संपादकीय

बिहार चुनाव में NDA की प्रचंड जीत: अब वादों पर अमल की चुनौती

बिहार के मतदाताओं ने राजग को प्रचंड बहुमत देकर भाजपा को सबसे बड़ा दल बनाया और नीतीश सरकार को आर्थिक चुनौतियों से निपटने तथा विकास गति बढ़ाने की स्पष्ट जिम्मेदारी सौंपी

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 16, 2025 | 9:56 PM IST

बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजों की अलग-अलग ढंग से व्याख्या की जा सकती है लेकिन कुछ बातें निर्विवाद हैं। सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को दो तिहाई से ज्यादा बहुमत मिला और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पहली बार प्रदेश में सबसे बड़ा दल बनकर उभरी। देश के पूर्वी हिस्से में पार्टी के उभार में इसे एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इतना ही नहीं हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली विधान सभा चुनावों में जीत के बाद बिहार विधान सभा चुनाव में जीत के साथ भाजपा और राजग ने 2024 के लोक सभा चुनाव में हार के बाद विपरीत जन भावना से काफी हद तक निजात पा ली है।

लोक सभा चुनाव में राजग को अनुमान से कम सीटें मिली थीं और भाजपा 2014 के बाद पहली बार अपने दम पर बहुमत पाने से पीछे रह गई थी। स्पष्ट जनादेश और सत्ताधारी दल के साथ गठबंधन से मिलने वाली राजनीतिक सुरक्षा सरकारों को मजबूती देती है और वे शासन पर ध्यान दे सकती हैं। अब जबकि देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक बिहार के मतदाताओं ने अपनी प्राथमिकता एकदम स्पष्ट कर दी है तो आने वाली सरकार को पहले दिन से काम पर लग जाना होगा।

फिलहाल जो हालात हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बार फिर सरकार बनाने की उम्मीद है। वे 2005 से ही ज्यादातर वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं और उन्हें अच्छी तरह पता है कि प्रदेश की हालत कैसी है। यह सही है कि बीते दो दशक में बिहार ने कई विकास मानकों पर सुधार किया है लेकिन उसे निरंतर तेज गति से वृद्धि हासिल करने तथा देश के अन्य राज्यों के आसपास पहुंचने के लिए निरंतर उच्च निवेश की आवश्यकता है।

जनसंख्या का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा अब भी बहुआयामी गरीबी में है। विकास पर सरकार की खर्च करने की क्षमता के संदर्भ में, सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा किए गए कुछ वादे जैसे बिजली सब्सिडी में वृद्धि, सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना पर वित्तीय व्यय, और कृषि क्षेत्र में हस्तक्षेप आदि स्थिति को और जटिल ही बनाएंगे।

चालू वर्ष में कुल राजस्व प्राप्तियों में प्रदेश का अपना राजस्व केवल 22.8 फीसदी रहने की उम्मीद है। राज्य जहां राजकोषीय घाटे को कम करके राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के 3 फीसदी लाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है वहीं चुनावी वादों को पूरा करना इस गणित को बिगाड़ सकता है। ऋण का स्तर भी बढ़ा हुआ है और वह प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद के 37 फीसदी के स्तर पर है।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च का एक हालिया अध्ययन दिखाता है कि 2016-17 से 2024-25 के बीच ब्याज भुगतान की चक्रवृद्धि वार्षिक दर 12 फीसदी रही, जबकि राजस्व केवल 10 फीसदी बढ़ा। यद्यपि कई राज्य इस श्रेणी में आते हैं, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि अधिक ऋण राज्य की विकास पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को लगातार सीमित कर सकता है।

सत्ताधारी गठबंधन को जिस तरह का चुनावी जनादेश मिला है, उसके मद्देनजर बिहार को विश्लेषकों द्वारा और बारीकी से देखा जाएगा। हालांकि, दो व्यापक घटनाओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला, यह व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है कि नीतीश कुमार ने 2005 में राज्य में सत्ता में आने के बाद से महिला सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित किया है। इसका प्रतिबिंब महिलाओं की कहीं अधिक ऊंची मतदान भागीदारी में भी दिखा। कई अन्य राज्यों ने भी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं और अधिकांश मामलों में सत्ताधारी दल को इसका भरपूर लाभ मिला है।

अब राज्य सरकारों को इन उपायों से आगे व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिणामों में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जैसे महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी बढ़ाना या समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार करना। दूसरा, अंतिम समय में किए गए कल्याणकारी उपायों पर, जैसा कि बिहार में भी देखा गया, व्यापक बहस होनी चाहिए। यह कहना कठिन है कि केवल मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत पात्र महिलाओं को 10,000 रुपये का वितरण ही राजग की वापसी सुनिश्चित कर गया, लेकिन ऐसी योजनाएं और उनका समय निश्चित रूप से सत्ताधारी को लाभ देते हैं और संभवतः समान अवसर के सिद्धांत को बाधित करते हैं।

First Published : November 16, 2025 | 9:56 PM IST