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बैंकिंग साख: RBL पर क्यों आ रहा M&M का दिल

M&M फाइनैंशियल सर्विसेज ने रिजर्व बैंक की ओर से जारी दिशा-निर्देशों की समीक्षा के बाद बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन पर आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया था।

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- September 05, 2023 | 9:28 PM IST

करीब एक दशक पहले 24 जून, 2013 को महिंद्रा ऐंड महिंद्रा फाइनैंशियल सर्विसेज लिमिटेड को शेयर बाजारों में उस समय भारी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा जब कंपनी के बोर्ड ने फैसला लिया कि वह बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं कर रहा है । कारोबारी समय के दौरान की गई इस घोषणा के तुरंत बाद कंपनी का शेयर 15.91 प्रतिशत तक गिर गया और 216.25 रुपये के निचले स्तर को छू गया। हालांकि निचले स्तर पर खरीदारी से शेयर में हुए नुकसान में कुछ कमी आई।

एम ऐंड एम फाइनैंशियल सर्विसेज ने रिजर्व बैंक की ओर से जारी दिशा-निर्देशों की समीक्षा के बाद बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन पर आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया था। केंद्रीय बैंक ने इस घोषणा से पहले उसी महीने कुछ स्पष्टीकरण भी जारी किए थे। कंपनी ने कहा कि उसके बोर्ड ने उसकी योजनाओं और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के रूप में उसके विकास की संभावनाओं में विश्वास जताया।

रिजर्व बैंक ने किसी एनबीएफसी को बैंक में बदलने के बारे में दिशा निर्देश दिए थे लेकिन नकद आरक्षी अनुपात और सांवि​धिक तरलता अनुपात जैसी आरक्षी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसने कोई लचीलापन नहीं दिखाया था। बैंक की शुरुआत से ही ये अनुपात लागू हो जाने थे। यह एक बड़ी बाधा थी।

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अब 10 साल बाद 27 जुलाई, 2023 को मूल कंपनी महिंद्रा ऐंड महिंद्रा के शेयर दिन के कारोबार में उस समय 6.9 प्रतिशत तक गिर गए जब कंपनी ने कहा कि उसने आरबीएल बैंक में 3.53 प्रतिशत हिस्सा खरीद लिया है और भविष्य में इसे वह 9.9 फीसदी तक बढ़ा सकती है। कंपनी ने शेयर खरीद के लिए कोई तर्क नहीं दिया। शेयर बाजारों को दी गई सूचना में उसने कहा,‘ हमने 417 करोड़ रुपये के निवेश से आरबीएल बैंक में 3.53 प्रतिशत हिस्सा खरीद लिया है। कीमत, नियामकीय मंजूरी और जरूरी प्रक्रिया के अनुसार हम और निवेश पर विचार कर सकते हैं। लेकिन किसी भी हालत में यह हिस्सा 9.9 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।’

अप्रैल 2021 में एम ऐंड एम के प्रबंध निदेशक अनीश शाह ने समूह के मुख्य कार्या​धिकारी के रूप में दिए अपने पहले इंटरव्यू में कहा था कि समूह बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकता है। उन्होंने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि ‘हमारा मानना है कि प्रशासन के नजरिये से हम सभी शर्तें पूरी करते हैं।’

हालांकि समूह को अभी यह फैसला करना है कि वह औपचारिक बैंकिंग के क्षेत्र में किसी निजी बैंक के अधिग्रहण के जरिये उतरेगा या सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के अधिग्रहण के जरिए। शाह ने कहा महिंद्रा समूह इस समय महिंद्रा फाइनैंस से ऋण नहीं लेता। सच तो यह है कि जरूरत के वक्त हम ही कभी-कभी महिंद्रा फाइनैंस को ऋण देते हैं और इस साल के शुरू में हमने इसमें पूंजी डाली थी।

इसके उलट 27 जुलाई को शेयर बाजारों को दी गई सूचना में कंपनी ने जो कहा उससे कई को यह विश्वास हुआ कि शाह अपनी ही बात पर अमल कर रहे हैं। इस कहानी के आगे बढ़ने का सभी को इंतजार था। मगर यह जल्द ही आगे बढ़ गई। 4 अगस्त को एम ऐंड एम के जून तिमाही के नतीजों की घोषणा के बाद विश्लेषकों के साथ बातचीत में शाह ने स्पष्ट किया कि अगर बहुत रणनीतिक मूल्य नहीं हुआ तो कंपनी आरबीएल बैंक में पूंजी आवंटन नहीं बढ़ाएगी। यह पिछली उस घोषणा के उलट था जिसमें बैंक में हिस्सा 9.9 प्रतिशत तक बढ़ाने की बात कही गई थी।

