बीते वर्षों के दौरान महाराष्ट्र में हवा एकतरफा बही है। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) समेत विपक्षी दलों के सदस्य इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होते जा रहे थे। स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तंज कसते हुए कहा था कि शरद पवार और पृथ्वीराज चव्हाण के अलावा कांग्रेस और राकांपा का हर नेता भाजपा का दरवाजा खटखटाने के लिए कतार में खड़ा है।
यह विधानसभा से ठीक पहले ही बात है। उस समय ऐसा लग रहा था कि भाजपा को महाराष्ट्र में प्रचंड जीत मिलेगी। यह दूसरी बात है कि वह ऐसा करने में नाकाम रही। लेकिन हकीकत यह है कि उस समय चुनाव नजदीक होने से यह हवा बह रही थी। इसी वजह से यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा के शीर्ष नेता एकनाथ खडसे ने ऐसे समय पार्टी से इस्तीफा देने और राकांपा में शामिल होने का फैसला किया है जब वह न विधायक और न ही विधान परिषद सदस्य हैं। हालांकि उनकी पुत्रवधू रक्षा रावेर से भाजपा सांसद हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा में उनका कोई कद नहीं था। वह पर्याप्त वरिष्ठ थे, इसलिए उन्हें देवेंद्र फडणवीस सरकार में राजस्व मंत्री बनाया गया था। हालांकि एक जमीन सौदे में भ्रष्टाचार को लेकर उनके खिलाफ न्यायिक जांच शुरू होने के बाद उन्हें 2016 में पद से हटाया गया। उसके बाद जांच के बारे में कुछ सुनने में नहीं आया।
खडसे ने पार्टी बदलने से पहले कहा, ‘फडणवीस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी।’ यह उनके जैसे वरिष्ठ व्यक्ति का किसी व्यक्ति पर आश्चर्यजनक आरोप है और वह भी सार्वजनिक रूप से। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने अनुमान जताया, ‘अब खडसे फडणवीस को बरबाद करने को अपना मिशन बना लेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘हम उन्हें लेना चाहते थे…लेकिन उन्होंने राकांपा में जाने को प्राथमिकता दी।’ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने खडसे के सामने खुली पेशकश रखी थी कि वह अपनी मर्जी से कांग्रेस में शामिल होने का समय और जगह तय कर सकते हैं।
मगर सवाल उठता है कि खडसे इतने महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? इसकी मुख्य वजह उनकी जाति है। वह लेवा पाटिल समुदाय से आते हैं, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में है। ब्राह्मणों के प्रभाव वाली भाजपा में आम तौर पर ओबीसी की शिकायत अगड़ी जातियों के दबदबे को लेकर रही है। उदाहरण के लिए एक अन्य ओबीसी नेता गोपीनाथ मुंडे को इस समुदाय में अच्छा नेता माना जाता रहा है, लेकिन नितिन गडकरी ने उन्हें कभी नहीं उभरने दिया। मुंडे की बेटी पंकजा का जाति से ब्राह्मण फडणवीस के साथ छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है, इसलिए मौजूदा जातिगत तनाव बना रहेगा।
उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव, धूले, नंदुरबार और नाशिक जैसे क्षेत्रों में लेवा पाटिल समुदाय का विशेष रूप से दबदबा है। वहां कांग्रेस को समर्थन शून्य है। राकांपा थोड़ा प्रभाव बनाने में सफल रही है, जिसका वहां से एक विधायक भी चुना गया है। मगर इस घटनाक्रम से शिवसेना चिंतित होगी। वर्तमान जलापूर्ति मंत्री और शिवसेना के वरिष्ठ नेता गुलाबराव पाटिल जलगांव से ताल्लुक रखते हैं। वह खडसे के राकांपा में शामिल होने से नाखुश हैं। उत्तरी महाराष्ट्र का यह क्षेत्र विधानसभा में 11 से 15 विधायक भेजता है। जो व्यक्ति इस क्षेत्र में प्रभाव रखता है, वह पार्टी की मुख्यमंत्री की पसंद को प्रभावित कर सकता है।
कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘फडणवीस खडसे को एक प्रतिस्पर्धी मानते थे, इसलिए उन्हें किनारे लगाने की कोशिश की।’ किसी समुदाय में प्रतिस्पर्धी खड़ा करने की दिशा में फडणवीस की रणनीति का पहला कदम गिरीश महाजन थे। महाजन फडणवीस की सरकार में सिंचाई मंत्री थे, लेकिन उन्हें फडणवीस का दाहिना हाथ माना जाता था। दोनों खडसे को रोकने के लिए एकजुट हो गए, लेकिन उन्हें लोक सभा चुनाव में अपना प्रतिनिधि (अपनी पुत्रवधू) आगे बढ़ाने से नहीं रोक पाए। ऐसा लगता है कि खडसे ने पार्टी बदल ली है, लेकिन उनकी पुत्रवधू भाजपा में बनी रहेंगी।
अब अहम सवाल यह है कि खडसे के शिवसेना के साथ कैसे रिश्ते रहेंगे और उन्हें फडणवीस और भाजपा को निशाना बनाने के लिए कैसे तैनात किया जाएगा। खडसे को विधानसभा में लाने के लिए उनके क्षेत्र से किसी का इस्तीफा दिलाना पड़ेगा क्योंकि उनकी उत्तरी महाराष्ट्र से बाहर कोई मौजूदगी नहीं है। यह एक मुश्किल काम है। दूसरा विकल्प उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाना है, जिसके चुनाव आगे होने हैं। लेकिन यहां राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का कड़ा विरोध आड़े आ रहा है। उनका कहना है कि नामित विधान परिषद सदस्यों के तथाकथित राज्यपाल के कोटे में कला, संगीत और सामाजिक कार्य जैसे क्षेत्रों के असल नेता शामिल होने चाहिए। इस श्रेणी को राजनेताओं से नहीं भरा जा सकता है।
अगली समस्या मंत्री पद है। महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुआई वाली गठबंधन सरकार- आघाडी में शामिल सभी दलों के लिए कोटा तय है। राकांपा का मंत्री पदों का कोटा पहले से ही भरा हुआ है। खडसे कृषि मंत्री का पद चाहते हैं, लेकिन फिलहाल वह शिवसेना के पास है।
क्या खडसे के भाजपा छोडऩे से अन्य निकासी की भी बाढ़ आ सकती है? यह कहना मुश्किल है मगर फडणवीस सरकार में पूर्व वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने कहा, ‘पार्टी को यह विश्लेषण करना चाहिए कि खडसे ने किस वजह से यह कदम उठाया।’ इससे यह साफ है कि खडसे फडणवीस के लिए सिरदर्द बनने जा रहे हैं।
