सोने-चांदी के धागों में प्यार पिरोने की कला है जरी-जरदोजी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 12:05 AM IST

सोने और चांदी के धागों को आपस में पिरोने की कला ‘जरीकारी’ हम सभी का ध्यान अपनी ओर बरबस ही खींच लेती है।


लेकिन जरी और जरीकारी का इसलिए भी महत्व है क्योंकि यह उद्योग देश भर में करीब 70,000 लोगों को सीधे तौर पर रोजगार मुहैया कराता है। इस उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र सूरत है और उसके बाद वाराणसी नाम आता है, लेकिन हम सबसे पहले जयपुर की बात करेंगे।

बीते सप्ताह हुए बम विस्फोट से उबरने में जुटे इस शहर में हस्तशिल्प की करीब 350 छोटी-बड़ी इकाइयां हैं। राजस्थान के विभिन्न इलाकों के अलावा बरेली, सूरत और आगरा से जरी का तैयार माल जयपुर में आता है लेकिन बम विस्फोट के बाद वहां कारोबार ठप पड़ा है।

हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के कार्यकारी निदेशक राकेश कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘आने वाले महीनों में जरी सहित हस्तशिल्प का कारोबार प्रभावित होगा। लेकिन बम विस्फोट के बाद जयपुर के लोगों ने जैसी मजबूती और एकता दिखाई, उसके मद्देनजर कहा जा सकता है कि पर्यटकों और खरीदारों का विश्वास जल्द ही बाजार में लौट आएगा।’

फेडरेशन ऑफ राजस्थान हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष दिलीप दयाल ने बताया कि ‘बम विस्फोट से हस्तशिल्प का निर्यात बाजार प्रभावित नहीं हुआ है हालांकि टूरिस्ट बाजार पर इसका काफी असर पड़ रहा है। जाहिर तौर पर इसका असर जरी-जरदोजी पर भी देखने को मिलेगा।’ जयपुर के हस्तशिल्प कारोबार में निर्यात की हिस्सेदारी करीब 40 प्रतिशत है। राजस्थान में जयपुर के अलावा अजमेर, जयपुर और जोधपुर में जरी का काम बड़े स्तर पर किया जाता है।

उत्तर प्रदेश में बरेली, वाराणसी और आगरा जरीकारी के प्रमुख केन्द्र हैं। बरेली में करीब 25,000 परिवार जरीकारी का काम कर रहे हैं। यहां से ज्यादातर तैयार माल का निर्यात किया जाता है। दिल्ली, जयपुर, मुंबई 250 से 300 निर्यातक बरेली से जरी के सामान की खरीदारी करते हैं।

वाराणसी में साड़ियों पर जरी का काम काफी लोकप्रिय है। यहां के प्रमुख बाजारों में चौक, विश्वनाथ गली और ठठेरी बाजार शामिल हैं। बनारस के करीब मिर्जापुर और भदोही में भी जरी-दरजोही का काम होता है। आगरा का जरी उद्योग 13,000 लोगों को रोजगार देता है और यहां करीब 116 निर्यात इकाइयां हैं।

रूपेश ने बताया कि जरी कशीदाकारी में सोने और चांदी से बने धागों को आपस में गूंथकर आकर्षक डिजायन तैयार किया जाता है। हालांकि, अब सोने और चांदी के धागों की जगह सिंथेटिक और बनावटी धागों ने ले ली है। जरी से मिलती जुलती कला जरदोजी है। कशीदाकारी का ढंग और इस्तेमाल किए गए मॉल में अंतर के आधार पर दोनों कलाओं को अलग किया जाता है।

भारत में तैयार जरी और उससे बने सामानों की विदेशों में काफी मांग है। इस वस्तुओं का निर्यात अमेरिका, इंग्लैण्ड, सऊदी अरब, जापान और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में किया जाता है। हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद जरी कशीदाकारी के निर्यात के लिए विदेशों में विशेष प्रदर्शनी का आयोजन करता है।

भारत में जरीकारी के प्रमुख केंद्र

शहर  –  राज्य  –    विशेषताएं
सूरत –  गुजरात – कसाब, तिल्ला, चंपू, गोटा और जलार
बरेली – उत्तर प्रदेश – बैज, एम्बीम्स, इवनिंग वियर, सजावटी झोले
वाराणसी – उत्तर प्रदेश – जरीकारी वाली साड़ियां, कालीन
आगरा  – उत्तर  प्रदेश – बैज, कालीन, किस्मस का सजावटी सामान
जयपुर  –  राजस्थान –  झालर, एम्बीम्स, कालीन, हस्तशिल्प
बाड़मेर  –  राजस्थान –  झालर, हस्तशिल्प, हाथ की छपाई वाला कपड़ा

झूलत श्यामल नंद किशोर

जरी का उल्लेख ऋग्वेद में भी है। भगवान कृष्ण की झांकी सजाने के लिए जरी के काम की शुरूआत हुई। इस दौरान ब्रज क्षेत्र में जरी कशीदाकारी तेजी से विकसित हुई। मुगलकाल में जरी का तेजी से विकास हुआ।

जरी-जरदोजी के काम से कपड़ों का प्रभाव बढ़ जाता है लेकिन मैं इसका इस्तेमाल खास तौर से कपड़ों में भारतीय लुक लाने के लिए करती हूं। आजकल कपड़ों पर जरी का हल्का काम काफी लोकप्रिय है। – रीना ढाका, फैशन डिजायनर

First Published : May 19, 2008 | 11:04 PM IST