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शाह ने कहा था, ‘आज यह 417 करोड़ रुपये का निवेश है। यह निवेश उस क्षेत्र में है जो हमारे लिए मुख्य है यानी वित्तीय सेवा और जिसमें हम और बढ़ना चाहते हैं और जिसमें हमारा बाजार पूंजीकरण करीब 40,000 करोड़ रुपये है। इस निवेश के जरिये हम व्यापक तरीके से बैंकिंग को लंबी अवधि यानी 7 से 10 साल तक के नजरिये से समझ सकेंगे।’

सवाल है कि बैंकिंग कारोबार समझने के लिए कंपनी ने आरबीएल बैंक को ही क्यों चुना? शाह के अनुसार एक बार की प्राइस टू बुक वैल्यू के लिहाज से यह निवेश के लिए बड़ा अवसर है, अच्छे प्रबंधन के साथ अच्छी तरह संचालित बैंक। उनको उम्मीद है कि एक समय बाद इस निवेश से बढ़िया रिटर्न मिलेगा। (प्राइस टू बुक वैल्यू किसी कंपनी के शेयर मूल्य की बाजार कीमत और इक्विटी की बुक वैल्यू का अनुपात है यानी कंपनी की परिसंपत्तियों का मूल्य)।

मौजूदा इक्विटी स्वामित्व के अनुसार एम ऐंड एम आरबीएल बैंक में तीसरा सबसे बड़ा शेयरधारक है। बेरिंग प्राइवेट इक्विटी एशिया के पास सबसे अधिक 9.9 प्रतिशत और ब्रिटिश इंटरनैशनल इन्वेस्टमेंट के पास 6 फीसदी से थोड़ा अधिक हिस्सा है। इस निवेश के बाद जहां एम ऐंड एम के निवेशक राहत में हैं, वहीं एक शख्स यानी आरबीएल बैंक के प्रबंध निदेशक और सीईओ आर सुब्रमण्यकुमार जरूर मुस्करा रहे होंगे।

हाल तक बैंक बहुत अच्छी हालत में नहीं था। जब कुछ जमाकर्ता पैसे निकालने लगे तो 27 दिसंबर, 2021 को रिजर्व बैंक ने एक विज्ञप्ति जारी कर लोगों को आश्वस्त किया था कि बैंक को लेकर चल रही कुछ अटकलों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है और बैंक की वित्तीय हालत अच्छी है।

सुब्रमण्यकुमार इससे पहले इंडियन ओवरसीज बैंक में प्रबंध निदेशक और सीईओ थे। उन्होंने 22 जून, 2022 को आरबीएल बैंक की कमान संभाली और नियामक, कर्मचारियों और ग्राहकों के बीच भरोसा बहाली का काम किया। बोर्ड और कर्मचारियों के बीच दूरी कम करने के लिए विभिन्न स्तरों पर कई कमेटियां बनाई गई हैं। वह कर्मचारियों के बैंक छोड़ने से रोकने और बैंक को स्थिरता देते हुए विकास के रास्ते पर ले जाने में सफल रहे हैं।

वह बैंक की बैंकिंग कॉरस्पॉडेंट सब्सिडरी आरबीएल फिनसर्व लिमिटेड की मजबूती का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले बैंक और यह सब्सिडरी अलग-अलग काम करते थे। बैंक की शाखाएं जमा जुटाती थीं जबकि सब्सिडरी छोटे कर्ज।

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यह निश्चित मान लीजिए कि आरबीएल बैंक कोई रुग्ण मामला नहीं है। जब नियामक ने दखल दिया तब भी इसकी पूंजी और वित्तीय स्थिति संतोषजनक थी। सही जोखिम प्रबंधन न होने और ऋण समीक्षा नीति के कारण कुछ साल पहले बैंक रिजर्व बैंक की नजर में आया। कुछ कॉरपोरेट ऋण फंसने और असुरक्षित कर्ज बढ़ने से नियामक को चिंता हुई।

वित्त वर्ष 2020 और 2021 में इसकी वृद्धि नरम थी। उससे पहले माइक्रोफाइनैंस कर्ज उसकी कुल ऋण बुक का 12 प्रतिशत थे। असुरक्षित क्रेडिट कार्ड बिजनेस भी उद्योग में सबसे अधिक यानी पूरे ऋण पोर्टफोलियो का करीब 20 फीसदी था।
इस समय उसकी परिसंपत्तियों में करीब 24 प्रतिशत क्रेडिट कार्ड हैं जबकि माइक्रोफाइनेंस ऋण का हिस्सा घटकर 8 फ़ीसदी रह गया है।

थोक ऋण भी कुल ऋण का करीब 40 फीसदी है। जून में कासा कुल जमा का 37.3 प्रतिशत था जबकि खुदरा जमाएं बढ़कर 44 फ़ीसदी हो गई हैं। पिछले एक साल में फंसा कर्ज भी घटकर 2.35 प्रतिशत रह गया है। ऐसा लगता है कि आरबीएल बैंक का बुरा वक्त बीत गया है और अब बैंक तीन स्तर पर बिजनेस बढ़ाने की योजना पर काम कर रहा है।

First Published : September 5, 2023 | 9:28 PM IST