भारत को हर वर्ष एक करोड़ नए आवास बनाने की जरूरत है। अगले कम से कम दो दशक तक देश की आबादी बढ़ेगी और अगले पांच वर्ष तक इसकी दर एक फीसदी सालाना रहेगी। ऐसे में परिवारों की वृद्धि 2.5 फीसदी होगी क्योंकि परिवारों का आकार घटेगा। भारत में परिवारों की तुलना में मकान कम हैं। चीन में परिवारों की तुलना में 20 फीसदी और अमेरिका में 10 फीसदी अधिक मकान हैं। इसके बावजूद वहां मिश्रित आवास हैं। मसलन दुकानदारों के परिवार दुकान में सो जाते हैं। आय और संपत्ति बढऩे के साथ हालात बदलेंगे।
पुराने मकानों को बदलने तथा गैर आवासीय इमारतों की मांग को भी इसमें शामिल कर लें। एक व्यक्ति को कार्यस्थल पर भी उतना ही निर्मित क्षेत्र चाहिए जितना उसके घर पर हो यानी करीब 100 वर्ग फुट। भारत के घर औसतन 460 वर्ग फुट के होते हैं जिनमें करीब पांच लोग रहते हैं। यह जगह विद्यालय, कॉलेज, मॉल, अस्पताल, गोदाम तथा धार्मिक स्थानों के अलावा है जिनकी तादाद कम है लेकिन आकार बहुत बड़े हैं।
संभव है कि हर वर्ष जरूरी नए आवास की तादाद न बढ़े लेकिन देश में मकानों का औसत आकार सालाना दो फीसदी से अधिक बढ़ रहा है। यह असामान्य नहीं है। चीन में यह वृद्धि चार फीसदी और अमेरिका में एक फीसदी है। औसत अमेरिकी मकान का आकार औसत भारतीय मकान से पांच गुना बड़ा है। विनिर्माण की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। यद्यपि देश के 80 फीसदी मकान पक्के हैं लेकिन उनमें से अनेक की छत, दीवार या फर्श को अब भी बेहतर सामग्री की आवश्यकता है। बढ़ती आबादी के कारण ऊंची इमारतों की जरूरत होगी। आज देश की 93 फीसदी इमारतें एक या दो मंजिल की हैं और केवल 0.2 फीसदी इमारतें 10 मंजिल या उससे ऊंची हैं। ऊंची इमारतें बढ़ रही हैं और उनकी प्रति वर्ग फुट विनिर्माण लागत किसी गांव के एक मंजिला मकान की तुलना में 10 गुना है। निर्माण के आकार और मूल्य में यह स्थिर इजाफा आर्थिक गतिविधियों का अहम चालक है। सन 2012 में जीडीपी के छठे हिस्से के बराबर गतिविधियां निर्माण क्षेत्र में थीं और खपत के मामले में खाद्यान्न के बाद किराया सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है।
हालांकि सन 2012 के बाद से वृद्धि की दर सालाना छह फीसदी से कम रही है और मुद्रास्फीति के बरअक्स समायोजित किए जाने पर यह शून्य है। जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 5 फीसदी घटकर 17 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई।
यह क्यों हुआ? इसका कारण जमीन की कीमतों में आ रहे बदलाव में निहित हो सकता है। बीते दो दशकों में जमीन की कीमत में सालाना औसतन 10 से 12 फीसदी का इजाफा हुआ है लेकिन 2002 से 2019 के बीच शहरी इलाकों में जमीन की कीमत सालाना 19 फीसदी तक बढ़ी। जबकि 2006 से 2013 के बीच यह इजाफा करीब 25 फीसदी रहा। ऐसे में आगे चलकर कमी आनी स्वाभाविक थी। सन 2013 से 2019 के बीच यह दर घटकर 4 फीसदी रह गई।
इसका असर निर्माण पर भी हुआ और सन 2010 के तीन लाख के उच्चतम स्तर के मुकाबले शीर्ष डेवलपरों द्वारा अपार्टमेंट की आपूर्ति आधी से भी कम रह गई। बने बनाए मकान इतने अधिक थे कि नए निर्माण में धीमापन आने के बावजूद कीमतों ने जोर नहीं पकड़ा। रेरा जैसी नियामक संस्था तथा वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली के आगमन से अचल संपत्ति उद्योग मजबूत और संगठित हुआ लेकिन इसके साथ ही वित्तीय दिक्कतें भी शुरू हो गईं।
