अवैध चाल का फैलता जाल

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 10:01 PM IST

मुंबई में ध्वस्त की जा रही इमारतों के बीच यह सवाल उठता है कि आखिर सारे नियम कानून ताक पर रखकर कैसे खड़ी हो जाती हैं अवैध इमारतें?
कौन हैं वे लोग जो अवैध निर्माण को धड़ल्ले से चालू रखने की इजाजत देते हैं और कौन हैं वे जो लोगों के सपनों से खिलवाड़ करते हैं। मुंबई और आसपास फैले इस मकड़जाल का जायजा ले रहे हैं सुशील मिश्र और अरुण यादव 
मुंबई सहित आसपास के उपनगरीय इलाकों में विभिन्न महानगर पालिकाओं ने अवैध इमारतों को ढहाने के लिए जोरदार कार्रवाई शुरू कर दी है। मुंबई में पिछले दिनों महानगर पालिका ने एक सात मंजिली अवैध इमारत पर बुलडोजर चलाया तो मीरा भायंदर महानगर पालिका ने कुछ आलीशान इमारतों पर हथौड़ा।
मगर हड़कंप मचा1159 अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाए जाने की खबर से। इस कार्रवाई में ठाणे महानगर पालिका भी पीछे नहीं रही, उसने भी अदालती आदेश मानते हुए नेताओं और अफसरशाहो के लिए ऐशगाह बने येऊर के बंगलों को जमींदोज कर दिया। उल्हासनगर, कल्याण-डोबिंवली महानगर पालिका के पास भी अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई वाली इमारतों की लंबी सूची तैयार है।
आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण नेता अब यह कह अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि इस समय उनके हाथ में कुछ भी नहीं है। पर यहां सवाल उठता है कि आखिर अवैध निर्माण हो कैसे जाते हैं?
एक अनुमान के मुताबिक मुंबई में लगभग 200 इमारतों का निर्माण अवैध है। इनमें कुछ तो प्रशासन की नाक के नीचे ही बनी हैं। इसके अलावा गोरेगांव के फिल्मसिटी इलाके, चेंबूर, मलाड, अंधेरी, बोरिवली और दहिसर इलाके में ऐसी कई इमारतें खड़ी हैं जो महानगर पालिका को मुंह चिढ़ाती हैं।
अवैध इमारतों का जाल मुंबई महानगर में कम और उपनगरीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। कानून को किस तरह से ठेंगा दिखाया जाता रहा है, यह बात इन आंकड़ों से साफ हो जाती है। देश की सबसे बड़ी महानगर पालिका मुंबई की सीमा में लगभग 200 अवैध इमारतें, 2000 से ज्यादा झोपड़े और हजारों अस्थायी अतिक्रमण वाले स्टॉल हैं।
लगभग 12 लाख की आबादी वाले मीरा-भायंदर महानगर पालिका की 1159 इमारतें अवैध चिह्नित की गई हैं। इनमें लगभग पांच लाख लोग रहते हैं। इस तरह इस इलाके की 40 फीसदी से अधिक जनसंख्या अवैध इमारतों में रह रही है। उल्हासनगर में 855 और कल्याण-डोबिवली की लगभग 4500 इमारतों को अवैध माना गया था जिन्हें सरकार ने विशेषाधिकार के चलते वैध करार करा दिया।
यहां अभी भी अवैध इमारतों की संख्या सैकडों में आंकी जा रही है। मीरा-भायंदर की अवैध इमारतों को फिलहाल राहत नहीं मिली है जिसके चलते इन्हें तोड़ने की कार्रवाई हो सकती है। महानगर पालिकाओं की इस कार्रवाई से आम जनमानस भयंकर गुस्सा है। लोग कुछ सवालों के साथ इन निर्माणों को बचाने की मांग कर रहे हैं, मसलन जब ये इमारतें बन रही थीं तब प्रशासन कहां था? बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं अवैध निर्माणों को क्यों दी गई? सरकार ने उनसे टैक्स किस आधार पर वसूला गया…।  
इस कार्रवाई के साथ कई निजी और सार्वजनिक बैंक भी लोगों के निशाने पर हैं जिन्होंने लोगों को कर्ज दिया। लोगों के अनुसार कर्ज देने से पहले बैंक इन जगहों की जांच अपने लीगल एक्पर्ट से करवाते हैं और उसके बदले वह लोन लेने वाले से लगभग 2500 रुपये की फीस भी वसूलते हैं, तब बैंक के कानूनी विशेषज्ञ ने क्या देखा और बैंक को क्या रिपोर्ट सौंपी? क्योंकि बैंक लोन लेने वाले व्यक्ति को सर्वे की रिपोर्ट नहीं उपलब्ध कराता है।
संपति मामलों के जानकार यशवंत भाई दलाल कहते हैं कि दरअसल यह पूरा एक सिंडिकेट होता है जिसमें महानगर पालिकाओं के अधिकारी, भवन निर्माता, बैंक के अधिकारी और स्थानीय नेता शामिल होते हैं। पैसों के बल पर महानगर पालिका से इमारत का नक्शा पास करवा लिया जाता है।
नेता भी मुंह न खोलें, इसके लिए उनकी भी जेब भर दी जाती है और बैंक अधिकारी जब जांच के लिए आते हैं तो फर्जी दस्तावेजों के साथ उनकी जेब भी गरम कर दी जाती है, जिससे बैंक लोन भी पास कर देता है। इस सिडिकेंट के भंवर में फंसता है आम आदमी।
मीरा रोड में तोड़ी गई सात मंजिला ओसवाल पैराडाइज में फ्लैट खरीदने वाले मुकेश का कहना है, हम मानते हैं कि हमने गलत फ्लैट खरीद लिया लेकिन इमारत का निर्माण अवैध था तो बैंक ने लोन क्यों पास कर दिया था? महानगर पालिका ने पानी की सप्लाई क्यों की थी? बिजली का कनेक्शन कैसे दे दिया जाता है?
