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डेटा सेंटर तो बढ़ रहे हैं, पर पानी कहां से आएगा? देश में क्लाउड बूम के सामने बड़ा सवाल

वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत में दुनिया की 18% आबादी रहती है, लेकिन पानी 4% है, जिससे यह दुनिया के सबसे ज्यादा पानी की कमी वाले देशों में से एक बन गया है

Last Updated- November 20, 2025 | 1:11 PM IST
Data Center
AI डेटा सेंटर रिसोर्स के मामले में भी ज्यादा डिमांडिंग हैं क्योंकि उन्हें मॉडल को ट्रेन करने के लिए बहुत ज्यादा कंप्यूट की जरूरत होती है। - प्रतीकात्मक फोटो

टेक दिग्गज गूगल ने पिछले महीने गूगल ने आंध्र प्रदेश के पोर्ट शहर विशाखापत्तनम में अगले पांच सालों में 15 अरब डॉलर निवेश करके 1 गीगावाट (Gw) का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) डेटा सेंटर बनाने के प्लान की घोषणा की। भारत की डेटा सेंटर इंडस्ट्री के लिए यह एक बड़ा मुकाम है। यह इंडस्ट्री पिछले डेढ़ दशक में खास बन गई है, जिसे क्लाउड टेक्नोलॉजी की शुरुआत, ई-कॉमर्स बूम, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल और सरकार के डिजिटल इकॉनमी को बढ़ावा देने से मदद मिली है।

बिजनेस और टेक्नोलॉजी इनसाइट्स कंपनी गार्टनर इंक के नए अनुमान के मुताबिक, भारत का इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) खर्च 2026 में 176.3 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो 2025 से 10.6 प्रतिशत बढ़ेगा और दुनिया भर में होने वाली 9.8 प्रतिशत ग्रोथ से आगे निकल जाएगा।

इस नए अनुमान के मुताबिक, यह ग्रोथ डेटा सेंटर और सॉफ्टवेयर में इन्वेस्टमेंट से हो रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में डेटा सेंटर सेगमेंट में 2026 में सबसे ज्यादा 20.5 प्रतिशत की सालाना ग्रोथ रेट दर्ज होने का अनुमान है। 2025 में 29.2 प्रतिशत से कम होने के बावजूद यह बाकी सभी IT सेगमेंट से आगे बढ़ता रहेगा।

रियल एस्टेट कंसल्टेंसी कंपनी JLL की 2019 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि डेटा लोकलाइजेशन और बढ़ते डेटा इस्तेमाल से पैदा हो रही बढ़ती डिमांड को पूरा करने के लिए भारत की डेटा सेंटर कैपेसिटी 2024 तक IT पावर लोड में लगभग 780 मेगावाट (Mw) तक पहुंच जाएगी, जो 2018-19 में 350 MW थी। इस बढ़ोतरी से ऐसे सेंटर बनाने में 4 अरब डॉलर के ग्रीनफील्ड इन्वेस्टमेंट का मौका मिलने की उम्मीद थी।

रिसर्च फर्म जेफरीज के अनुसार, वह टारगेट आसानी से पार हो गया है और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी अब 2025 में 1.5-1.7 Gw की लोड कैपेसिटी का दावा करती है, जिसके 2030 तक पांच गुना बढ़कर 8 Gw होने की उम्मीद है। इसका लगभग 70 प्रतिशत अब हाइपरस्केलर्स द्वारा चलाया जा रहा है।

JLL की रिपोर्ट कहती है कि यह भारी डिमांड AI टेक्नोलॉजी को अपनाने की बढ़ती वजह से होगी, क्योंकि AI सर्वर ट्रेडिशनल सेटअप की तुलना में पांच से छह गुना ज्यादा पावर इस्तेमाल करते हैं और उन्हें एडवांस्ड लिक्विड कूलिंग सिस्टम की जरूरत होती है। इसके अलावा, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023 जैसे रेगुलेटरी डेवलपमेंट और RBI की डेटा लोकलाइजेशन गाइडलाइंस कंपनियों को भारत में डेटा होस्ट और प्रोसेस करना अब जरूरी हो गया है।

JLL को उम्मीद है कि 2030 तक कैपेसिटी 9 Gw तक पहुंच जाएगी। Amazon Web Services (AWS), Microsoft, और Google Cloud, Meta जैसे ग्लोबल हाइपरस्केलर और Reliance और Adani जैसे भारतीय कारोबारी ग्रुप से 50 अरब डॉलर से ज्यादा निवेश करने की उम्मीद है। इससे लीजिंग रेवेन्यू में 8 अरब डॉलर भी जुड़ सकते हैं, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा।

