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इन दिनों एआई तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर चल रही चर्चा के बीच बिज़नेस स्टैंडर्ड टेकटॉक इवेंट में शिरकत करने वाली उद्योग की दिग्गज हस्तियों और प्रौद्योगिकीविदों का कहना है कि जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अगले कुछ वर्षों में बड़े अवसर प्रदान कर सकती है।
जेनरेटिव एआई की एक मिसाल के तौर पर चैटजीपीटी को ही लें जो ऑडियो, इमेजरी, टेक्स्ट और सिंथेटिक डेटा सहित विभिन्न प्रकार की सामग्री तैयार कर सकती है। हाल में जेनरेटिव एआई को लेकर चल रही चर्चा की वजह यह भी है कि चंद सेकंड के भीतर ही उच्च-गुणवत्ता वाले ग्राफिक्स, वीडियो और टेक्स्ट बनाने के लिए जो नया यूजर इंटरफेस इस्तेमाल हो रहा है उसकी सादगी आकर्षित कर रही है।
जेनरेटिव एआई का पहला प्रभाव लोगों पर ही पड़ रहा है। कई लोगों को आशंका है कि क्या जेनरेटिव एआई नौकरियां छीन लेगी। लेकिन बिज़नेस स्टैंडर्ड के पैनलिस्टों ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि रोजगार सृजन के लिहाज से यह एक अच्छा अवसर हो सकता है।
डीप टेक एआई स्टार्टअप माइलिन फाउंड्री के संस्थापक और सीईओ और टाटा संस समूह के पूर्व मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी गोपीचंद कटरागड्डा ने कहा, ‘इससे बड़े पैमाने पर नौकरियां पैदा हो सकती हैं।’
उन्होंने कहा, ‘आज मैं मिडजर्नी (एक एआई प्रोग्राम और सेवा) का उपयोग करके तस्वीरें और पेंटिंग बना सकता हूं जो बहुत वास्तविक लगती हैं और यह आश्चर्यजनक भी है। इनका स्रोत वास्तविक पेंटिंग और तस्वीरें हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपके पास भारतीय चेहरों के लिए उस तरह का डेटा हो तो यह मौका भी है। इसके अलावा हाई-एंड एल्गोरिद्म से संबंधित मौके भी हैं।’
सैप बिजनेस टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म के चीफ डेवलपमेंट आर्किटेक्ट शशांक मोहन जैन का मानना था कि ‘जेनरेटिव एआई’ एक ऐसे प्रतिमान पर ले जाता है जहां एक व्यक्ति जो कंप्यूटर विज्ञान स्नातक नहीं है, वह भी एक अच्छा प्रोग्रामर हो सकता है।
जैन ने कहा, ‘यह हम सभी के लिए तंत्र में संवाद कर ऐप्लिकेशन बनाने के कई अवसर बनाता है। पहले आपका ठीक से प्रशिक्षित होना आवश्यक था और इसके साथ ही सही कौशल का होना भी जरूरी था। लेकिन अब अधिक से अधिक जेनरेटिव एआई मॉडल के सामने आने से यह बाधा दूर हो जाएगी।’
जेनरेटिव एआई ने उपभोक्ता के बीच एक बड़ी चर्चा के मौके दिए हैं वहीं कई उद्यम अब भी इसके उपयोग को लेकर सतर्क हैं क्योंकि कॉपीराइट, भरोसे और गोपनीयता जैसे मुद्दों पर अब भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
सेल्सफोर्स इंडिया के सॉल्यूशन इंजीनियरिंग के उपाध्यक्ष दीपक पारगांवकर ने इस पर सहमति जताते हुए कहा है कि संस्थाओं के लिए यह एक बड़ा अवसर है और वे बहुत सारी क्षमताओं का लाभ उठा सकते हैं, लेकिन इस बात पर भी विचार करना होगा कि इसका अंतिम उपयोग क्या है। उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा इसके और भी मानक हैं जैसे कि यह कितना सुरक्षित और कितना विश्वसनीय होने जा रहा है और इससे कितने बदलाव आएंगे।’
इन्फ्रास्ट्रक्चर सॉल्यूशंस ग्रुप, डेल के उपाध्यक्ष मनीष गुप्ता का मानना है कि उद्योग में जेनरेटिव एआई की क्षमता को लेकर बहुत उत्साह है, लेकिन यह देखना जरूरी होगा कि उद्यमों के लिए स्पष्ट तौर पर कमाई करने के अवसर हैं या नहीं। गुप्ता ने कहा, “इस बिंदु पर, मैं कहूंगा कि यह अभी भी एक प्रश्न चिह्न है और अगले छह महीनों और उससे आगे इसमें कई बदलाव दिखेंगे।”
टीसीएस के मुख्य सूचना अधिकारी अभिजित मजूमदार ने भी माना कि जेनरेटिव एआई के क्षेत्र में काफी अवसर है और इसकी तुलना 25 साल पहले के इंटरनेट या 10 साल पहले क्लाउड से करनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘4जी एक अच्छा उदाहरण है। इनमें से प्रत्येक ने एक नया व्यापार मॉडल तैयार किया है जो ऐसी प्रौद्योगिकियों के अभाव में अस्तित्व में नहीं होता। उबर और ओला जैसे राइड ऐप बिना 4जी और क्लाउड के काम नहीं करते।
बड़े पैमाने पर जे नरेटिव एआई अवसर है, लेकिन अगर आप हमसे यह पूछते हैं कि वास्तव में वह अवसर कहां है, तो हम यह नहीं बता सकते हैं और यह इसका मजेदार पहलू यह है कि अभी इसकी खोज की जानी है और यही बात हमें उत्साहित करती है।’