अधिकारी और नेता जब इमारत बनाई और बेची जा रही होती है तो क्या सो रहे थे। मुकेश का कहना है कि वे अदालत जाएंगे और पूछेंगे कि यह कहां का न्याय है कि घूसखोरों को मजा और आम आदमी को सजा दी जाती है।
जिन इमारतों को तोड़ा गया है, उनमें सबसे प्रमुख इमारत ओसवाल पैराडाइज के निर्माता उमराव सिंह ओसवाल कहते हैं कि इमारत वैध है या अवैध, यह अभी भी कानूनी बहस का मुद्दा है लेकिन जिन लोगों ने तोड़ी गई बिल्डिंग में फ्लैट खरीदे थे, उनको परेशान होने की जरूरत नहीं है इसीलिए हमने सब से कह दिया है कि चाहे तो फ्लैट की कीमत ले लो या फिर हमारी दूसरी बिल्डिंग, जिनमें फ्लैट खाली है, वहां शिफ्ट कर जाओ।
कुछ लोग दूसरी बिल्डिंग में चले गए हैं जबकि कुछ ने पैसे वापस ले लिए हैं। ओसवाल कहते हैं कि जिस दर पर फ्लैट की बुकिंग की गई थी उसी दर पर पैसे हम वापस कर रहे हैं जबकि आज 25 फीसदी कीमत कम है। बहरहाल, जानकार कहते हैं कि कुछ इमारतों में तो मनपा का बुलडोजर गरजेगा लेकिन संख्या को देखते हुए बाद में इन्हें भी सरकार वैध करार दे देगी।
इमारतों की पर्ची निकाल कर होगी कार्रवाई : आयुक्त
अवैध इमारतों का निर्माण इतनी चालाकी से किया जाता है कि ऐसे बिल्डरों को पकड़ना आसान नहीं होता है। लेकिन महानगर पालिका की जिम्मेदारी होती है कि वह अवैध निर्माण ध्वस्त करने के साथ ही ऐसे निर्माण कार्य न होने दे।
शहर में बनाए गए अवैध निर्माणों को तोड़ा तो जरूर जाएगा लेकिन कुछ प्रशासनिक और कानूनी दिक्कतों की वजह से इनमें देरी हो सकती है। यह कहना है मीरा-भायंदर महानगर पालिका के आयुक्त शिवमूर्ति नाइक का।
नाइक कहते हैं कि सभी अवैध इमारतों को तोड़ा जाएगा, वे चाहे किसी भी ग्रुप की हों। नाइक के अनुसार सबसे बड़ी बाधा हमारे आगे कानूनी आती है। जब हम कार्रवाई के लिए पहुंचते है तो लोग अदालत से स्टे लेकर खड़े हो जाते हैं। हमने एक योजना बनाई है जिसके तहत अवैध इमारतों को चार श्रेणियों में बांट दिया गया है। किस इमारत को पहले तोड़ा जाए, आरोपों से बचने के लिए इसके लिए भी योजना तैयार कर ली गई है।
इसके तहत श्रेणी के हिसाब से सभी इमारतों की पर्ची एक बक्से में डाली गई है। एक पर्ची महापौर निकालेंगे तो दूसरी पर्ची विपक्ष के नेता को निकालनी होगी। आयुक्त का कहना है कि भविष्य में अवैध इमारतों को रोकने के लिए हमने नगर रचना विभाग को आदेश दिया है कि मनपा के बांधकाम विभाग की जब तक हरी झंडी नहीं मिल जाती, तब तक पानी का कनेक्शन न दिया जाए।
अवैध को बैंकों का वैध कर्ज
किसी व्यक्ति को आवास ऋण देने से पहले बैंक यह जांच करते हैं कि यह प्रॉपर्टी सही है या नहीं। जर्जर और अवैध इमारतों के लिए बैंक लोन नहीं देते हैं लेकिन जिन इमारतों को अवैध करार देकर तोड़ने का आदेश दिया गया है उन इमारतों में फ्लैट खरीदने वाले ज्यादातर लोगों ने बैंको से कर्ज लेकर फ्लैट खरीदा है। अब बैंक भी मान रहे हैं कि उनसे कहीं न कही चूक हुई है।
