हरियाणा सरकार ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए कृषि और औद्योगिक विकास के लिए 2010 के अंत तक 5 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली देने का टंरप कार्ड तो खेला है।
लेकिन राज्य की लगभग 70 हजार गैर पंजीकृत औद्योगिक इकाइयों की ओर से अतिरिक्त बिजली की बढ़ती मांग, नए रिहायशी इलाकों के बसने और कृषि के लिए बिजली उपकरणों के बढ़ते इस्तेमाल से हरियाणा सरकार की इस योजना में पलीता लगता दिखाई दे रहा है।
राज्य के औद्योगिक संगठनों और सरकारी विभागों के आंकड़ों के हिसाब से राज्य में बिजली की मांग और आपूर्ति में इतना अंतर है कि अगर सरकार अगले तीन साल में अतिरिक्त बिजली का उत्पादन कर भी देती है तो भी राज्य में बिजली का रोना लगा ही रहेगा।
हरियाणा विद्युत उत्पादन निगम (एचपीजीसी)के प्रवक्ता ने बताया कि इस समय हरियाणा में 5650-5800 मेगावाट बिजली की मांग है, जबकि आपूर्ति केवल 4700-4800 मेगावाट है। ऐसे में मांग और आपूर्ति में अंतर 1000 मेगावाट का है।
लेकिन किसानों और फरीदाबाद, पंचकूला, रेवाड़ी, रोहतक, गुड़गांव के औद्योगिक संगठनों के मुताबिक इस समय हरियाणा में 10 हजार मेगावाट बिजली की जरूरत है। इसमें कृषि और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए ही 7500- 8000 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है।
जबकि रिहायशी इलाकों के लिए 2 से 2.5 हजार मेगावाट की। लेकिन आपूर्ति केवल 4800 मेगावाट ही है। ऐसे में मांग और आपूर्ति में करीब 50 फीसदी का अंतर है।
हरियाणा विद्युत प्रसार निगम के मुताबिक औद्योगिक और कृषि क्षेत्र के तेजी से विकास करने के कारण राज्य में बिजली की मांग में सालाना 12 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है।
इस तरह बिजली की मांग 2010 के अंत तक 13 हजार मेगावाट तक हो जाएगी। जबकि सरकार द्वारा झार, यमुनानगर, हिसार और अन्य जगहों पर शुरू की गई बिजली योजनाओं के तहत हरियाणा का बिजली उत्पादन लगभग 10 हजार मेगावाट ही हो पाएगा।
ऐसे में 3 हजार मेगावाट बिजली की किल्लत रहने से हुड्डा सरकार द्वारा अगले दो साल में पांच हजार मेगावाट की अतिरिक्त बिजली देने की योजना लॉलीपॉप ही साबित होगी। औद्योगिक संगठनों का मानना है कि बिजली की आपूर्ति और मांग में इतना बड़ा अंतर सरकार द्वारा वास्तविक मांग का अंदाजा न लगा पाने से है।
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से राज्य में इस समय 80 हजार छोटे उद्योग है। जबकि 1500 मझोले और लघु उद्योग पंजीकृत होकर काम कर रहे हैं। जबकि गैर पंजीकृत इकाइयों की संख्या को भी इसमें मिला लिया जाए तो यह संख्या 1.5 लाख हो जाएगी।
सरकार तो पंजीकृत इकाइयों को गिनकर ही बिजली वितरण सुनिश्चित कर रही है। ऐसे में गैर पंजीकृत इकाइयां या तो बिजली की चोरी कर रही हैं या राज्य के ऊपर बिजली का अतिरिक्त बोझ डाल रही है। यही कारण है कि फरीदाबाद, धारू हेड़ा, रोहतक और रेवाड़ी जैसे शहरों की औद्योगिक इकाइयों में 5 से 7 घंटे तक बिजली की कटौती हो रही है।