एआई एक अवसर है और इसके उपयोग के मामले पिछले एक दशक में बढ़े हैं, लेकिन हर प्रौद्योगिकी अपने साथ चुनौतियां भी लेकर आती है।
डेल के गुप्ता ने कहा कि उद्यमों के बीच एआई तकनीक को लागू करने के लिए, सबसे बड़ी चुनौती डेटा है, जिसे बनाना, संरक्षित करना है। उन्होंने कहा, “सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसे उत्पादन में कैसे लाया जाए। आपके पास इनोवेटर (बिजनेस लीडर), क्रिएटर (डेवलपर), अमल करने वाला (डेटा साइंटिस्ट) और उपभोक्ता (यूजर ग्रुप) सभी एक साथ होने चाहिए जो एक ही तर्ज पर सोच रहे हों।”
सैप के जैन ने कहा कि डेटा गोपनीयता और सूचना सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के कारण सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट (डीईवी) और ऑपरेशंस (ऑप्स) टीमों के साथ डेटा साझा करने के लिए संस्थाओं के अंदर भी चुनौतियां हैं। जैन ने कहा, “सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आप उस डेटा को कैसे इकट्ठा करते हैं और उसे क्यूरेट करते हैं।”
भारत के संदर्भ में मुद्दा यह है कि क्या ग्राहक एआई को अपने व्यवसाय में गंभीरता से लागू करने की कोशिश करेंगे। माइलिन फाउंड्री के कटरागड्डा ने कहा कि उनकी एआई फर्म भारतीय ग्राहकों के लिए 100 फीसदी काम करना चाहती है। उन्होंने कहा, ‘हालांकि हमारा 80 फीसदी राजस्व और अनुबंध विदेश से मिलता है। हमें विदेश गए बिना ग्राहक मिले।’
बहरहाल, संस्थानों के भीतर एआई जैसी तकनीक को लेकर जागरूकता तथा डेटा और बदलती प्रक्रियाओं के महत्त्व को लेकर समझ बढ़ रही है। आईबीएम के भारत और दक्षिण एशिया कारोबार के टेक्नॉलजी वाइस प्रेसिडेंट विश्वनाथ रामास्वामी कहते हैं कि पांच वर्ष पहले कंपनियों में मुख्य डेटा अधिकारी की भूमिका नहीं थी लेकिन अब यह ज्यादातर बड़ी कंपनियों और उपक्रमों में यह पद मौजूद है।
रामास्वामी ने कहा कि दूसरे छोर पर विनिर्माण और खुदरा क्षेत्र हैं जो बैंकिंग की तुलना में बहुत अधिक विनियमित नहीं हैं। बहरहाल, अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में उन्होंने बदलाव को अपनाया है।
वह कहते हैं, ‘अगर आप नहीं बदलेंगे तो कोई और आपकी जगह ले लेगा। वह कोई भी हो सकता है। ऐसा कोई संगठन भी जो एआई संचालित हो और डेटा की दृष्टि से तैयार हो।’ वह कहते हैं कि प्रतिस्पर्धी ताकतों ने पुराने संस्थानों को बदलाव पर विवश किया है।
बहरहाल, एआई और क्लाउड जैसी उच्च तकनीकों को लेकर बड़ी कंपनियों के लोकतांत्रिक होने और उन्हें छोटे कारोबारों को सुलभ कराने को लेकर भी चुनौतियां हैं। सेल्सफोर्स के पारगांवकर कहते हैं कि सेल्सफोर्स समेत अधिकांश संस्थानों को यह अहसास हुआ है कि बड़े से लेकर छोटे संस्थानों तक हर जगह से वृद्धि आ रही है। उन्होंने कहा कि तकनीकी कंपनियां छोटे कारोबारों तक पहुंचने के प्रयास कर रही हैं और वे ऐसे उत्पाद तैयार कर रही हैं जिन्हें तत्काल अपनाया जा सके।
डेल के गुप्ता ने कहा कि इनमें से कई छोटी कंपनियों में मुख्य सूचना अधिकारी तक नहीं है। उन्होंने कहा कि तकनीक को जमीनी स्तर पर प्रसारित करने के लिए माहौल तैयार करना होगा। गुप्ता कहते हैं, ‘साझेदारों को साथ लाने की आवश्यकता है। अगर आपको जबलपुर में 10 करोड़ रुपये का संस्थान मिलता है और उनके पास मुख्य सूचना अधिकारी नहीं है तो साझेदार उस अधिकारी के रूप में काम करता है।’
आईबीएम पहले ही यह कर रही है। रामास्वामी कहते हैं कि उनकी कंपनी में एक क्लाइंट इंजीनियरिंग यूनिट है जो क्लाइंट की कारोबारी समस्या को हल करती है। उन्होंने कहा कि यह क्लाइंट 10 करोड़ रुपये से 1,000 रुपये मूल्य का संस्थान भी हो सकता है।
उन्होंने कहा कि आईबीएम अनेक साझेदारों के साथ काम कर रहा है जहां वह आईबीएम वाटसन लाइब्रेरीज और नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग को साझेदारों के लिए तैयार कर रहा है ताकि वे नवाचार कर सकें और उन्हें बड़े पैमाने पर फैला सकें। रामास्वामी इसे एंबेडेड एआई कहते हैं। वह कहते हैं कि कंपनी ऐसा माहौल तैयार कर रही है जहां हर संगठन को एआई अथवा तकनीक से लाभ हासिल हो सके।
टीसीएस के मजूमदार कहते हैं कि छोटे संगठनों में तकनीक का लाभ लेने की चाह है। उदाहरण के लिए उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्स जैसी कंपनियों में यह जोर पकड़ रहा है। खासतौर पर एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों के साथ काम कर रहे वेंडरों में।