देश के विभिन्न शहरों में बड़े पैमाने पर अचल संपत्ति कारोबार ने जोर पकड़ा लेकिन अभी भी बहुत बड़ी तादाद में आवास छोटे ठेकेदारों द्वारा ही बनाए जा रहे हैं। मसलन किसी मकान में एक कमरा बढ़ाना या एक नई मंजिल तैयार करना। ऐसे मकानों में प्रति वर्ग फुट विनिर्माण की लागत कम होती है लेकिन ऐसे मकानों की तादाद बहुत अधिक है। परंतु इसमें भी धीमापन आया। ऐसे में यह मानने की पर्याप्त वजह है कि जब जमीन की कीमत में वृद्धि धीमी होती है तो मकान का आकार या गुणवत्ता सुधारने की इच्छा भी धीमी पड़ती है।
परंतु अब यह चक्र बदलता दिख रहा है। कई बड़े शहरों से आए आंकड़े यह दर्शाते हैं कि 2019 की तुलना में बिक्री बढ़ी है और पूरे हो चुके अपार्टमेंट की तादाद में इतनी कमी आई है कि डेवलपर नई परियोजनाएं शुरू कर रहे हैं। लंबी मंदी को देखते हुए कई लोग इस बात पर उचित ही शंका कर रहे हैं कि यह सिलसिला कितना लंबा चलेगा लेकिन कई कारक इसके पक्ष में हो सकते हैं।
पहली बात तो यह कि आवास सस्ते हुए हैं। कीमतों में कमी केवल सस्ते कर्ज की वजह से नहीं है बल्कि ऐसा इसलिए भी हुआ है कि आय में वृद्धि अचल संपत्ति की कीमतों में तेजी को पार कर गई है। विगत चार वर्षों में किराया अचल संपत्ति की कीमतों की तुलना में तेजी से बढ़ा है। जबकि कुल खपत में किराये की हिस्सेदारी 2012 के 11.5 फीसदी से घटकर अब 9.5 फीसदी रह गई है। खासतौर पर उन शहरों में जहां बड़ी तादाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहते हैं, वहां मौजूदा वेतन वृद्धि तथा लाखों नए प्रवासियों का अनुमान मांग के लिए सकारात्मक है।
दूसरा, लॉकडाउन के दौरान हुई बचत तथा शेयर बाजार में तेजी के कारण कई परिवार तथा निवेशक खरीद में रुचि दिखा रहे हैं। तीसरी बात, मूल्य संकेत: खरीद के भारी मूल्य को देखते हुए कीमतों में गिरावट का भय भी खरीदारों को रोकता है जबकि कम कीमत का अनुमान उन्हें प्रेरित करता है।
आर्थिक वृद्धि तब हासिल होती है जब कोई व्यक्ति या उद्यम जोखिम उठाता है और किसी ऐसी चीज के बदले नकदी खर्च करना चाहता है जिसका मूल्य कम होने की आशंका होती है। बड़ी तादाद में लोगों द्वारा आवास खरीद या मकानों का निर्माण देश की आर्थिक वृद्धि में सार्थक योगदान कर सकता है। निर्माण में धीमेपन ने 2012 से 2020 के बीच जीडीपी वृद्धि को एक फीसदी से अधिक का संभावित नुकसान पहुंचाया। याद रहे कि विनिर्माता अमीरों से गरीबों को धन स्थानांतरण का एक अहम जरिया क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र के करीब 85 फीसदी कामगार अकुशल श्रमिक होते हैं।
नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मांग में अनुमानित वृद्धि को लेकर समय पर आपूर्ति सुनिश्चित हो ताकि कीमतों में अस्थिरता को न्यूनतम किया जा सके। नई परियोजनाओं को मंजूरी में लगने वाला समय चिंता का विषय है। इसके चलते जमीन बेकार पड़ी रहती है और लागत बढ़ती जाती है। इतना ही नहीं लंबी मंदी के कारण इस क्षेत्र में कंपनियों की तादाद भी कम हुई है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकट के तीन वर्ष बाद भी अचल संपत्ति डेवलपरों के लिए फंडिंग बहुत कम है। इन चुनौतियों को हल करके ही विनिर्माण क्षेत्र से रोजगार निर्माण और वृद्धि हासिल की जा सकती है।