 इन फ्लैटों पर कर्ज लगभग सभी बड़े बैंकों ने दिये हैं इसलिए निजी और सार्वजनिक बैंक भी लोगों के निशाने पर हैं जिन्होंने लोगों को कर्ज दिया। इन इमारतों में घर खरीदने वालों के अनुसार लोन देने सेपहले बैंक इन जगहों की जांच अपने कानूनी सलाहकार से करवाते हैं और एवज में वे लोन लेने वाले से फीस भी वसूलते हैं।
सवाल है कि तब बैंक के कानूनी सलाहकार क्या देखते हैं और बैंक को कौन सी रिपोर्ट सौपते हैं?  इस सवाल पर जिन बैंकों से संपर्क किया गया, उनमें से सभी ने इस पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया। आवास ऋण देने के इस मामले पर बैंकों की गलती भारतीय बैंक संघ के पूर्व चेयरमैन एच.एन. सिनॉर स्वीकार करते हैं। वे मानते है कि बैंकों से कर्ज देने के मामले में चूक हुई है।
सिनॉर कहते हैं कि बैंक अवैध इमारतों या जर्जर इमारतों पर बनने वाले फ्लैटों के लिए लोन नहीं देते हैं इसीलिए लोन पास करने के पहले बैंक अपने कानूनी सलाहकार को भेजकर संबंधित इमारत की जानकारी हासिल करते हैं। लेकिन न्यायालय द्वारा अवैध घोषित इमारतों पर कई बैंकों ने लोन दिये हैं। इनमें बैंकों से कहीं न कहीं चूक हुई है।
‘अवैध निर्माण में भ्रष्ट अफसरों का हाथ स्पष्ट’
मीरा-भायंदर महानगर पालिका के महापौर नरेंद्र मेहता कहते हैं कि यह कुछ हद तक सच है कि अवैध इमारतों के निर्माण में कुछ भ्रष्ट अधिकारियों का हाथ रहता है। लोगों का कहना है कि महानगर पालिका में बिल्डर लॉबी के दबदबे की वजह से अवैध इमारतों का निर्माण होता है।
अगर ऐसा नहीं है तो पानी और बिजली के कनेक्शन के साथ महानगर पालिका अन्य कर कैसे वसूल करने लगती है? इस पर मेहता का कहना है कि भवन निर्माताओं से जान पहचान होने का मतलब यह नहीं होता है कि महापौर भवन निर्माताओं के गलत काम में भी शामिल हैं और अगर ऐसा होता तो हम अवैध इमारतों को तोड़ने का प्रस्ताव महासभा में लेकर ही क्यों आते? 
महापौर सीधे महानगर पालिका के अधिकारियों पर आरोप लगाते हैं कि पिछले छह महीने से जब जब हम लोग कार्रवाई की बात करते तो आयुक्त छुट्टी पर चले जाते थे, इसकी शिकायत हमने राज्य सरकार से भी की थी।
अपना आशियां बसाने से पहले इतना जरूर देख लें
घर खरीदने से पहले संपत्ति की कीमत को लेकर स्थानीय लोगों एवं दलालों से भलीभांति 5-6 बार पूछताछ करें। इसके चलते आप अपने नए आशियाने के लिए बाजार भाव से ज्यादा कीमत देने से बच सकते हैं।
आप जिस सोसाइटी में घर खरीदने वाले हैं उसकी जांच महानगर पालिका के स्थानीय दफ्तर में करें कि उक्त सोसाइटी पंजीकृत है या नहीं ताकि आप कानूनी पचड़ों में न फंसे।
घर खरीदने का सौदा पक्का होने के बाद अग्रिम राशि देने से पहले मूल कागजात की कानूनी परामर्शदाता से जांच करा ले और साथ ही आप पुराना मकान खरीद कर रहे हैं तो उक्त घर की बिक्री से संबंधित सभी कागजात की जांचकर उसकी एक-एक कॉपी अपने पास सुरक्षित रखें।
यदि आपके पास घर खरीदने के लिए पर्याप्त राशि मौजूद है, तो इसके बावजूद बैंकों से आवास ऋण लेने के लिए आवेदन करें और यदि बैंक द्वारा ऋण नहीं दिया जाता है तो इसकी जांच कर ले कि आखिरकार ऋण क्यों नहीं दिया जा रहा है?
