मंदी के बीच अब प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) ने भी अपने देश की जमीन पर चक्कर लगाना कम कर दिया है।
पंजाब का आतिथ्य सत्कार उद्योग जो अब तक इन प्रवासी भारतीयों के दम पर गुलजार रहा करता था, उसकी भी रंगत फीकी पड़ने लगी है।
दरअसल जालंधर में हर साल काफी संख्या में प्रवासी भारतीय आते रहे हैं और सबसे खास बात यह है कि उन्हें यहां आकर शॉपिंग करना काफी रास आता है।
तो स्वाभाविक है कि यहां के दुकानदारों को हर साल प्रवासी भारतीयों का बेसब्री से इंतजार रहा करता है। लेकिन इस साल मंदी के बीच उन्हें अपने देश की मिट्टी भी खींच नहीं पा रही है। इससे यहां की दुकानों में आय पर सीधे सीधे असर पड़ने लगा है।
कुलतम स्टोर के मालिक अशोक कुलतम ने बताया कि फगवाड़ा के पास लगभग 150 गांव हैं, जहां से कई लोग विदेशों में जाकर रहने लगे हैं। फगवाड़ा के दुकानदारों को इन गांवों का पड़ोसी होने पर काफी गर्व है।
और हो भी क्यों नहीं आखिर इन गांवों से ही उन्हें अच्छी खासी कमाई होती है। लेकिन दुनिया भर में छाई मंदी के कारण कम संख्या में प्रवासी भारतीय अपने घर आए हैं। इस कारण बिक्री में भी कमी आई है।
उन्होंने बताया कि वह पिछले 85 साल से शादी के कपड़ों का कारोबार कर रहे हैं। शादी के सीजन में कई प्रवासी भारतीय खास तौर से शादी में पहनने के लिए उनकी दुकान से ही अपने कपड़े खरीदते हैं।
उन्होंने बताया, ‘इस समय एनआरआई ग्राहकों के नहीं आने से हमारे कारोबार पर काफी फर्क पड़ा है।’ फगवाड़ा में कपड़ों की दुकानों की संख्या लगभग 200 है। इनमें से 20 बड़ी दुकानें हैं। नवंबर और फरवरी में इन बड़ी दुकानों का कारोबार रोजाना 1 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है।
जालंधर के व्यापारियों ने बताया कि स्थानीय बिक्री काफी कम ही हो रही है। हमारा कारोबार मुख्य रूप से एनआरआई ग्राहकों पर ही आधारित है।
कारोबारियों ने यह भी बताया कि अमृतसर के लिए उड़ानों की संख्या में आई कमी भी कम प्रवासी भारतीयों के आने की एक वजह है।
मंदी का असर पैलेस और हॉल के कारोबार पर भी पड़ा है। मंदी के कारण इस बार शादी के सीजन में पैलेस की बुकिंग में भी गिरावट देखी गई है।
एक बैंक्वेट हॉल के मालिक रणबीर सिंह ने बताया कि अगर इस साल हुए कारोबार की तुलना पिछले साल से की जाए तो बुकिंग में काफी गिरावट आई है।
दोआब क्षेत्र में लगभग 45 बैंक्वेट हॉल हैं। पिछले साल यह हॉल महीने के 25 दिन बुक थे। जबकि अब इन्हें महीने में 10-12 दिन की बुकिंग से ही संतुष्ट होना पड़ रहा है।