प्रतीकात्मक तस्वीर
केंद्र सरकार की श्रम नीतियों के खिलाफ 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गई राष्ट्रव्यापी हड़ताल का मामूली असर देखने को मिला। देश के अधिकांश हिस्सों में कामकाज सामान्य रूप से चला, लेकिन पश्चिम बंगाल से हिंसा की कुछ छिटपुट घटनाएं सामने आईं। हालांकि, ट्रेड यूनियनों ने दावा किया कि हड़ताल सफल रही और बड़ी संख्या में श्रमिक इसमें शामिल हुए। यूनियन नेताओं के अनुसार हड़ताल के कारण डाक, बैंकिंग, बीमा और खनन क्षेत्र प्रभावित हुए। आंदोलन कुल मिलाकर शांतिपूर्ण रहा।
हड़ताल में शामिल 10 ट्रेड यूनियनों के एक संगठन ने अपने बयान में कहा कि पुदुच्चेरी, असम, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, गोवा, मेघालय और मणिपुर जैसे देश के कई राज्यों में बंद जैसी स्थिति रही। वहीं राजस्थान, हरियाणा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कई हिस्सों में भी आंशिक बंद की खबरें सामने आईं।
बयान के मुताबिक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में औद्योगिक व क्षेत्रीय हड़तालें हुईं। बयान के मुताबिक, ट्रेड यूनियनों ने चार श्रम संहिताओं को खत्म करने, ठेकाप्रथा, सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण रोकने, न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 26,000 रुपये प्रति माह करने, साथ ही स्वामीनाथन आयोग के ‘सी2 प्लस 50’ प्रतिशत के फॉर्मूले के आधार पर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसानों की कर्ज माफी की किसान संगठनों की मांगों के समर्थन में एक दिवसीय हड़ताल का आह्वान किया था।
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संगठन ने पिछले वर्ष श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को 17 सूत्रीय मांगें सौंपी थीं। मंच ने दावा किया कि सरकार पिछले 10 वर्षों से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित नहीं कर रही है। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में बुधवार को बाजार खुले रहे और बंद का व्यावसायिक गतिविधियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अध्यक्ष बृजेश गोयल ने कहा, ‘दिल्ली के सभी 700 बाजार और 56 औद्योगिक क्षेत्रों में कामकाज सामान्य रहा।’ मंच ने बताया कि दिल्ली में यूनियनों ने औद्योगिक क्षेत्रों में जुलूस निकालने के बाद जंतर-मंतर पर एक जनसभा की, जिसे राष्ट्रीय नेताओं ने संबोधित किया। (साथ में एजेंसियां)