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खनिज संसाधनों से भरपूर झारखंड की अर्थव्यवस्था अपनी स्थापना के बाद से राष्ट्रीय आर्थिक विकास के साथ तालमेल बिठाने में विफल रही है। जिन ख्वाबों, इरादों और लक्ष्यों के साथ यह आदिवासी बहुल राज्य बना था, उन्हें पूरा करने के लिए इसकी क्षमताओं का पूरी तरह उपयोग किया ही नहीं जा सका है।
स्वतंत्रता के बाद से जयपाल सिंह और बाद में शिबू सोरेन जैसे नेताओं के नेतृत्व में आदिवासी पहचान, स्वायत्तता और कल्याण के लिए एक लंबे सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष के बाद पिछली शताब्दी के अंत में झारखंड राज्य अस्तित्व में आया।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने संसद में बिहार पुनर्गठन अधिनियम-2000 पारित किया। उसी साल प्रसिद्ध आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर के दिन बिहार के दक्षिणी हिस्से को काटकर देश का 28वां राज्य बना था झारखंड। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की 26 प्रतिशत से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति श्रेणी की थी। उस समय कुल 81 विधान सभा सीटों में से 28 इन्हीं वर्गों के लिए आरक्षित किए गए थे। पिछले ढाई दशक में झारखंड में केवल एक गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री भाजपा के रघुवर दास रहे हैं। संयोग से 2014-19 तक पांच साल का पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले वह एकमात्र व्यक्ति थे।
स्थापना के बाद से अब तक खनिज संसाधनों से भरपूर झारखंड की अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय आर्थिक विकास के साथ कभी तालमेल नहीं बना पाई। वित्तीय वर्ष 2001-02 में राज्य की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय का 62.05 प्रतिशत थी। उसके बाद अगले दशक के दौरान इसमें थोड़ी बढ़ोतरी देखने को मिली लेकिन बाद में यह 60 प्रतिशत से नीचे आ गई और वित्त वर्ष 25 में यह 56.82 प्रतिशत दर्ज की गई। इसी तरह केंद्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हिस्सेदारी के रूप में झारखंड की जीएसडीपी वित्त वर्ष 2002 में जहां 1.67 प्रतिशत थी, वह वित्त वर्ष 25 में घटकर 1.56 प्रतिशत पर आ गई। यह सुस्त आर्थिक विकास को दर्शाती है।
वित्त वर्ष 2006 और वित्त वर्ष 16 में झारखंड की वास्तविक जीएसडीपी में सिकुड़न दर्ज की गई, जबकि देश की वास्तविक जीडीपी इस अवधि में क्रमश: 9.5 प्रतिशत और 8 प्रतिशत की दर से बढ़ी। कोविड महामारी के बाद वित्त वर्ष 23 और 24 में जीएसडीपी विकास दर राष्ट्रीय जीडीपी विकास दर से पीछे रही, लेकिन वित्त वर्ष 25 में यह आगे निकल गई।
बजट के मोर्चे पर राजस्व प्राप्तियों के हिस्से के रूप में राज्य के कर राजस्व में भी वित्त वर्ष 02 में 34.03 प्रतिशत के मुकाबले मामूली गिरावट के साथ वित्त वर्ष 25 में 30.66 प्रतिशत (संशोधित अनुमान) रही। खास बात यह कि वित्त वर्ष 26 के बजट अनुमान में इसमें और गिरावट दर्शायी गई है, जो राजस्व प्राप्तियों के लिए केंद्र सरकार तथा अन्य माध्यमों से आने वाले धन, अनुदान या सहायता पर झारखंड की निर्भरता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। कुल व्यय और जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय उतार-चढ़ाव के बीच काफी हद तक स्थिर ही रहा है।
वित्त वर्ष 21 के महामारी वाले वर्ष को छोड़कर जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राज्य की बकाया देनदारियां पिछले दशक में लगभग 27-29 प्रतिशत रही हैं।
सकारात्मक पहलू यह है कि स्थापना के बाद झारखंड के वित्तीय प्रदर्शन में काफी सुधार देखने को मिला है। वित्त वर्ष 2002 और 2006 में झारखंड का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 4.68 प्रतिशत और 8.08 प्रतिशत था, जो वित्त वर्ष 16 में घटकर 5.58 प्रतिशत पर आ गया। महामारी के बाद वित्त वर्ष 24 में राजकोषीय घाटा कम होकर 1.4 प्रतिशत और वित्त वर्ष 25 में 2.3 प्रतिशत (संशोधित अनुमान) हो गया है। हाल के वर्षों में झारखंड में राजस्व अधिशेष की स्थिति रही है, जो वित्त वर्ष 24 में जीएसडीपी का 2.4 प्रतिशत तक पहुंच गया।
इसके अलावा, झारखंड सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में भी पीछे है। बिहार के बाद सबसे अधिक बहुपक्षीय गरीब आबादी झारखंड में ही रहती है। वर्ष 2019-21 में राज्य की कुल आबादी में बहुपक्षीय गरीब तबके की हिस्सेदारी 28.81 प्रतिशत थी। यह राष्ट्रीय स्तर से लगभग दोगुनी है। वर्ष 2015-16 में तो राज्य में यह आंकड़ा 42.1 प्रतिशत के स्तर पर था।
रांची (राज्य की राजधानी) जिले को छोड़ दें तो झारखंड के प्रत्येक जिले में 3 से 5 एसटी-आरक्षित विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। इन सभी क्षेत्रों में 2019-21 के दौरान बहुपक्षीय गरीबी का औसत राज्य के औसत से कहीं अधिक था। यही नहीं, इस दौरान आदिवासी जिलों के दो-तिहाई हिस्सों में बहुपक्षीय गरीबी दर राज्य के औसत से अधिक दर्ज की गई थी।
वर्ष 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना से पता चला कि झारखंड में केवल 7 प्रतिशत आदिवासी परिवारों के सदस्य ही प्रति माह 10,000 रुपये से अधिक कमा रहे थे। इसके अलावा, लगभग 13 प्रतिशत आदिवासी परिवारों के सदस्यों के पास वाहन या मछली पकड़ने की नावें थीं। 2011 में केवल लगभग 5 प्रतिशत परिवारों के सदस्यों ने ही आयकर दिया। इससे संकेत मिलता है कि राज्य के लोग किस हद तक आजीविका के लिए कृषि या वनों पर निर्भर हैं।
वर्ष 2023-24 (जुलाई-जून) के दौरान झारखंड में बेरोजगारी दर केवल 1.3 प्रतिशत थी, राष्ट्रीय औसत 3.2 प्रतिशत तथा एसटी वर्ग के लिए अखिल भारतीय बेरोजगारी दर 1.9 प्रतिशत से काफी कम है। इस दौरान राज्य की पुरुष और महिला साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से कम दर्ज की गई।
इस वर्ष अपनी रजत जयंती मना रहे झारखंड को सामाजिक और आर्थिक मानकों पर अपने नागरिकों विशेष रूप से आदिवासियों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है, क्योंकि इन्हीं की पहचान और स्वायतत्ता के लिए तो अलग राज्य के लिए लंबा संघर्ष चला था।