रामअवतार पिछले 6 साल से स्थानीय साबुन निर्माताओं के लिए पैकेट बनाते थे। लेकिन अब उन्होंने शहर के गुटखा निर्माताओं के लिए पाउच बनाने का काम शुरू कर दिया है।
दरअसल शहर में पान मसाला और गुटखा कारोबार काफी फल-फूल रहा है। मंदी में भी अच्छी कमाई करने के दबाव में उन्होंने ऐसा किया है। मंदी में स्थानीय साबुन उद्योग की खस्ता हालत को देखते हुए उनके जैसे एक दर्जन कारोबारी ऐसा करने को विवश हुए हैं।
रामअवतार ने बताया, ‘मेरा संयंत्र पहले ही अपनी क्षमता का मात्र 35 फीसदी ही उत्पादन कर रहा था। लेकिन साबुन निर्माताओं की ओर से आने वाले ऑर्डर रद्द होने के बाद मेरे पास सिर्फ दो ही विकल्प बचे थे। उनमें से एक था संयंत्र बंद करना और दूसरा था कोई और तरीका ढूंढना। मैंने दूसरा विकल्प चुना और गुटखा उद्योग को पाउच की आपूर्ति करना शुरू कर दिया।’
भारतीय औद्योगिक संगठन (आईआईए) कानपुर, के अध्यक्ष सुनील वैश्य ने बताया कि मंदी के कारण प्लास्टिक पैकेजिंग जैसे लघु उद्योग के कारोबार में भी 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
लगभग 80 स्थानीय साबुन निर्माताओं की ओर से आने वाले ऑर्डर बंद होने के कारण पैकेजिंग उद्योग काफी मुश्किल समय से गुजर रहा है। साबुन निर्माताओं पर भी लागत कम करने का दबाव है।
रामअवतार ने बताया, ‘मेरे अधिकतर ग्राहकों ने रंग-बिरंगी प्लास्टिक में पैकिंग करना बंद कर दिया है। कई तो अखबार में साबुन लपेटकर ही बेच रहे हैं।’ साबुन निर्माता भी संयंत्र बंद होने और लागत कम करने की बात को स्वीकार कर रहे हैं।
पीएसएम सोप्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक राहुल गुप्ता ने बताया, ‘इस समय हमारा पूरा ध्यान लागत घटाने पर ही है। इसके लिए हमने पैकेजिंग में होने वाले खर्च को कम करने का फैसला लिया है। कई साबुन निर्माताओं ने तो बढ़ती लागत को देखते हुए उत्पादन ही बंद कर दिया है।’