नया मकान खरीदने से पहले इसकी जांच करें कि जिस जमीन पर इमारत खड़ी हो रही है, उसे किस प्रकार के क्षेत्र की मंजूरी मिली है। जैसे कि कारपेट, बिल्ट अप और सुपर बिल्ट अप।
यह जरुर जांच ले कि जिस भूमि पर भवन मौजूद है या  निर्माण होने वाला है, क्या उक्त निर्माण को स्थानीय सरकारी महकमे की मंजूरी मिली हुई है। इसके अलावा मकान पुराना है तो इससे संबंधित सही सीसी प्रमाणपत्र, योजना की कॉपी और सात बाराह उतारा (7-12 उतारा) प्रमाणपत्र के कागजात मकान-मालिक के पास हैं या नहीं।
मकान खरीदने से पहले जांच लें कि मकान मालिक द्वारा घर की सारी बकाया देनदारी का भुगतान किया है या नहीं (जैसे – बिजली बिल, महानगर पालिका द्वारा संपत्ति पर वसूला जाने वाला कर, सोसायटी के शुल्क) और इसके बाद सोसायटी से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) जरुर हासिल कर लें।
इसके बाद अपने वकील से स्टैम्प डयूटी एवं पंजीकरण शुल्क के साथ वकील की फीस का लेखा-जोखा कराकर अपने सपनों का आशियाना बसाने की तैयारियां शुरु कर दें।
अवैध आशियाने पर नजर रखेंगे थाने
महानगर पालिका हमेशा पुलिस बंदोबस्त न मिल पाने का बहाना करके अवैध निर्माणों को फलने-फूलने का मौका देती रही है।
राज्य सरकार ने इस बात को ध्यान में रखते हुए मुंबई में अवैध निर्माण रोकने और महानगर को अतिक्रमण से बचाने के लिए सिविल पुलिस स्टेशन और सिविल कोर्ट की स्थापना किये जाने की घोषणा की है। इसके तहत अवैध निर्माण के लिए वार्ड अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
लोकसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले हुई मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने माना था कि अवैध निर्माण और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण बड़ी समस्या बन गई है। इसे रोकने में नागरिक प्रशासन लगभग नाकाम रहा है इसलिए सरकार ने इसके लिए अलग से पुलिस स्टेशन और कोर्ट की स्थापना करने का निर्णाय लिया है।
इसके बाद महानगर पालिका को अवैध निर्माण रोकने के लिए पुलिस आयुक्त से पुलिस बंदोबस्त की गुहार नहीं करनी पड़ेगी। इस योजना के तहत इसके लिए अलग से सिविल पुलिस स्टेशन बनाए जाएंगे। अवैध मामलों को जल्द निपटाने के लिए सिविल कोर्ट का गठन किया जाएगा। सिविल पुलिस स्टेशन और कोर्ट की स्थापना का खर्च महानगर पालिका को उठाना होगा।
मुंबई में जब भी किसी अवैध निर्माण को रोकने या तोड़ने की बात आती है तो मनपा कर्मचारियों की सुरक्षा और उस क्षेत्र का माहौल न खराब हो इसके लिए भारी पुलिस बल की आवश्कता होती है।
तोड़क कार्रवाई करने के लिए मनपा आयुक्त पुलिस आयुक्त से पुलिस बल की मांग करते हैं लेकिन अक्सर देखने को मिलता है कि पुलिस विभाग पुलिस कर्मचारियों की संख्या कम होने का हवाला देकर मनपा को समय पर सुरक्षा व्यवस्था मुहैया नहीं करा पता है। जिसके चलते कई अवैध निर्माणों को फैलने फूलने का मौका मिल जाता है।
महानगर पालिका काफी लम्बे समय से सिविल पुलिस स्टेशन बनाएं जाने की मांग करती रही है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने मुंबई में अतिक्रमण रोकने के 1995 में भी इस तरह की घोषणा की थी, जिसमें अतिक्रमण या अवैध निर्माण के लिए क्षेत्र के पुलिस अधिकारी और वार्ड अधिकारी को जिम्मेदार ठहराने की बात कही गई थी। लेकिन आज तक एक भी अधिकारी पर कार्रवाही नहीं हुई।
जबकि सबको पता है कि मुंबई या आसपास के इलाकों में होने वाले अवैध निर्माण में महानगर पालिका अधिकारी भी शामिल रहते हैं। अवैध निर्माण रोकने के सरकार के इस पहल के बारे में लोगों का कहना है कि सुनने में तो अच्छा लगता है कि अब अवैध निर्माण नहीं बन पाएंगे लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि यह हकीकत में कब आएगा।

First Published : March 29, 2009 | 11:08 PM IST