अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कारोबारी साझेदार देशों को टैरिफ के मोर्चे पर जबरदस्त झटका दिया है। वे इसे ‘बराबरी का’ शुल्क कहते हैं हालांकि इसमें बराबरी वाली कोई बात नहीं है। इनका आकलन मनमाने ढंग से किया गया है। इसके तहत बस किसी देश से अमेरिका के व्यापार घाटे के आंकड़ों को उस देश से अमेरिकी आयात को विभाजित किया जाता है। इसमें किसी तर्क या दलील का इस्तेमाल नहीं किया गया है। छोटी अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक हित इससे अधिक प्रभावित हुए हैं।
इन टैरिफ ने विश्व व्यापार में अनिश्चितता और उथल-पुथल की स्थिति निर्मित की है। इसने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के स्थापित मानकों और सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। इसमें विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सर्वाधिक तरजीही देश का बुनियादी सिद्धांत, राष्ट्रीय व्यवहार और यह नियम भी शामिल है कि किसी देश द्वारा लागू किया गया शुल्क डब्ल्यूटीओ में बाध्यकारी शुल्क दर से अधिक नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियम पूरी तरह उलट-पुलट हो गए हैं। यह डब्ल्यूटीओ को एक बड़ा झटका है। कम से कम जब तक शेष विश्व एकजुट होने का साहस नहीं जुटा लेता तब तक के लिए हालात कठिन हैं।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस कवायद को लेकर व्यापक विचार हुआ है। पहला, कारोबारी साझेदारों पर दबाव होगा क्योंकि अमेरिका ने कहा है कि अगर अन्य देश दरों को कम करते हैं तो अमेरिका भी ऐसा करने पर विचार करेगा। वियतनाम पहले ही अमेरिका को लेकर दरें कम करने की बात कह चुका है। दूसरी बात यह है कि विभिन्न देश शायद प्रतिक्रिया देने से बचें क्योंकि अमेरिका और अधिक शुल्क वृद्धि करके हालात मुश्किल बना सकता है। तीसरा, आदेश के एनेक्स-2 पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जो उन उत्पादों की सूची पेश करता है जिनके लिए टैरिफ लागू नहीं होगा। उदाहरण के लिए कई औषधि उत्पाद आदि। यह सूची जहां उन उत्पादों को शामिल करती है जो बाद में सुरक्षा उपायों तहत आ सकते हैं, वहीं कुछ उत्पाद श्रेणियों को बाहर रखने का विचार उपयुक्त है।
किसी भी देश को अपनी प्रतिक्रिया उपरोक्त तीन बिंदुओं को ध्यान में रखकर ही तैयार करनी होगी। परंतु यहां एक बात पर ध्यान देना होगा। राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया पूरी तरह लेनदेन वाला है। ऐसे में कोई भी सौदा तभी तक अंतिम माना जाएगा जब तक कि किसी नए देश के साथ नया समझौता नहीं हो जाता। किसी व्यापार समझौते में तरजीही मुल्क का प्रावधान ऐसी बाद की घटनाओं से लाभान्वित होने के लिए वांछित हो सकता है। एक अच्छी रणनीति यह होगी कि बड़ी अमेरिकी कंपनियां ऐसी पहलों का हिस्सा हों जो आर्थिक साझेदारी बनाने में मदद करें।
इसके अलावा टैरिफ कम करने संबंधी कोई भी नीति तीन पहलों वाली श्रेणियों के तहत बनाई जानी चाहिए। पहला, उन क्षेत्रों की पहचान करना जहां औद्योगिक नीति संबंधी पहलों की मदद से भरत में वैश्विक मूल्य शृंखला के लिए निर्यात और प्रौद्योगिकी केंद्र निर्मित किए जा सकें। दूसरा, ऐसे उत्पाद जो भारत के लिए संवेदनशील हों मसलन कृषि उत्पाद आदि। तीसरा, द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर जोर ताकि टैरिफ में द्विपक्षीय कमी लाई जा सके। अमेरिका टैरिफ में कमी की बात करें इसके लिए अमेरिकी कांग्रेस से एक व्यापार संवर्धन प्राधिकार की आवश्यकता होगी। विनिर्मित वस्तुओं और कृषि उत्पादों के मामले में भारत के मौजूदा निर्यात को तात्कालिक चुनौतियों का सामना करना होगा और यह बात उसे प्रभावित करेगी। भारत द्वारा टैरिफ में किया जाने वाला बदलाव आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील है।
