देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए साझा प्रवेश परीक्षा शुरू करने के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) फैसले पर अकादमिक जगत से जुड़े शिक्षाविदों और संस्थानों की तरफ से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) का प्रभावी अर्थ यह निकाला जा रहा है कि 12 वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के नतीजों का कॉलेज नामांकन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
बोर्ड परीक्षा नतीजों से छूट देने से उम्मीदवारों को एक समान अवसर मिलने की बात कही जा रही है, वहीं दूसरी तरफ, विश्वविद्यालयों और शिक्षाविदों का मानना है कि इससे एक सीयूईटी-केंद्रित कोचिंग-संस्कृति को बढ़ावा मिल सकता है जिससे छात्रों को 12 वीं कक्षा की परीक्षा के बजाय कॉलेज की प्रवेश परीक्षा पर ध्यान देना दे पड़ सकता है।
छात्रों को ट्यूटर से जोडऩे वाले लाइव ट्यूशन मंच, फिलो के संस्थापक और सीईओ इम्बेसत अहमद के अनुसार, इस कदम की वजह से छात्रों को अपनी पसंद के कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए बोर्ड परीक्षा में 99 प्रतिशत तक अंक हासिल करने के दबाव से मुक्ति मिल जाएगी। अहमद ने कहा, ‘नकारात्मक पहलू यह है कि छात्र अब सीयूईटी और उन संस्थानों पर अधिक ध्यान देंगे जहां प्रवेश परीक्षा-केंद्रित पढ़ाई होती है। वे कक्षा में होने वाली पढ़ाई की अनदेखी कर सकते हैं, जिनकी वजह से विषयों की अकादमिक नींव मजबूत होती है। 12वीं कक्षा के अंकों और सीयूईटी दोनों की आवश्यकता बनाए रखने से स्कूल के सीखने के महत्त्व को बनाए रखा जा सकता है।’
वर्ष 2019-20 में अनुमानत: 12वीं कक्षा में 1.27 करोड़ छात्रों का दाखिला किया गया था, ऐसे में 1.1 करोड़ से अधिक छात्र सीयूईटी की परीक्षा में बैठ सकते हैं क्योंकि लगभग 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक सीटों के लिए 90 प्रतिशत छात्र कोशिश करेंगे। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए प्रवेश परीक्षा को राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) के दायरे में लाते हुए यूजीसी ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह स्नातक प्रवेश के लिए सीयूईटी आयोजित करेगा। प्रवेश परीक्षा जुलाई के पहले सप्ताह में आयोजित होने की संभावना है और 12 वीं कक्षा के नतीजों और पहले के कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूसीईटी) से इतर सीयूईटी स्कोर के आधार पर एनटीए एक मेरिट सूची तैयार करेगा।
गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर के रजिस्ट्रार संजय कुमार झा ने कहा, ‘पिछले प्रारूप में भी हम उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं थे जिसके तहत बोर्ड परीक्षा परिणामों पर विचार किया जाता है बल्कि केवल प्रवेश परीक्षा के स्कोर के आधार पर प्रवेश दिए गए। हालांकि, इस कदम से निश्चित तौर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एकरूपता आती है और इससे विभिन्न राज्य बोर्डों के छात्रों को एक समान अवसर मिलता है।’ हालांकि यह कदम गुजरात के केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालयों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो प्रवेश के लिए सीयूसीईटी स्कोर पर निर्भर थे लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) जैसे अन्य विश्वविद्यालयों में बदलाव दिखेगा जहां 99 से 100 प्रतिशत तक कट-ऑफ जाता था।
हालांकि, यूजीसी के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने कहा था कि विश्वविद्यालयों को स्नातक कार्यक्रमों के लिए सीयूईटी स्कोर के आधार पर छात्रों को प्रवेश देना होगा, लेकिन वे पात्रता तय करने में 12वीं कक्षा 12 के नतीजों के लिए न्यूनतम बेंचमार्क निर्धारित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, डीयू की अकादमिक परिषद ने उम्मीदवारों को प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए 12वीं कक्षा में न्यूनतम 40 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता तय की है। हालांकि प्रवेश परीक्षा कमोबेश कंप्यूटर-आधारित सीयूईटी के समान ही होगी जिसमें राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पाठ्यपुस्तकों के आधार पर बहुविकल्पीय प्रश्न होंगे जिन्हें सेक्शन 1 ए, सेक्शन 1 बी, सामान्य परीक्षण और डोमेन-विशिष्ट विषयों में विभाजित किया गया है।
अंग्रेजी के साथ 13 भाषाओं (हिंदी, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उर्दू, असमिया, बांग्ला, पंजाबी और उडिय़ा) में सीयूईटी 2022 परीक्षा आयोजित करने के यूजीसी के कदम का अकादमिक जगत के लोगों ने स्वागत किया है। हालांकि उन्हें इस बात को लेकर हैरानी हो रही है कि गैर-अंग्रेजी भाषाओं में परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों को अंग्रेजी माध्यम के विश्वविद्यालयों में कैसे प्रवेश दिया जाएगा। हालांकि परीक्षा से जुड़े डीयू के डीन डी एस रावत का मानना है कि गैर-अंग्रेजी उम्मीदवारों को नामांकन लेने में कोई परेशानी नहीं होगी। उन्होंने कहाए श्पिछले प्रारूप में और 99-100 प्रतिशत कट-ऑफ के बीच, हमने देश भर के छात्रों को उनकी 12वीं कक्षा के अंकों के आधार पर प्रवेश दिया है। इन उम्मीदवारों के पास अपनी स्कूली, शिक्षा के दौरान भाषाओं के रूप में अंग्रेजी का भी विकल्प था और वे पहले प्रवेश के लिए पात्र थे। ऐसे में सीयूईटी के तहत बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।’ शिक्षाविदों ने सीयूईटी के लिए डोमेन-विशिष्ट विषयों के विकल्प को लेकर चिंता जताई है जिससे प्रवेश के बाद विषयों को बदलने के लिए उम्मीदवारों की क्षमता पर असर पड़ सकता है।
अशोक यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह कैसे काम करेगा, क्या उम्मीदवारों को सीयूईटी के लिए अब एक विषय चुनने के लिए कहा जा सकता है और उन्हें किसी दूसरे विषय को चुनने से वंचित किया जा सकता है, खासतौर पर यह देखते हुए कि क्या नई शिक्षा नीति 2020 विभिन्न विषयों को चुनने की आजादी देती है।’ हालांकि, रावत ने कहा कि इस कदम से उम्मीदवारों के लिए विकल्पों को सीमित नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘वास्तव में, पहले ऐसी शर्तें थीं जिससे इस तरह के विकल्प नहीं मिल पाते थे लेकिन अब सीयूईटी के तहत ढील दी गई है।’