के बाद जारी बाली ऊर्जा परिवर्तन खाके को आगे बढ़ाता है।

कुछ सरकारी अधिकारियों और यहां तक कि बिजली मंत्री आरके सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि जी-20 का निष्कर्ष आगामी सीओपी 28 के लिए एक दिशा देता है, जहां भारत पिछड़े देशों की मांग की आवाज होगा।

मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिंह ने कहा कि हम 29 पैराग्राफ में 22 पर पूरी तरह सहमत हुए हैं, जबकि 7 को अध्यक्षीय सारांश में शामिल किया गया है।  हमें लगता है कि ऊर्जा तक पहुंच बड़ा पहलू है, जिसे वैश्विक समुदाय को देखना चाहिए।

समिति की बातचीत में शामिल रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘कई मोर्चों पर भारत के रुख का असर दिखता है और पता चलता है कि हमारे परिवर्तन की कवायदों को वैश्विक पहचान मिंली है।

भारत का कहना था कि जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की जरूरत है, न कि सिर्फ कोयले को, जैसा कि अन्य देशों ने चिह्नित किया है। उसके बाद कम या शून्य उत्सर्जन वाले हाइड्रोजन का मसला है, जिस पर भारत पहले से जोर दे रहा है। यह हमारे लिए जीत है।’

भारत ने हरित हाइड्रोजन के इस्तेमाल को लेकर महत्त्वाकांक्षी योजना तैयार की है। भारत कोयले और अक्षय ऊर्जा दोनों के संतुलन पर विचार कर रहा है, जिसमें मध्यावधि के हिसाब से कोई आगे न निकले।

भारत द्वारा तैयार किया गया ‘हाई लेवल वालेंटरी प्रिंसिपल्स आन हाइड्रोजन’ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के बाद के परिणाम दस्तावेज का हिस्सा था। रिपोर्ट के मुख्य बिंदु में शून्य और कम उत्सर्जन की तकनीकों से उत्पादित हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव्स जैसे अमोनिया का डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक मुक्त और साफ सुधरा कारोबार शामिल है। कम उत्सर्जन से आशय है कि गैस व कोयला के इस्तेमाल से उत्पादित हाइड्रोजन पर भी विचार होगा।

जीवाश्म ईंधन की भाषा को लेकर कोई आम सहमति नहीं बन पाई। ऐसा माना जा रहा है कि सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और फ्रांस ने निरंकुश जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का विरोध किया है।

अध्यक्षीय सारांश में गंदे ईंधन पर आए सभी तर्कों का उल्लेख किया गया है। सारांश में निरंकुश जीवाश्म ईंधन को धीरे धीरे कम करने के महत्त्व और जीवाश्म ईंधन क्षेत्र से उत्सर्जन के प्रबंधन के विभिन्न तरीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है।

इस वार्ता की जानकारी रखने वाले इस क्षेत्र से जुड़े शोधार्धी ने कहा, ‘जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को जरूरत से ज्यादा जगह दी गई है और हरित ऊर्जा को उसका हक नहीं मिल पाया। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा फिर से स्वच्छ ऊर्जा में आ गया है।’

सारांक्ष में इलेक्ट्रोलाइजर्स, कार्बन कैप्चर और भंडारण के साथ बायो एनर्जी, डायरेक्ट एयर कैप्चर (डीएसी), उच्च कुशलता वाले ईंधन सेल, एसीसी बैटरी भंडारण और टिकाऊ उन्नत जैव ईंधन के साथ छोटे मॉडुलर रिएक्टरों (एसएमआर) जैसी उभरती तकनीकों को ऊर्जा में परिवर्तन के साधन के रूप में विशेष उल्लेख किया गया है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स में डायरेक्टर आरती खोसला ने कहा, ‘अत्यधिक विवादास्पद वार्ताओं से पता चलता है कि कैसे पेरिस के लक्ष्यों को पूरा करने का मसला राष्ट्रीय हितों से जुड़ता जा रहा है। फैसले के टेक्स्ट से पता चलता है कि किस तरह से ज्यादा जीवाश्म ईंधन के हितों वाले कुछ देशों ने झूठी समाधान प्रस्तुत किए, जबकि उन्होंने शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा।’

हालांकि उन्होंन कहा कि भारत एक साफ सुझरा ब्रोकर है और इसका परिणाम भूराजनीतिक हितों को प्रदर्शित कर रहा है।

इस सम्मेलन का कोई संयुक्त बयान नहीं जारी हो सका। भारत ने अध्यक्षीय सारांक्ष जारी किया, जिसे सुझाया गया सारांश और और सभी सदस्य देशों का सुझाव कहा गया है। यह तब जारी किया गया है, जब आम सहमति नहीं हो पाई। एक परिणाम दस्तावेज भी प्रस्तुत किया गया है, जिसमें जी-20 द्वारा नोट की गई विभिन्न स्थितियों सारांश दिया गया है, जिस पर सदस्य देशों को आगे काम करने की जरूरत होगी।

First Published : July 23, 2023 | 10:38 PM IST