ट्विटर खातों पर प्रतिबंध का कानूनी खेल | |
गीतिका श्रीवास्तव / 02 11, 2021 | | | | |
किसानों के विरोध प्रदर्शनों के समर्थन में अनेक लोगों के ट्वीट करने से केंद्र सरकार के सामने एक नई बाधा आ खड़ी हुई है। केंद्र ने ट्विटर से 1,178 से अधिक खातों को हटाने के लिए कहा जिनके लिए सरकार का दावा है कि इन्हें पाकिस्तान या खालिस्तानी एजेंडे के समर्थकों द्वारा चलाया जा रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, इनमें से अधिकांश ट्वीट में कानूनों के विरोध से संबंधित जानकारी को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है।
केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69-ए के तहत अपनी जांच एवं कवायद की शक्ति को और भी कड़ा करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को 1,200 से अधिक खातों को बंद करने के लिए निर्देश दिया, जिसमें मीडिया हाउस कारवां और स्थानीय हैंडल जैसे ट्रैक्टर2ट्विटर एवं एक्टर सुशांत सिंह आदि शामिल हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक प्रमुख हैशटैग पर आपत्ति जताई, जिसे इस आग को भड़काने वाला पाया गया। हालांकि ट्विटर ने शुरू में 250 से अधिक खातों पर रोक लगा दी थी लेकिन बाद में कंपनी ने अपना निर्णय बदल दिया और मंत्रालय के साथ बैठक के बाद उन्हें अनब्लॉक कर दिया। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र और ट्विटर दोनों मध्यस्थता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में मौजूदा कानूनों की सीमाओं को कड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं।
केंद्र तथा ट्विटर, दोनों श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक मामले में बने एक मौजूदा ढांचे के तहत काम कर रहे हैं, जिसमें शीर्ष अदालत ने मार्च 2015 में आईटी कानून की धारा 66-ए को रद्द कर दिया था। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि इससे मिलती जुलती आईटी अधिनियम की धारा 69ए असंवैधानिक नहीं है। यह धारा सरकार को 'संप्रभुता, रक्षा, सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था के हित में या किसी संज्ञेय अपराध के लिए उकसावे को रोकने के लिए' मध्यस्थ प्लेटफॉर्मों को निर्देशित करने की अनुमति देती है।
इंडसलॉ में सीनियर पार्टनर अविमुक्त दर ने कहा, 'सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि यह धारा संविधान में दी गई बोलने की स्वतंत्रता पर 'उचित प्रतिबंध' लगाती है। अदालत ने यह भी कहा कि 69ए के पास कुछ सुरक्षा उपाय हैं जो धारा 66ए के पास नहीं हैं। इन सुरक्षा उपायों में यह प्रावधान है कि इस तरह के निर्देश के लिए सरकार द्वारा लिखित आदेश दिया जाएगा और एक समीक्षा समिति मध्यस्थ को सुनवाई का अवसर देगी।' इसके बाद से केंद्र सरकारें इस प्रावधान के तहत कदम उठाती हैं और लोक हित के लिए खतरनाक पोस्ट को हटवा सकती हैं।
भले ही अदालत ने धारा 69ए को अपनी ओर से सहमति दे दी हो, लेकिन इससे जुड़े कुछ मुद्दे अभी भी बने हुए हैं। उदाहरण के लिए, आईटी ब्लॉकिंग नियम, 2009 के नियम-16 में कहा गया है कि सरकार किसी भी मध्यस्थ को कुछ सूचनाएं ब्लॉक करने का निर्देश देते समय कारण गोपनीय रखेगी। इसलिए जनता इससे अनजान रहेगी। वकीलों का कहना है कि जब तक इन मामलों को अदालत में चुनौती नहीं दी जाती और बहस नहीं होती, तब तक केंद्र आमतौर पर ऐसे आदेशों के कारणों को गुप्त रखता है जिससे भ्रम की स्थिति बनी रहती है। अब केंद्र सरकार दुविधा में है क्योंकि ट्विटर ने आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया है। प्लेटफॉर्म का कहना है कि वह बोलने तथा लिखने की आजादी के प्रावधान की रक्षा कर रहा है, और अतिरिक्त देखभाल का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि सरकार पत्रकारों या राजनीतिक पार्टी की बातों को दबाना चाहती है।
