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तमिलनाडु की राजनीति में शशिकला की भूमिका का क्या होगा असर!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 8:32 AM IST

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जे. जयललिता की साथी और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) की एक प्रभावी नेता- वी. के. शशिकला जेल से बाहर आ चुकी हैं। भले ही वह सजा और कारावास के चलते इस बार का विधानसभा चुनाव तथा अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकतीं लेकिन एक प्रभावी नेता के तौर पर पर्दे के पीछे की राजनीति एवं राजनीतिक घटनाओं में उनके प्रभाव को कोई नहीं रोक सकता। इस वजह से उनकी भविष्य की भूमिकाओं के बारे में कई अटकलें लगाई जा रही हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जो पूछ रहे हैं कि ठीक है, वह जेल से बाहर आ गई हैं, लेकिन क्या इससे कोई फर्क पड़ेगा?
निश्चित रूप से, वह क्या थीं और आज वह क्या हैं, इसमें बड़ा अंतर है। इतिहास को देखें तो 1980 के दशक की शुरुआत में जयललिता और शशिकला की मुलाकात हुई थी। शशिकला तिरुवरूर जिले के एक बड़े शहर मन्नारगुडी से आती हैं और तेवर समुदाय से संबंधित हैं। उनके पति नटराजन, राज्य सूचना विभाग में जनसंपर्क अधिकारी थे। उन्होंने अपनी पत्नी शशिकला को जयललिता द्वारा संबोधित राजनीतिक बैठकों के वीडियो बनाने के लिए एक वीडियो कारोबार शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया था। उस समय, जयललिता पार्टी में एक कार्यकर्ता थीं, जो बाद में प्रचार सचिव बनीं। इस तरह दोनों महिलाएं धीरे-धीरे दोस्त बन गईं।
एम. जी. रामचंद्रन के निधन के बाद उनकी दोस्ती गहरी हुई। जयललिता ने शशिकला के परिवार को अपना लिया और शशिकला के भतीजे सुधाकरन के साथ उनका इतना जुड़ाव हुआ कि उन्होंने उसे अपना दत्तक पुत्र घोषित कर दिया। इससे पता चलता है कि जयललिता कितनी अकेली रही होंगी और अपने नए-नवेले परिवार के प्रति कितनी तेजी से जुड़ी होंगी। लेकिन भावनात्मक अशांति जयललिता के जीवन से दूर नहीं हुई। उन्होंने साल 2011 में अपने दत्तक पुत्र और शशिकला परिवार के सदस्यों को अन्नाद्रमुक से बाहर का रास्ता दिखा दिया। शशिकला की बहिन वनितामणि के पुत्र टी. टी. दिनकरन और वी. भास्करन भी निष्कासित किए गए। इन सभी ने जयललिता से अपनी निकटता हासिल कर ली थी। दिनकरन राज्यसभा और लोकसभा दोनों से सांसद के तौर पर चुने गए थे। भास्करन अन्नाद्रमुक के आधिकारिक चैनल जया टीवी के प्रणेता जेजे टीवी के प्रबंध निदेशक थे। एक डॉक्टर एस. वेंकटेश भी निष्कासित किए गए, जो शशिकला के भाई सुंदरवदनन के बेटे थे। वह पार्टी की युवा शाखा के सचिव थे और उन्हें पार्टी में एक प्रमुख नेता के रूप में देखा जाता था। उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनावों के लिए गठबंधन दलों के नेताओं के साथ बैठक की थी, लेकिन सितंबर 2010 में उन्हें पार्टी के पद से हटा दिया गया।
