इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा
वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या हुआ? नागर विमानन से लेकर जन स्वास्थ्य तक जो समस्याएं उत्पन्न हुईं, उनमें से अनेक का संबंध नियमन से था। भारत ने एक सक्षम नियामकीय शाखा विकसित की है, जिसके माध्यम से वैधानिक नियामक प्राधिकरणों यानी एसआरए द्वारा पूरी अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप किया जाता है। परंतु एसआरए ने भारतीय राज्य की विफलताओं के स्रोतों को विरासत में पाया है। यानी अत्यधिक केंद्रीय नियोजन, विधि के शासन की कमी और राज्य की सीमित क्षमता। यह उत्साहपूर्ण निजी निवेश की संभावनाओं की राह की एक बड़ी बाधा है। जरूरत यह है कि एसआरए द्वारा किए गए काम से छेड़छाड़ न किया जाए। बल्कि यह देखा जाए कि एसआरए को कैसे डिजाइन किया जाए और वे किस प्रकार काम करें।
इस माह के आरंभ में सामने आई इंडिगो की समस्या पर गौर कीजिए। कर्मचारियों के कुप्रबंधन और इस प्रमुख विमानन कंपनी द्वारा नए उड़ान सेवा समय सीमा (एफडीटीएल) मानकों का पालन नहीं कर पाने की जड़ें भारतीय नागर विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए की कमजोरी में निहित थीं। जब देश की सांगठनिक बुनियाद ही कमजोर हो तो संकट के समय ऐसे ही मुश्किल हालात बनते हैं।
विमानन क्षेत्र में ही कुछ महीने पहले अहमदाबाद में हुए विमान हादसे ने हमें स्तब्ध कर दिया था। उस हादसे के बाद हमने इसी स्तंभ में डीजीसीए की संरचनात्मक खामियों पर चर्चा की थी और भारत की हवाई सुरक्षा निगरानी की कमियों पर बात की थी। बात चाहे सुरक्षा में विफलता की हो या फिर समय सारणी परिचालन की नाकामी, बुनियादी कमजोरी एक ही है: एक ऐसा नियामक जो अपने प्रशासनिक दर्जे, स्वायत्तता की कमी और आंतरिक क्षमता की कमी से समझौता कर चुका है।
विमानन से परे देखें तो कफ सिरप से हुई मौतों ने देश को हिला कर रख दिया था। इस घटना ने भी केंद्रीय मानक औषधि नियंत्रण संस्थान (सीडीएससीओ) तथा राज्य औषधि नियामकों की ओर गलत कारणों से ध्यान आकर्षित किया। वित्तीय क्षेत्र में हमने देखा कैसे गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा, सहकारी बैंकों में संचालन नाकामी के हालात बने और भारत में विकास के लिए जिस वित्तीय क्षेत्र की आवश्यकता है, उसके और केंद्रीय नियोजन प्रणाली से निकले वित्तीय क्षेत्र के बीच एक बड़ा अंतर है। डिजिटल दुनिया भी डेटा चोरी, डिजिटल धोखाधड़ी, बाजार पर एकाधिकार और सेवा की गुणवत्ता जैसी अनेक समस्याओं से ग्रस्त है।
एक सामान्य बात इन सभी को जोड़ती है। भारत ने गहराई से हस्तक्षेप करने वाले नियामक राज्य की जटिल शाखाएं विकसित कर ली हैं, लेकिन यह नहीं समझ सका कि नियमन को प्रभावी ढंग से कैसे काम कराया जाए। इन संगठनों के परिणाम स्तर पर छोटी-छोटी छेड़छाड़ से कोई लाभ नहीं होगा। परिणाम स्तर पर काम करने वाले दर्जनों लोग उन हजारों लोक सेवकों के सामने टिक नहीं सकते जो वैधानिक नियामक प्राधिकरणों (एसआरए) में अपनी स्थिति की रक्षा करते हुए हर दिन नए परिणाम उत्पन्न करते हैं। जरूरत है बुनियादी बदलाव की।
लोक अर्थशास्त्र की बुनियाद से देखें तो नियमन एक ऐसा उपाय है जिसे दो तरह की बाजार विफलताओं से निपटने के लिए लागू किया जाना चाहिए:
1. सूचना की असंगतता : उपभोक्ता किसी विमान के रखरखाव की सुरक्षा, किसी दवा की शुद्धता, या किसी सहकारी बैंक की साख का स्वयं आकलन नहीं कर सकते। वे न्यूनतम मानकों को सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह नियामक पर निर्भर रहते हैं।
2. नकारात्मक बाह्य कारक : विफलता की कीमत यानी एक विमान का दुर्घटनाग्रस्त होना, बड़े पैमाने पर विषाक्तता या व्यवस्थागत वित्तीय पतन, इन्हें केवल सीधे प्रतिभागी ही वहन नहीं करते। बल्कि व्यापक समाज भी इनका बोझ उठाता है। ऐसे में राज्य को बचाव के कदम उठाने ही चाहिए।