कंपनी का कहना है कि यदि कोई सामग्री अवैध है, तो वह उस पर उस अधिकार क्षेत्र में रोक लगा देगा, जिसमें वह अवैध है। सरकार और ट्विटर दोनों के दावे मजबूत हैं। भारत में हर महीने लाखों लोग ट्विटर का उपयोग करते हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के लिए ट्विटर संवाद का सबसे बड़ा माध्यम है। इस प्लेटफॉर्म पर स्वयं प्रधानमंत्री के 6.5 करोड़ से अधिक फॉलोअर हैं। इसलिए मौजूदा ढांचे के भीतर यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्विटर के अनुपालन नहीं करने के क्या परिणाम होते हैं? पारदर्शिता की कमी के बावजूद, विशेषज्ञों का दावा है कि प्लेटफॉर्म कानूनी तौर पर केंद्र के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है। हालांकि वेबसाइट पर प्रतिबंध जैसी कठोर कार्रवाई से बचा जाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि अब ट्विटर के विकल्पों का तब तक इंतजार करना होगा जब तक कि सरकार द्वारा कोई और कार्रवाई नहीं की जाती है, या रिट याचिका दायर करके उच्च न्यायालय में पेश नहीं किया जाता। कुछ दंडात्मक प्रावधान हैं जिसका प्रयोग गैर-अनुपालन की स्थिति में किया जा सकता हैं और केंद्र ने इन्हें अधिनियमित करने की धमकी दी है। दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सव्यसाची रावत के अनुसार, 'आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत आदेश का पालन नहीं करने पर सात साल तक की कैद एवं जुर्माना हो सकता है।' विशेषज्ञों का कहना है कि अगर प्लेटफॉर्म से जुड़े अधिकारियों पर केंद्र आपराधिक दायित्व डालता है, तो इस कदम के व्यापक प्रभाव होंगे। दर ने कहा, 'इससे उपभोक्ता इंटरनेट क्षेत्र में विदेशी निवेश का माहौल ठंडा पड़ सकता है, और सरकार को अमेरिका जैसे मित्रवत राष्ट्रों के साथ अपने संबंधों पर भी नजर रखनी होगी।'
पॉलिसी थिंक-टैंक द डायलॉग के संस्थापक निदेशक काजिम रिजवी कहते हैं, 'इसमें केवल अनुपालन का सवाल नहीं है, बल्कि कई और मुद्दे भी हैं। क्या केंद्र का आदेश कानूनी तौर पर बाध्य है? प्रथम दृष्टया कहा जा सकता है, हां। क्या सरकार द्वारा दिया गया आदेश पारदर्शी है? तो कहा जा सकता है कि आईटी ब्लॉकिंग नियम के नियम 16 के कारण नहीं। हालांकि, क्या यह अनुरूप है? यह निर्णय का विषय है।'
टेकलेगिस के पार्टनर सलमान वारिस का कहना है, 'कई ट्विटर हैंडलों को पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने को सही ठहराना मुश्किल होगा। आप हैशटैग को ब्लॉक कर सकते हैं, साथ ही आप पोस्ट भी ब्लॉक कर सकते हो।' पीएसए लीगल के पार्टनर ध्रुव सूरी के अनुसार, इस सवाल का एक पहलू यह भी है कि बिना किसी राजनीतिक मंशा के सरकार के अनुरोध के सही गलत का निर्णय कौन करेगा। इसके अलावा, धारा 69ए की संवैधानिकता की फिर से समीक्षा हो सकती है, खासकर पारदर्शिता के आधार पर। श्रेया सिंघल मामले के बाद से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के तेज विस्तार को देखते हुए अदालत इस बार प्रावधान को अलग तरह से देख सकती है। जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात आती है, तो एक और गंभीर मुद्दा उठ जाता है। हमेशा जब किसी व्यक्ति का ट्विटर हैंडल इन प्रावधानों के तहत ब्लॉक जाए, तो उसके लिए अदालत में जाना, उसे चुनौती देना और उसे अनब्लॉक कराना मुश्किल होगा, क्योंकि यह सब सरकार के एकपक्षीय आदेश के कारण हो रहा है।
|