एक बड़ी डेटा सेंटर कंपनी, योट्टा इंफ्रास्ट्रक्चर के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर सुनील गुप्ता का कहना कि मौजूदा चुनौती पूरी तरह से AI की वजह से है। सॉफ्टवेयर एज ए सर्विस (SaaS) और क्लाउड रश ने एप्लिकेशन्स को क्लाउड में लाने में मदद की, लेकिन यह दूसरे बूम से बड़ा है क्योंकि यह सभी जुड़ी हुई इंडस्ट्रीज पर असर डालता है।”

हीरानंदानी ग्रुप के निवेश वाली कंपनी योट्टा (Yotta) के नवी मुंबई, दिल्ली NCR और गुजरात के गिफ्ट सिटी में तीन डेटा सेंटर हैं, जिनकी IT कैपेसिटी लगभग 90 Mw है। इसे अगले छह महीनों में नवी मुंबई और दिल्ली में नई फैसिलिटी में 96 Mw और जोड़ने की उम्मीद है। मुंबई फैसिलिटी की कुल कैपेसिटी 1 Gw और दिल्ली की 250 Mw होगी। कुल मिलाकर, अगले कुछ सालों में योट्टा की खुद की कंबाइंड कैपेसिटी लगभग 1.3 Gw होगी।

AI डेटा सेंटर रिसोर्स के मामले में भी ज्यादा डिमांडिंग हैं क्योंकि उन्हें मॉडल को ट्रेन करने के लिए बहुत ज्यादा कंप्यूट की जरूरत होती है। डेटा जितना साफ और बड़ा होगा, आउटपुट उतना ही बेहतर होगा। गुप्ता ने कहा, “शुरू में, जब चैट GPT शुरू हुआ, तो यह ज्यादा टेक्स्ट-टू-टेक्स्ट बेस्ड था, लेकिन मूल भाषाओं और वीडियो-बेस्ड AI के साथ, हमें ज्यादा कंप्यूटेशनल पावर की जरूरत है।”

बड़े निवेश को तैयार हाइपरस्केलर्स कंपनियां

गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की पांच सबसे ज्यादा खर्च करने वाली हाइपरस्केलर टेक्नोलॉजी कंपनियां – जो बड़े साइज के एप्लिकेशन चलाती और डिलीवर करती हैं – का कुल कैपिटल खर्च 2025 और 2026 के बीच 736 अरब डॉलर होगा, जबकि 2022 और 2023 के बीच यह 250 अरब डॉलर रहा।

गूगल भारत की तेजी से बढ़ती डेटा सेंटर इंडस्ट्री में सबसे नई एंट्री है, जिसने पहले ही AWS और मेटा को आगे बढ़ते देखा है। हालांकि इन्वेस्टमेंट का साइज भारत में अब तक के सबसे बड़े विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में से एक है। देश की बढ़ती डिजिटल मांगों को पूरा करने के लिए, विशाखापत्तनम AI हब को उन्हीं सख्त स्टैंडर्ड्स पर बनाया जाएगा जो सर्च, यूट्यूब और वर्कस्पेस जैसी ग्लोबल गूगल सर्विसेज को पावर देते हैं।

AWS ने जनवरी में कहा था कि वह अपनी मुंबई क्लाउड सर्विसेज बनाने में 8.3 अरब डॉलर निवेश का प्लान बना रहा है। इस प्रोजेक्ट से भारत की GDP में 15.3 अरब डॉलर जुड़ने और हर साल 81,300 नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है। मेटा, जिसके पास Facebook, WhatsApp और Instagram का स्वामित्व है, चेन्नई में रिलायंस इंडस्ट्रीज कैंपस में भारत में अपना पहला डेटा सेंटर बनाने वाला है। इससे ग्लोबल डेटा हब से ट्रांसमिशन कॉस्ट कम होने की उम्मीद है। अभी, मेटा प्रोडक्ट्स के भारतीय यूजर्स का डेटा सिंगापुर में मैनेज किया जाता है। चेन्नई के अंबत्तूर इंडस्ट्रियल एस्टेट में 10 एकड़ का कैंपस, जो ब्रुकफील्ड एसेट मैनेजमेंट, रिलायंस इंडस्ट्रीज और डिजिटल रियल्टी का जॉइंट वेंचर है, 100 Mw तक का लोड हैंडल करेगा।