नियमन के जरिये कोशिश व्यवहार को संशोधित करने, अनुपालन को लागू करने और बिना किसी पक्षपात या भय के दंड देने की होती है ताकि कंपनियां और अन्य आर्थिक एजेंट इस प्रकार आचरण करें जिससे इन दो प्रकार की बाजार विफलताओं में कमी आए। ऐसा करने के लिए एसआरए में पांच विशेषताओं की आवश्यकता होती है:
1. सशक्तीकरण : उनके पास विधायी अनुदेश, शक्तियां और संसाधन (वित्तीय और मानवीय) होने चाहिए ताकि गुणवत्तापूर्ण नियमन लिखे जा सकें, आचरण की निगरानी की जा सके, जांच की जा सके और प्रवर्तन किया जा सके।
2. स्वतंत्रता : उन्हें कार्यकारी सरकार से स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए। जब कोई नियामक किसी मंत्रालय के अधिक प्रशासनिक कार्यालय होता है तो उसका बजट, कर्मचारी और निर्णय लेने का अधिकार आदि सभी प्रभावित होते हैं।
3. उपभोक्ता संरक्षण पर ध्यान : उनका प्राथमिक काम स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए और वह होना चाहिए उपभोक्ता और लोक कल्याण न कि उद्योग जगत का प्रचार।
4. जवाबदेही : उन्हें अपने नतीजों के लिए विधायिका के समक्ष जवाबदेह होना चाहिए जिससे स्वतंत्रता सुनिश्चित हो न कि मनमानापन।
5. जांच संतुलन और विधि का नियम : वह प्राथमिक कानून जो किसी वैधानिक नियामक प्राधिकरण (एसआरए) की स्थापना करता है, उसे एसआरए को सीमित और सटीक रूप से परिभाषित शक्तियां प्रदान करनी चाहिए, उच्च-गुणवत्ता वाली प्रक्रियाओं की मांग करनी चाहिए और शीर्ष प्रबंधन पर नियंत्रण स्वतंत्र निदेशकों से प्रभुत्व वाले बोर्ड को देना चाहिए, ताकि वे उद्देश्यों को परिभाषित कर सकें और प्रबंधकों को जवाबदेह ठहरा सकें।
भारत में इस समय केंद्रीय स्तर पर दो दर्जन से अधिक एसआरए हैं। ये वित्त, ऊर्जा, दूरसंचार और प्रतिस्पर्धा आदि क्षेत्रों में फैले हैं। बहरहाल ये संस्थाएं उपर्युक्त विशेषताओं के संदर्भ में व्यापक रूप से भिन्न हैं। अधिकांश एसआरए में ये सभी विशेषताएं पूरी तरह मौजूद नहीं हैं। परिणामस्वरूप, उनका प्रदर्शन औसत से कमतर है। सरकारी विभाग अक्सर नियामकों की क्षमताओं से असंतुष्ट रहते हैं। नियामकों और उन विभागों के अधिकांश कर्मचारी, जिनमें एसआरए स्थित हैं, व्यावहारिक विवरणों में उलझे रहते हैं और इस बात की रणनीतिक समझ का अभाव होता है कि प्रदर्शन को कैसे सुधारा जा सकता है। इसलिए, तात्कालिक समाधान एजेंडा, जैसा कि ऐसे कर्मचारी समझते हैं, सामान्यतः प्रगति का मार्ग नहीं होता।
उन्नत अर्थव्यवस्थाएं इस यात्रा से गुजरी हैं। उन्होंने सरकारी विभागों एसआरए में राज्य स्तर पर क्षमता हासिल की है (जिसके लिए दोनों के बीच सही प्रोटोकॉल भी आवश्यक है)। इसलिए हमें पता है कि यह किया जा सकता है। लेकिन उनकी नीतियों को भारत में सीधे लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि अदृश्य बुनियादी ढांचे में अंतर है। भारत में एक गहराई से प्रामाणिक नियामक सुधार समुदाय की आवश्यकता है, जो पूर्ण सैद्धांतिक ज्ञान को भारतीय वास्तविकताओं की कठोरता के साथ जोड़ सके।
सरकार के सभी स्तरों पर नए ज्ञान और कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि यह सीखा जा सके कि एसआरए को कैसे प्रभावी बनाया जाए। इसके लिए बहस और शोध, एसआरए के कामकाज में बदलाव के लिए अनेक प्रयोग, और यह जानने के लिए प्रतिक्रिया तंत्र तथा अनुभवजन्य साक्ष्यों की सावधानीपूर्वक जांच आवश्यक होगी कि वास्तव में क्या कारगर होता है।
वर्षों से हमने राज्य हस्तक्षेप के जाल को फैलाया है और एसआरए के माध्यम से निजी क्षेत्र की वृद्धि को बाधित किया है। इसके परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र भारत में निवेश करने को लेकर अधिक सतर्क हो गया है। अब प्राथमिकता यह सीखने की होनी चाहिए कि भारतीय नियामक राज्य को कैसे प्रभावी बनाया जाए।
(लेखक इसाक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी के मानद वरिष्ठ फेलो और पूर्व अफसरशाह हैं। ये उनके निजी विचार हैं)