उत्तर प्रदेश मे शराब के ठेकों पर पांच सालों के अंतराल के बाद एक बार फिर एक ही सिंडीकेट का कब्जा हो गया है।
प्रदेश के 70 जिलों में इसी महीने उठाए गए शराब के ठेकों में ज्यादातर पुराने कारोबारी बदरी प्रसाद, हर प्रसाद जायसवाल और फोंटी चढ्ढा के सिंडीकेट के हाथों में चले गए हैं।
हालांकि सरकार का दावा है कि थोड़ी फेरबदल कर पांच साल पुराने सिस्टम को लागू करने से राजस्व में खासी बढ़त होगी पर लाइसेंस के जरिए कारोबार में उतरे नए लोगों में से करीब-करीब सारे धंधे से बाहर हो गए हैं।
कल ही प्रदेश के 22 जिलों में शराब के ठेकों की नीलामी का काम पूरा किया गया है। इन जिलों में लखनऊ और कानपुर जैसे बड़े जिले भी शामिल हैं। आबकारी विभाग की मानें तो अकेले लखनऊ में ही शराब की बिक्री से मिलने वाला राजस्व इस बार 400 करोड़ रुपये को पार कर जाएगा जो कि बीते साल के मुकाबले करीब 100 करोड़ रुपये ज्यादा होगा।
सूबे में सबसे ज्यादा शराब राजधानी में ही गटक ली जाती है। राजधानी में शराब की कुल 654 दुकानें हैं जिनमें देशी, अंग्रेजी शराब और बियर की दुकानें शामिल हैं। इनमें देशी शराब की 362 दुकानें, विदेशी शराब की 116 दुकानें और बियर की 50 मॉडल शॉप और बियर की 126 दुकानें शामिल हैं।
राजधानी में करीब 60 फीसदी ठेकों पर फोंटी चढ्ढा और उनके समूह के लोगों का कब्जा हो गया है जबकि 20 फीसदी दुकानें विपप्रा जायसवाल के हाथ लगी हैं। कुछ बची दुकानें ही नए कारोबारियों के हाथ आ पायी हैं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार आबकारी नीति में परिवर्तन करते हुए एक बार फिर से लॉटरी सिस्टम को लागू कर दिया है। इससे पहले लगातार तीन सालों तक लाइसेंस के जरिए शराब की दुकानों का आवंटन किया जा रहा था।
इस बार आबकारी नीति में परिवर्तन करते हुए विशेष जोनों का गठन भी किया गया है। इन विशेष जोनों में समीप के राज्यों से सटे जिलों को शामिल किया गया है। ऐसा करने के पीछे राज्य सरकार ने इन जिलों में शराब की तस्करी को रोकना बताया है। शराब के धंधें में नए उतरे कारोबारियों का कहना है कि सिंडीकेट के सक्रिय हो जाने के बाद धंधे में जो उनकी मर्जी होगी वही माल बिकेगा।