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अर्थव्यवस्था को हथियार बनाना

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 8:55 PM IST

पच्चीस वर्ष पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विदेशी मुद्रा की कमी के शिकार पूर्वी एशियाई देशों को गलत दवा लेने पर विवश किया था। इंडोनेशिया जैसे देश एकदम ढहने के कगार पर पहुंच गए थे। क्षेत्रीय देशों ने तय किया कि ‘ऐसा दोबारा न होने देंगे’ और उन्होंने बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा भंडार जुटाया। उससे तीन दशक पहले अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने अकाल से जूझ रहे भारत के खिलाफ गेहूं की आपूर्ति को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था क्योंकि याचक होने के बावजूद भारत ने वियतनाम में अमेरिका के कदमों की आलोचना की थी। इंदिरा गांधी ने ठाना कि ‘ऐसा दोबारा न होने देंगे’ और भारत ने हरित क्रांति की ओर कदम बढ़ाए, उसने अनाज उत्पादन पर जोर देना शुरू किया और आज उसके पास खाद्यान्न भी वैसे ही ज्यादा है जैसे कि रिजर्व बैंक के पास डॉलर।
ब्लैकमेल का सामना करने वाले देश अक्सर शांति काल के उन लाभों की अनदेखी कर बैठते हैं जो आपसी संपर्क से आते हैं और वे आत्मनिर्भरता में अपनी सुरक्षा तलाशते हैं। पश्चिमी देशों द्वारा व्लादीमिर पुतिन को झुकाने के लिए विमानों के कलपुर्जों से लेकर वित्तीय उपायों तक का बतौर हथियार करने की कोशिश के कहीं अधिक व्यापक प्रभाव होंगे। पश्चिम ने वैश्वीकरण के ढांचे पर कुछ मिसाइल दाग दी हैं। भारत के लिए सबसे बुरा परिदृश्य यह होगा कि रूस को एकदम हाशिये पर रख दिया जाए और वह चीन तथा पाकिस्तान के सैन्य गठजोड़ के बावजूद चीन की करीबी स्वीकार कर ले। यूक्रेन को यह सबक मिल रहा है कि जब आप किसी शक्तिशाली पड़ोसी को छेड़ें तो क्या होता है, भले ही आपके नागरिकों में उस पड़ोसी के लिए न्यूनतम प्रेम हो। उसे सैन्य सहायता मिल सकती है लेकिन वह अकेला लड़ रहा है। भारत के लिए इसकी तुलना जाहिर है और चीन को प्रतिबंधों की कोई परवाह शायद ही हो। सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार हुआ करता था लेकिन अब भारत तेल और रक्षा उपकरणों के अलावा उससे शायद ही कुछ खरीदता है। रूस आज भी हमें वह आपूर्ति करता है जो अन्य देश नहीं करेंगे। ऐसे में रक्षा संबंधी निर्भरता कम नहीं हो सकती है। परंतु यूक्रेन में रूस की हरकत उसे कमजोर करेगी और उसका रक्षा उद्योग शायद धारदार न रह पाए। आर्थिक प्रतिबंधों के कारण शायद उसकी अर्थव्यवस्था विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता न रह जाए। संभव है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसका वीटो अधिकार आसानी से उपलब्ध न हो, खासतौर पर अगर चीन के खिलाफ इसकी जरूरत हो। सुरक्षा उपायों की आश्वस्ति भी शायद न हो। एक विकल्प यह भी है कि पश्चिम के नियमों का पालन किया जाए, भले ही गैर पश्चिमी देशों के खिलाफ उन्हें कितना भी चयनित ढंग से लागू किया जाए। परंतु भारत कभी भी ‘प्रतिष्ठित श्वेत’ की भूमिका में नहीं आ पाएगा। नस्लवाद और उपनिवेशवाद की लंबी स्मृति, उसके आकार और सांस्कृतिक स्वायत्तता को देखते हुए लगता नहीं कि हम कहीं और बने तथा अलग तरह से लागू नियमों को बिना किसी आलोचना के स्वीकार कर पाएंगे। बिना प्रतिबद्धता वाला कूटनीतिक रुख रखना और तिकड़म का काम हो जाएगा।
अब बात आती है आत्मनिर्भरता की। यह आंशिक हल है क्योंकि अंतर्मुखी अर्थव्यवस्थाएं अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पातीं। डॉलर का भी कोई विकल्प नहीं है, आपूर्ति शृंखलाएं भी नदारद नहीं होने वाली हैं, ईंधन के मामले में आयात पर निर्भरता बनी रहेगी और सभी बड़े अंतरराष्ट्रीय संस्थानों पर पश्चिम का दबदबा बना रहेगा। अगर कोई देश उत्तर कोरिया न बनना चाहे तो उसका इन सबसे निजात पाना मुश्किल है। हर प्रमुख हथियार को स्वदेशी बनाने की मुहिम सुनने में अच्छी लग सकती है लेकिन यह कुछ ज्यादा दूर की कौड़ी है। यदि आयात रोक दिया जाए और घरेलू उत्पादन न हो तो हम अधर में रह जाएंगे। इसके अलावा हर स्वदेशी हथियार प्रणाली में काफी आयातित घटक लगते हैं। तेजस का इंजन जनरल इलेक्ट्रिक ने बनाया है, नौसेना के पोतों में यूक्रेन में बने इंजन लगते हैं, वगैरह।
इन बातों का अर्थ यह नहीं है कि इंडिया स्टैक जैसी स्वदेशी तकनीकी पहलों के महत्त्व को कम किया जाए जिनके बल पर हम एकीकृत भुगतान प्रणाली, और अमेरिकी जीपीएस के घरेलू विकल्प जैसे उपाय तैयार कर सकें। आंकड़ों का जबरन स्थानीयकरण करने का भी बचाव किया जा सकता है बशर्ते हमारे संस्थान मजबूत हों। विनिर्माण में नए संदर्भ अहम उद्योगों के स्वदेशीकरण के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना के अन्यथा कमजोर तर्क को भी सहारा देते हैं, बशर्ते कि यह वास्तव में अहम चीजों पर केंद्रित हो। हमें ऐसी नीति की सीमाओं को जानते हुए कदम बढ़ाने होंगे। रूस ने 2014 के बाद से प्रतिबंधों को प्रतिक्रिया देते हुए एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाई लेकिन वह नाजुक भी बना रहा। चयनित एकीकरण का विकल्प साझा परस्पर निर्भरता की तुलना में बेहतर साबित हो सकता है।

First Published : March 5, 2022 | 12:17 PM IST