इस समय ऐसा लगा कि राजनीति के क्षेत्र में शशिकला का अंत हो गया, लेकिन वह कुछ महीने बाद वापस आईं। इस बार वह न केवल पहले से अधिक शक्तिशाली थीं, बल्कि इस बार वह भी लोगों को वापस लेने, पार्टी संगठन में कदम रखने के साथ जयललिता की आंख-कान के तौर पर काम करने वाली महिला बन गईं। कई लोगों को तो ऐसा लगता था कि जयललिता ने शशिकला को सभी राजनीतिक अधिकार सौंप दिए हैं। साल 2014 में जब जयललिता को एक आयकर मामले में दोषी ठहराया गया था और जेल भेजा गया था, तो शशिकला के समर्थन के बाद ओ. पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री चुना गया। अन्नाद्रमुक को 2016 के चुनाव में भी तमिलनाडु में फिर से सरकार बनाने का मौका मिला और जब जयललिता अस्पताल में थीं, तब पन्नीरसेल्वम ने सत्ता संभाली।
लेकिन 2016 में जयललिता के निधन के बाद पार्टी में फूट पड़ गई। अन्नाद्रमुक सत्ता में थी, लेकिन ई पलनिस्वामी ने अन्नाद्रमुक में अपना अलग गुट बना लिया और मुख्यमंत्री बनने का सफलतापूर्वक दावा किया। और एक बार फिर इसे शशिकला का समर्थन प्राप्त था। पलनिस्वामी ने पन्नीरसेल्वम के साथ समझौता किया और धीरे-धीरे उनके अपने विधायक दूर हो गए। इस बीच शशिकला को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराया गया और जेल भेज दिया गया। और अन्नाद्रमुक में शशिकला के एकमात्र प्रतिनिधि दिनकरन के साथ सभी गुटों के बीच एक असहज सह-अस्तित्व के कारण सब कुछ बिखर गया।
दिनकरन ने सत्ता को बचाने का अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया। अन्नाद्रमुक की राजनीति में एक बेहद मामूली स्तर पर होने के बावजूद, वह प्रचंड बहुमत से जयललिता के विधानसभा क्षेत्र आर के नगर की सीट जीतने में कामयाब रहे। हालांकि अन्नाद्रमुक के उस गुट की राजनीतिक विरासत काफी पिछड़ गई है। अगर शशिकला को सक्रिय राजनीति में रहना है, तो उन्हें पलनिस्वामी की ओर जाना होगा। हालांकि उन्होंने अपनी ओर से स्पष्ट कर दिया है कि शशिकला को पार्टी में वापस नहीं आने दिया जाएगा।
शशिकला के पास कोई बड़ा आश्चर्यजनक कदम उठाने के लिए अब ज्यादा समय नहीं है । अन्नाद्रमुक की योजना 234 विधानसभा सीटों में से 20-25 सीट भाजपा को, 30-35 एस. रामदास की पीएमके को, 15 -18 कैप्टन विजयकांत की डीएमडीके को आवंटित करने और बाकी का चुनाव अपने पार्टी चिह्न पर लडऩे की है। शेष सीटें छोटे संगठनों को दी जाएंगी लेकिन वे अन्नाद्रमुक के ‘दो पत्ते’ चिह्न पर चुनाव लड़ेंगे। एक ओर पलनिस्वामी गुट अभी भी शशिकला का आकलन कर रहा है, लेकिन अब दिनकरन और उनकी प्रासंगिकता पर सवालिया निशान लगा है। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में, ज्यादातर दक्षिण तमिलनाडु में जहां तेवर समुदाय को शक्तिशाली माना जाता है, में 4 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी (अन्नाद्रमुक के कुल वोट बैंक का 10 से 15 प्रतिशत) अपनी ओर कर ली थी। लेकिन यह सब अन्नाद्रमुक के चुनाव चिह्न हासिल करने पर निर्भर रहेगा जिसका मतलब होगा पलनिस्वामी की शर्तों पर विलय। आने वाले सप्ताहों में तमिलनाडु की राजनीति में कई रोचक एवं आश्चर्यजनक रंग देखने को मिल सकते हैं।

First Published : February 9, 2021 | 11:47 PM IST