कानपुर में टैनरियों का गढ़ कहलाने वाले जाजमऊ में मकदूम टैनरी में अब मुर्गियां पल रही हैं। पूरे इलाके में हमेशा पसरी रहने वाली चमड़े की बदबू गायब है। इलाके की गलियों में न तो पहले की तरह गाडिय़ों की भीड़ है और ही टैनरियों के बाहर बीड़ी फूंकते मजदूर दिख रहे हैं। इरफान अली मुख्य सड़क से कुछ दूर बनी अपनी टैनरी के दरवाजे पर खड़े हैं। वह अपनी मशीनें कबाड़ी के हाथ बेच रहे हैं। इरफान कहते हैं कि जाजमऊ की रौनक चली गई और पता नहीं कब लौटेगी।
कानपुर की टैनरियों में तैयार चमड़ा देश-विदेश की लेदर कंपनियों को जाता है। देश में जूते, जैकेट और सैडलरी उद्योग में इसकी खपत होती है तो विदेश में एक्सेसरीज के लिए खूब चमड़ा मंगाया जाता है। जाजमऊ में 400 से ज्यादा टैनरी हैं। इनमें से 300 से ज्यादा में काम चल रहा था मगर कोरोनावायरस की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद एक वक्त में मुश्किल से 100 टैनरियां ही चल रही हैं। काम के नाम पर कई जगह तो खानापूरी ही हो रही है और कुछ टैनरियों में पहले से पड़ा कच्चा माल निपटाया जा रहा है।
जाजमऊ टैनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष नैयर जमाल ने बताया कि दो महीने तक बंद पड़ी टैनरियों को चलाने की इजाजत 29 मई को मिल गई थी। 21 मार्च से लॉकडाउन में बंद पड़ी 261 टैनरियों में चमड़े का काम दोबारा शुरू हुआ मगर तीन दिन के भीतर नया फरमान आ गया। इसमें कहा गया कि 1 जून से टैनरियां बारी-बारी चलेंगी। इसलिए एक वक्त में आधी से भी कम टैनरी चल रही हैं।
टैनरियों पर इस बंदिश की एक वजह जल निगम की ढिलाई भी है। जमाल ने बताया कि जाजमऊ में निगम ने तीन दशक पहले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया था। उस वक्त केवल 200 टैनरी थीं। धीरे-धीरे टैनरी दोगुनी हो गईं और 1 लाख लोग भी बस गए। मगर सबका कचरा पुराने प्लांट में ही जा रहा है। महज 80 लाख लीटर दैनिक की क्षमता वाले प्लांट में टैनरियों के साथ आबादी का भी दूषित जल जाता है और निगम क्षमता नहीं बढ़ा रहा। अब इसका खमियाजा पूरा उद्योग भुगत रहा है।
टैनरियों के सामने मजदूरों का भी टोटा है। दो महीने के लॉकडाउन में अपने घर लौट गए बिहार और बंगाल के मजदूर वापस आने को तैयार नहीं हैं। यहां की टैनरियों में करीब 10 लाख नियमित और अनियमित मजदूर काम करते हैं। इनमें 2 लाख को वेतन मिलता है और बाकी दिहाड़ी या ठेका मजदूर हैं। हालांकि मजदूरों की कमी अभी साल नहीं रही है क्योंकि आधी टैनरी बंद हैं और ऑर्डर भी नहीं हैं।
मगर कच्चे माल की किल्लत मुंह बाए खड़ी है। लॉकडाउन में बूचडख़ाने या तो बंद हैं या उनके काम के घंटे बहुत कम हो गए हैं। इसीलिए चमड़ा नहीं मिल रहा है। टैनरी मालिक बताते हैं कि इस समय बीफ का निर्यात बहुत कम हो गया है, जिससे कच्चा चमड़ा ही नहीं मिल रहा। दक्षिण भारत से भी कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है। इन सब बातों से टैनरी मालिकों को बाजार छिनने का डर सताने लगा है। उनका कहना है कि आगरा के जूता निर्माता पहले ही चेन्नई से माल मंगा रहे हैं और बाकी जगहों पर बांग्लादेश ने घुसपैठ कर ली है। कानपुर में टैनरियों का सालाना कारोबार 2,000 करोड़ रुपये से ऊपर है मगर इन झटकों की वजह से इस बार कारोबार आधे से भी कम रह जाने का खटका लग रहा है।
नैयर ने बताया कि बहुत से टैनरी मालिक कोरोना संकट के बाद धंधा समेटने की बात भी करने लगे हैं। हिंदुस्तान टैनर्स, पायनियर टैनर्स जैसे बड़े कारोबारी धंधा समेट भी चुके हैं। इनमें से कुछ विदेश में चमड़े का कारोबार शुरू कर रहे हैं। जाजमऊ के कई टैनरी मालिक भी अब रेडीमेड गारमेंट जैसे कारोबारों में हाथ आजमा रहे हैं।