भारत को ढेर सारे विकल्प तैयार करने की जरूरत है ताकि इस संवेदनशीलता को दूर किया जा सके। जब हम इसकी तुलना कई प्रमुख प्रतिस्पर्धियों से करते हैं तो भारत नुकसान को कम करने तथा महत्त्वपूर्ण आर्थिक चिंताओं को हल करने वाली कार्रवाइयों के लिए अवसर तैयार करने की दृष्टि से बेहतर स्थिति में है। प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौता बेहतर हालात की तलाश के लिए बेहतर मंच देता है। इसके बावजूद बेहतरीन परिणाम पाने के लिए समझौते के प्रयासों को व्यापक औद्योगिक नीति संबंधी पहलों द्वारा पूरक बनाना होगा। चीन पर कुल अमेरिकी टैरिफ में अगर ट्रंप द्वारा पद संभालते ही लगाए गए टैरिफ को शामिल कर दें तो वह करीब 76 फीसदी हो चुका है। चूंकि चीन का प्रभावी टैरिफ बहुत अधिक है इसलिए भारत को जल्दी ही चीन में स्थित प्रमुख कंपनियों से यह चर्चा करनी होगी कि वे अपने निवेश को भारत ले आएं।
इस दौरान उसे वैसी देरी नहीं करनी चाहिए जैसी 2018 में ट्रंप द्वारा चीन पर टैरिफ बढ़ाए जाने के बाद की गई थी। चूंकि अन्य देश भी चीन से इतर किसी देश में निवेश करना चाहेंगे इसलिए भारत को तेजी से कार्रवाई करनी होगी। उसे भारत, अमेरिका तथा अन्य देशों के बीच नई मूल्य शृंखला साझेदारियों को चिह्नित करना होगा ताकि भारत की मौजूदा सीमित आपूर्तिकर्ताओं पर भारी निर्भरता को दूर किया जा सके। इन प्रयासों को सुनियोजित करना होगा और इनको व्यापक औद्योगिक नीति पहल का हिस्सा बनाना होगा जहां आयातित कच्चे माल पर कम टैरिफ प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए आवश्यक है। व्यापक उत्पादन के लिए परिचालन हालात तैयार करने पर भी जोर दिया जाना चाहिए। यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए नीतिगत स्थिरता एक प्राथमिकता है और शीर्ष कंपनियों के साथ मध्यम से दीर्घावधि का नजरिया विकसित करने की जरूरत है।
भारत को इस बात से भी बचने की आवश्यकता है कि कहीं वह अमेरिका के सामने अपने सारे पत्ते न खोल बैठे। वह यूरोपीय संघ के साथ चल रही वर्तमान व्यापार वार्ता को पूरा करके तथा लैटिन अमेरिका के प्रमुख देशों तथा अफ्रीका के देशों के साथ व्यापारिक हितों में विविधता लाकर ऐसा करने से बच सकता है। यह भारत तथा उसके समान सोच वाले अन्य देशों के लिए एक अवसर हो सकता है कि वे डब्ल्यूटीओ को दोबारा मजबूत करने पर विचार करें। यदि आवश्यक हो तो वे अमेरिका के बिना भी ऐसा कर सकते हैं। बेहतर होगा कि हम अभी अपने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दें और इस बात को पहचानें कि भारत को भविष्य के झटकों से स्वयं को बचाने की आवश्यकता है। हमें अपनी मूल्य शृंखला को चीन से इतर अमेरिका तथा अन्य देशों की ओर ले जाने की जरूरत है। ऐसा करने से भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय निर्यात भी बढ़ेगा।
( लेखक आरआईएस में क्रमश: विशिष्ट फेलो और सलाहकार हैं)