भारतीय कंपनियां भी होड़ में शामिल

हाइपरस्केलर्स के अलावा भारतीय कंपनियां भी इस ट्रेंड में शामिल हो गए हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने जुलाई में रिपोर्ट किया था कि भारती एयरटेल की डेटा सेंटर ब्रांच, Nxtra Data देश में टॉप पोजीशन लेने के लिए अगले तीन से चार सालों में लगभग ₹4,500-6,000 करोड़ निवेश करने की सोच रही है। Nxtra देश के खास मेट्रो शहरों में 14 बड़े डेटा सेंटर और 65 शहरों में 120 से ज्यादा एज डेटा सेंटर चलाता है। कंपनी का मकसद दोनों कैटेगरी को बढ़ाना है, जिसमें बड़े डेटा सेंटर पर ज्यादा फोकस किया जाएगा।

रिलायंस गुजरात के जामनगर में दुनिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर, 3 Gw की फैसिलिटी बना रहा है, जबकि अदाणी ग्रुप और एजकॉनेक्स के बीच एक जॉइंट वेंचर, अदानी कॉनेक्स का लक्ष्य 2030 तक 1 Gw का डेटा सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर प्लेटफॉर्म बनाना है।

दूसरी भारतीय कंपनियों में CtrlS, सिफी टेक्नोलॉजी, इक्विनिक्स और NTT ग्लोबल डेटा सेंटर्स शामिल हैं। सेल्स और बिजनेस डेवलपमेंट के प्रेसिडेंट अशोक मैसूर ने कहा कि एशिया के सबसे बड़े रेटेड-4 ऑपरेटर, CtrlS डेटासेंटर्स का लक्ष्य 2030 तक 1 Gw कैपेसिटी हासिल करना है, जो अभी उसके 15 डेटा सेंटर्स में 250 Mw है। इसके लिए करीब 2 अरब डॉलर का निवेश किया जाएगा।

सिंगापुर की रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर की बड़ी कंपनी कैपिटलैंड भी इस दौड़ में है, जिसने 2030 तक अपना 245 Mw का डेटा सेंटर बनाने के लिए 1 अरब डॉलर निवेश, और क्षमता को दोगुना करने की योजना है। इनमें से ज्यादातर डेटा सेंटर मुंबई और चेन्नई में हैं, क्योंकि ये तटीय शहर हैं, जिससे लैंडिंग स्टेशन और सब-सी केबल के लिए यह सुविधाजनक है।

डेटा सेंटर्स के लिए चाहिए लाखों लीटर पानी

दुनिया भर में डेटा सेंटर्स की तेजी से बढ़ोतरी ने सस्टेनेबिलिटी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, यह देखते हुए कि वे कितनी बिजली इस्तेमाल करते हैं और इन बड़े सेंटर्स को ठंडा रखने के लिए लाखों लीटर पानी की जरूरत होती है। गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक डेटा सेंटर की बिजली की डिमांड दुनिया भर की कुल बिजली डिमांड का 3-4 प्रतिशत हो जाएगी, जो 2023 में 1-2 प्रतिशत थी।

मेक्सिको, आयरलैंड और चिली जैसे देशों में, इसकी वजह से बार-बार बिजली चली जाती है और घरों में बिजली का खर्च बढ़ जाता है और पानी के एक्विफर कम हो जाते हैं, जिससे आंदोलन होते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे भारत को डेटा सेंटर की ग्रोथ के मुद्दे से और ज्यादा सावधानी से निपटना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर डेटा सेंटर पानी की कमी वाले इलाकों में हैं।

त्रिवेंद्रम और अहमदाबाद यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के विजिटिंग प्रोफेसर सुनील मणि ने कहा कि सरकार को पॉलिसी लेवल पर सस्टेनेबिलिटी के मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए, यह देखते हुए कि नेशनल डेटा सेंटर पॉलिसी 2025 पर अभी कंसल्टेशन चल रहा है। सरकार ने डेटा और एनर्जी स्टोरेज सिस्टम को पहले ही इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा दे दिया है।

30 सितंबर तक भारत में कुल इंस्टॉल्ड बिजली कैपेसिटी 500 Gw थी। इससे डेटा सेंटर्स से डिमांड 1 प्रतिशत से भी कम हो जाती है, जो आयरलैंड (20 प्रतिशत) और US (2023 में 4.4 प्रतिशत) जैसे देशों से कहीं बेहतर है।

