भोपाल गैस कांड: एक त्रासदी जिसका अंत नहीं

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 8:43 PM IST

भोपाल की ब्लूमून कालोनी के निवासी नसीरूद्दीन करीब 28 साल पहले पड़ोस के रायसेन जिले से भोपाल मजदूरी की तलाश में आए थे।


लेकिन आज उन्हें अपने इस फैसले पर अफसोस है। नसीर और उनका परिवार गैस संबंधी असाध्य बीमारी से जूझ रहा है।भोपाल नगर निगम द्वारा लेथल टॉक्सिक और दूषित पानी की आपूर्ति करने के कारण उन्हें यह बीमारी तोहफे में मिली है। यह दास्तान सिर्फ नसीर की ही नहीं है, बल्कि करीब 25,000 से अधिक परिवार अलग-अलग तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं।


ये लोग यूनियन कारबाईड के बंद पड़े सौर वाष्पीकरण तालाब के करीब रह रहे थे। भोपाल में 1984 में यूनियन कारबाईड के संयंत्र से जहरीली गैस के रिसाव के बाद उपजी त्रासदी में सौकड़ों लोग मारे गए थे। इससे पहले बीएमसी 14 स्थानों पर 2 दिन के नियमित अंतराल पर टैंकरों के जरिए पानी की आपूर्ति करता था। इस दौरान पानी के 96 टैंक लोगों तक साफ पानी की आपूर्ति सुनिश्चित कराते थे।


हालांकि शिवनगर, नया आरिफ नगर, अन्नू नगर, नवाब कॉलोनी, ब्लू मून कॉलोनी, सुंदर नगर, टिंबर मार्केट, राम नगर और चांदवाड़ी के निवासी दूषित पानी का इस्तेमाल करने पर पेट दर्द, गैस की समस्या और त्चचा संबंधी समस्या की शिकायत कर रहे हैं। मीडिया में इस बारे में खबर छपने के बाद बीएमसी ने करीब के गांव रासलाखेड़ी के टयूबवेल से पानी की आपूर्ति शुरू की है।


इस इलाके में लोगों ने गर्मी में पानी की किल्लत ने बचने के लिए घरों में ही बोरिंग करवा ली है और बीएमसी द्वारा पानी की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति नहीं हो पाने के कारण जहरीला पानी ही पी रहे हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों के पास भोपाल नगर निगम द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी को पीने के अलावा कोई विकल्प नहीं है जबकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक यह पानी पीने के लायक नहीं है।


अधिकारियों ने पिछले एक साल से पानी का परीक्षण नहीं किया है। सच पूछे तो बीएमसी ने पानी आपूर्ति के स्रोत, उसके स्थान और पानी में गंदगी के स्तर को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है। भोपाल गैस राहत और पुनर्वास विभाग और बीएसी एक दूसरे के ऊपर इस बात की जिम्मेदारी थोप रहे हैं।


विभाग का कहना है कि वह अदालत के निर्देशों का पालन करते हुए एक नोडल एजेंसी की तरह काम कर रहा है जबकि बीएमसी की दलील है कि इस स्थानों में जांच किया हुआ पानी पहुंचाने की जिम्मेदारी राहत और पुनर्वास विभाग की जिम्मेदारी है।


बीएससी के आयुक्त निकुंज श्रीवास्तव ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘मुझे नहीं पता है कि रासलाखेड़ी (पानी आपूर्ति का स्थान) कहां है लेकिन हम पानी की आपूर्ति भौतिक, रसायनिक और बैक्टीरिया के परीक्षण के बाद करते हैं। पूरे कस्बे को पीने का साफ पानी मिल रहा है।’ उन्होंने बताया कि ‘जवाहर लाल नेहरु शहरी पुनरोद्धार मिशन के तहत इस साल दिसंबर तक एक पानी आपूर्ति परियोजना पूरी हो जाएगी।


इस परियोजना की लागत 14 करोड़ रुपये है। यह परियोजना खास तौर से गैस प्रभावित लोगों के लिए बनाई गई है। इस बारे में भोपाल गैस राहत विभाग से अधिक जानकारी ली जा सकती है।’


राज्य गैस राहत और पुनर्वास विभाग का जवाब बहुत अलग नहीं रहा है। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैडर्ड को बताया कि ‘पानी का परीक्षण किया गया है। बीएमसी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पांच मापदंड़ों पर परखी गई जांच रिपोर्ट कहती है कि पानी साफ है और पानी योग्य है लेकिन थोड़ा बहुत प्रदूषण हो सकता है।’ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बीआईएस के मानदंड़ों के मुताबिक रासलाखेड़ी का पानी पीने लायक नहीं है।


हमने पिछले साल मार्च में पानी का परीक्षण किया था और बीएससी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक रासलाखेड़ी के पानी में कुल विघटित सालिड्स की मात्रा 600 है जबकि बीआईएस के मानदंड़ों के मुताबिंक इसे 500 होना चाहिए जबकि क्षारियता की मात्रा 350 है जबकि इसे 200 होना चाहिए। इसी तरह कठोरता की सीमा 300 के मुकाबले 350 है और मैग्नीज की मात्रा 0.18 मिलीग्राम है। वैज्ञानिकों के मुताबिक पानी में हालांकि कीटनाशक नहीं पाए गए हैं।

First Published : April 10, 2008 | 10:31 PM IST