आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) में फंडिंग नहीं, बल्कि कुशल शोधकर्ताओं की कमी वह ज्यादा बड़ा मसला है, जिससे भारतीय AI स्टार्टअप कंपनियों को इस क्षेत्र में घरेलू समाधान विकसित करने में बाधा आ रही है। गुरुवार को नई दिल्ली में ग्लोबल इंडिया AI समिट के एक सत्र के दौरान निवेशकों और संस्थापकों ने यह जानकारी दी।
प्रमुख उद्यम पूंजी फर्म पीक 15 के प्रबंध निदेशक राजन आनंदन ने कहा ‘भारत में पूंजी की कमी नहीं है और आज जो हो रहा है, वह यह है कि पूंजी उन सर्वश्रेष्ठ संस्थापकों में निवेश की जा रही है जो सबसे दिलचस्प कंपनियां बना रहे हैं। इसलिए AI में हम जो देख रहे हैं, वह AI ऐप्लीकेशन कंपनियों की काफी दिलचस्प लहर की शुरुआत है।’
आनंदन ने कहा कि इस क्षेत्र में असली मसला देश में AI के योग्य शोधकर्ताओं की कमी है। उन्होंने कहा ‘हमें बस और ज्यादा AI शोधकर्ताओं की जरूरत है। वे कहां से आएंगे? वैश्विक AI शोधकर्ताओं में से 20 प्रतिशत भारतीय मूल के हैं, हमें उन्हें वापस लाना चाहिए। उनमें से अधिकांश अमेरिका में बैठे हैं, लेकिन हमें उन्हें वापस लाना चाहिए, जिस तरह चीन ने पिछले 15 सालों के दौरान सफलतापूर्वक किया है।’
आनंदन ने यह भी कहा कि देश के पास सबसे ज्यादा संख्या में स्टेम स्नातक हैं। उन्होंने कहा ‘हमें बस यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि समय के साथ हम उनमें निवेश करें।’
उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि AI स्टार्टअप कंपनियों के लिए फंडिंग कोई मसला नहीं है। आनंदन ने कहा कि फर्म के पास निवेश के लिए 16,000 करोड़ रुपये हैं। उन्होंने कहा ‘केवल हमारी फर्म, एक ही फर्म के पास इतनी ज्यादा राशि है। इसलिए पूंजी की कोई कमी नहीं है। हम बस यह चाहते हैं कि AI में और ज्यादा लोग शुरुआत करें।’
सॉकेट लैब्स के संस्थापक और मुख्य कार्य अधिकारी अभिषेक अपरवाल ने अच्छे शोधकर्ताओं की जरूरत पर जोर दिया, खास तौर पर जब आधारभूत AI मॉडल बनाने की बात आती है, जो ऐसा क्षेत्र है जहां भारतीय स्टार्टअप कंपनियों को बड़ी वैश्विक कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है।
उन्होंने कहा ‘मुझे खुशी है कि जब आधारभूत मॉडल बनाने की बात आती है, तो लोग शोध वाले पहलू के बारे में बात कर रहे हैं क्योंकि अंततः यह बहुत महत्वपूर्ण है। जब तक हम उस विशेष बाधा को नहीं तोड़ेंगे, तब तक हम ज्यादातर उसी पर काम करते रहेंगे और निर्माण करते रहेंगे, जो कुछ भी किया गया है।’ ओपनAI का उदाहरण देते हुए अपरवाल ने कहा कि संसाधनों की कमी की वजह से भारतीय कंपनियां अंततः ओपनAI जैसे मौजूदा पश्चिमी मॉडलों के ऊपर ही निर्माण करेंगी।