योट्टा के गुप्ता ने कहा कि देश की कुल कैपेसिटी के मुकाबले इन सेंटर्स से कुल बिजली की डिमांड कोई चिंता की बात नहीं होगी। उनका कहना है, “चिंता तब होती है जब किसी खास इलाके में बड़ी कैपेसिटी वाला डेटा सेंटर बनना शुरू होता है। तब लोकल बिजली सप्लाई पर असर पड़ता है क्योंकि अगर फैसिलिटी इतनी ज्यादा बिजली लेती है, तो उस इलाके के दूसरे घरों में इसकी कमी हो सकती है या बिजली के लिए उनका यूनिट रेट बढ़ सकता है।”

जुलाई में मूडीज की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जैसे-जैसे AI मॉडल को ट्रेन करने के लिए डेटा सेंटर अलग-अलग जगहों पर फैलते जा रहे हैं, ग्रिड के साथ इंटीग्रेट करना और लगातार पावर सप्लाई सुनि​श्चित करना साइट चुनने के लिए जरूरी बना रहेगा। चीन और भारत अगले दशक में ग्रिड बढ़ाने और स्टोरेज में अपनी असली GDP का 0.4-0.9 प्रतिशत निवेश कर सकते हैं।

सबसे जरूरी मुद्दा पानी है। सिर्फ 1 Mw लोड और कंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए हर साल 2.55 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है। भारतीय शहरों को सरकारी दखल के बिना ऑपरेशनल रुकावट के खतरों का सामना करना पड़ सकता है। एक्सपर्ट्स एक ऐसी डेटा सेंटर पॉलिसी की जरूरत बताते हैं जिसमें जमीन और बिजली के लिए दूसरे जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट के अलावा पानी के इस्तेमाल का भी ध्यान रखा जाए।

विजाग में गूगल के प्रस्तावित निवेश की ह्यूमन राइट्स फोरम (HRF) ने आलोचना की है, जिसने चेतावनी दी है कि यह प्रोजेक्ट उस इलाके में भूमिगत जल की कमी को और बढ़ा देगा जहां अनियमित बारिश और क्लाइमेट में बदलाव ने पहले ही पानी की भारी कमी पैदा कर दी है।

वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन पानी के रिसोर्स महज 4 प्रतिशत हैं, जिससे यह दुनिया के सबसे ज्यादा पानी की कमी वाले देशों में से एक बन गया है। साथ ही, भारत के डेटा सेंटर में पानी की खपत 2030 तक दोगुनी से ज्यादा बढ़कर 358 अरब लीटर होने की उम्मीद है, जो 2025 में 150 अरब लीटर थी।

एक डेटा सेंटर के कुल एनर्जी इस्तेमाल में कूलिंग का हिस्सा लगभग 30-40 प्रतिशत होता है। लेकिन योटा, CtrlS, और इक्विनिक्स का कहना है कि वे सिस्टम को ठंडा करने के लिए एयर-कूल्ड चिलर का इस्तेमाल करते हैं, जहां पानी एक बंद लूप में रहता है और ताजे पानी की लगातार सप्लाई की जरूरत नहीं होती है।

लेकिन ग्लोबल कंपनियां आमतौर पर वॉटर कूल्ड चिलर इस्तेमाल करती हैं, जो इन सिस्टम को ठंडा करने का सबसे असरदार और पावर बचाने वाला तरीका है। यह देखना बाकी है कि गूगल भारत में अपने नए AI सेंटर के लिए किस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर अपनाता है। डेटा सेंटर इम्पैक्ट रिपोर्ट 2023 के अनुसार, कंपनी का लक्ष्य है कि 2030 तक दुनिया भर में अपने सभी डेटा सेंटर में इस्तेमाल होने वाले ताजे पानी का 120 प्रतिशत फिर से भर दिया जाए।

JLL में APAC और इंडिया डेटा सेंटर के रिसर्च डायरेक्टर जितेश कार्लेकर का कहना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको ज्यादा पानी चाहिए या पावर। जहां तक इस्तेमाल की बात है, पानी एक ज्यादा संवदेनशील मुद्दा होगा, जब आपको इसे अपनी घर की जरूरतों के साथ बैलेंस करना होगा।

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First Published - November 20, 2025 | 12:26 PM IST

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